देश की राजधानी दिल्ली समेत लगभग समूचा उत्तर भारत प्रदूषण के चलते धुंध की चपेट में आ चुका है, धुंध के कारणों को लेकर लोगों के अपने-अपने मतभेद हैं, लेकिन राजधानी दिल्ली समेत उत्तर भारत के लिए यह प्रदूषण वाली धुंध एक खतरनाक संकेत है। धुंध के भयावह परिणामों की यह बानगी भर ही है कि, कुछ मेडिकल एक्सपर्ट्स का मानना है कि, इस धुंध से सिर्फ राजधानी दिल्ली में ही करीब 30 हजार से ज्यादा मौते हो सकती हैं, धुंध दिल्ली से निकलते हुए जयपुर, लखनऊ, कानपुर, पटना तक पहुँच चुकी है, करोड़ों लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं।

कौन है इस धुंध का जिम्मेदार?:

  • दिल्ली की हवा जहरीली हो चुकी है, जिसके चलते छोटे बच्चों के स्कूलों में छुट्टी के आदेश दिल्ली सरकार ने जारी कर दिए हैं।
  • वहीँ मौसम विभाग की मानें तो दिल्ली में ऐसा मौसम आने वाले 7 से 8 दिन तक रह सकता है।
  • लेकिन प्रदूषण के इस बादल की आफत अब दिल्ली वालों के साथ-साथ पूरे उत्तर भारत को परेशान कर रही है।
  • अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा द्वारा उत्तर भारत में फैले इस धीमे मौत के धुंए के बादल की एक तस्वीर जारी की गयी है।
  • जिसमें दिखाया गया है कि, यह धुंध दिल्ली के बाद लखनऊ, कानपुर, पटना और जयपुर तक पहुंच चुकी है।
  • अब सवाल ये है कि, इस धुंध के लिए जिम्मेदार किसे ठहराया जाए?
  • क्योंकि भारत जैसे देश में किसी ने किसी काम के लिए किसी को तो दोषी ठहराया ही जाता है।
  • लेकिन इस मामले में लोग एक मत नहीं हैं कुछ का मानना है कि, इसमें दिवाली में जलाये गए पटाखों की गलती है,
  • कुछ इसे किसानों के खेतों में जलाये जाने वाले पुवालों का प्रदूषण मानते हैं,
  • कुछ के हिसाब से यह दिल्ली की ‘सरकारों’ की गलती है।
  • लेकिन इस धुंध के लिए कोई एक या कुछ लोग नहीं बल्कि सभी जिम्मेदार हैं।

आपको याद है आपने आखिरी बार कब आपने देश की हवा में फैल रहे प्रदूषण को रोकने के लिए कोई कोशिश की थी?:

  • दिल्ली में जो प्रदूषण की धुंध फैली हुई है, उसके लिए सभी किसी ने किसी पर ऊँगली उठा रहे हैं।
  • माना कि, प्रदूषण नियंत्रण जैसे शब्द सरकारों के लिए बनाये गए हैं, लेकिन क्या हम और आप इस शब्द का मतलब जानते हैं?
  • जवाब होगा नहीं क्योंकि हो सकता है कि, आप इसका शाब्दिक अर्थ बता भी दें, लेकिन जिन्दा रहने और शुद्ध सांस लेने के मायनों में आपको इसका अर्थ नहीं पता है।
  • दिल्ली जैसे शहरों में जहाँ आदमियों से जायदा गाड़ियाँ सड़कों पर हैं, वह भी रोज नियम के साथ,
  • वहां आप किसी त्यौहार के चलते कुछ दिन जलने वाले पटाखों पर ही सारा दोष नहीं मढ़ सकते,
  • और न ही उन किसान पर जो साल में सिर्फ 2-3 बार अपने पुवाल को आग लगाता है।

आपको याद भी है कि, आपने आखिरी बार पब्लिक ट्रांसपोर्ट कब इस्तेमाल किया था?:

  • पेट्रोल-डीजल से दौड़ती गाड़ियाँ आजकल हर इंसान की जरुरत का हिस्सा बनती जा रही हैं, हालाँकि उनकी जरुरत नहीं है।
  • लेकिन क्या आपको याद है कि, आपने आखिरी बार अपने ऑफिस पहुँचने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल कब किया था?
  • या फिर आप भी बहुत भीड़ होती है का बहाना मारकर अपनी कार सड़क पर दौड़ा देते हैं।
  • वैसे गाड़ियों वाले जीवों में वे सबसे महान होते हैं जिनकी गाड़ी उतनी पुरानी होती है जितनी मुमताज़ की कब्र फिर भी शान से सड़कों पर साइलेंसर से धुआं छोड़ते हुए चलती हैं।
  • ऐसी न जानें कितनी ही गाड़ियाँ आप रोजाना सड़कों पर देखते हैं।

बदलाव चाहते हैं तो पहल कीजिये:

  • हवा में बढ़ रहे प्रदूषण जैसी समस्याओं को लेकर हम ऊदबिलावों की तरह दो टांगों पर खड़े होकर सरकार की ओर देखते हैं।
  • लेकिन कभी अपने गिरेहबान में नहीं झाकेंगे की पर्यावरण के लिए हमने ही क्या किया है आज तक?
  • क्योंकि जिम्मेदारी से नजर चुराना तो हम भारतीयों के DNA में पाया जाता है।
  • माना कि, पब्लिक ट्रांसपोर्ट इस्तेमाल करने से एक दिन में ही पर्यावरण नहीं बदल जायेगा।
  • लेकिन सोचकर देखिये अगर बदलाव के लिए सब एक-दूसरे का मुंह देखते रहेंगे तो कभी बदलाव नहीं आयेग।
  • बदलाव चाहते हैं तो खुद से पहल करें, पर्यावरण आपका भी है।
UTTAR PRADESH NEWS की अन्य न्यूज पढऩे के लिए Facebook और Twitter पर फॉलो करें