बलिया स्थित दूबेछपरा रिंग बांध टूटने के कारण करीब 50 हजार लोग प्रभावित हुए. दर्जनों गाँव इस बांध के टूटने के कारण बाढ़ के पानी में जलमग्न हो गए हैं. इस बांध को टूटने से बचाने के लिए गाँव के लोगों ने अपनी जान लगा दी लेकिन प्रशासन का सहयोग ना मिलने के कारण बांध आखिरकार टूट गया.

1952 में गीता प्रेस द्वारा निर्मित बांध अब सिंचाई विभाग के हवाले है.इसकी देखरेख का जिम्मा भी इसी विभाग के पास है. 2003 और  2013 में बांध टूटने के कारण मरम्मत के लिए उपाय किये गए. लगातार गाँव के लोगों ने कटान रोकने और स्थाई ठोकर का निर्माण करने को लेकर अनेकों बार सड़क जाम किया. धरना-प्रदर्शन से लेकर ज्ञापन दिए गए.लेकिन प्रशासन ने कटान रोकने के नाम पर बांध की मरम्मत कराने का निर्देश दिया.

सपा विधायक के भाई भी शामिल 9.36 करोड़ के टेंडर में 

प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके सपा विधायक अम्बिका चौधरी के भाई रमेश चौधरी समेत नंदजी यादव, शिवानन्द यादव के नाम पर टेंडर था. इसमें स्थानीय ठेकेदारों को भी काम दिया गया. बैरिया के तत्कालीन SDM शीतला प्रसाद भी इस बांध की मरम्मत के वक्त क्षेत्र में तैनात थे. मार्च-अप्रैल 2015 में इस बांध के मरम्मत का काम शुरू तो हुआ लेकिन इस बांध की मरम्मत में अनियमितताओं में भागीदार सब थे. ठेकेदारों ने आनन-फानन में काम पूरा कर दिया जिसका नुकसान गाँव के लोगों को उठाना पड़ा.ज्ञात हो कि बांध की मरम्मत का काम पूरा होने के बाद अनियमितताओं के आरोप झेल रहे SDM शीतला प्रसाद का तबादला भी हो गया था.

9.36 करोड़ के इस टेंडर पर काम का निरीक्षण करने के लिए उस वक्त कोई बड़ा अधिकारी मौजूद नहीं था और ठेकेदारों और इंजिनियर ने इस पैसे का जमकर दुरूपयोग किया.

dubeychhapra ring dam

रिंगबाध की मरम्मत में मानकों की हुई अनदेखी:

  • रिंगबांध के मरम्मत में जरुरी मानकों को ध्यान में नहीं रखा गया.
  • बता दें कि TS बांध के लिए जरुरी पब्लिक सेफ्टी स्टैण्डर्ड का ध्यान नहीं रखा गया.
  • इन मानकों के अनुसार अगर बांध का काम किया जाता तो बांध लम्बे समय तक सुरक्षित रहता.
  • पब्लिक सेफ्टी स्टैण्डर्ड कोड -IS 8826-1978, IS7894-1975, IS8605-1977 और IS11155-1994 TS बांध के लिए है.
  • ऐसे में ठेकेदारों की मनमानी और बांध के पैसे के लिए बन्दर-बाँट गाँव वालों के लिए मुसीबत ले आया.
  • बांध की मरम्मत के वक्त मिट्टी के बजाय 90% काम रेत के इस्तेमाल से किया गया.
  • और जहाँ भी मिट्टी का उपयोग किया गया उस मिट्टी की जाँच का काम भी नहीं किया गया.
  • कितने लेयर पर मिट्टी रहेगी, या फिर कितनी मिट्टी रहेगी कोई ध्यान नही दिया गया.
  • बेहद सामान्य तरीके से आनन-फानन में इस बांध को तैयार किया गया.
  • मुआवजा कुछ लोगों को दे दिया गया वहीं मिट्टी की चोरी भी की गई.
  • गाँव के बाहर रहने वाले परिवार के खेतों से मिट्टी निकाली गई और बांध में डाल दिया गया.
  • ये सारे काम ठेकेदारों के निर्देश पर मजदूरों ने किया.
  • जिसका खुलासा बाद में हुआ था.
  • विशेषज्ञ अभियंता की जगह जूनियर अभियंता ने काम को अंजाम दिया.
  • अनेक लूप होल होने के बावजूद मरम्मत का काम पूरा होना घोषित कर दिया.
  • मिट्टी बांध से 100 मीटर दूर से लायी जानी थी लेकिन पुराने बांध के 10 मीटर नजदीक ही गड्ढा कर दिया गया.
  • जिसके कारण बांध का बेस कमजोर हो गया और बाढ़ में नहीं टिक पाया.
  • वर्तमान HCM कुमार गौरव उस वक्त जूनियर इंजिनियर थे जब ये मरम्मत का कार्य चल रहा था.

पुरे मरम्मत कार्य में अनियमितताओं का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि विभाग ने अभी तक इससे जुड़ी कोई जानकारी नही दी. अधिकारी अब इससे अपना पल्ला झाड़ते नजर आ रहे हैं.

RING DAM

प्रशासन की लापरवाही से टूटा रिंग बांध:

कटान और बढ़ते जलस्तर के बीच पुरे क्षेत्र में HCM कुमार गौरव की लापरवाही की चर्चा है. ‘जियो बैग’ जो कि कटान रोकने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, कुमार गौरव ने इसका इस्तेमाल नही करने दिया. कुमार गौरव ने बोरी डालने के अलावा कटान रोकने के लिए किसी भी प्रकार की तकनीक का इस्तेमाल नही किया. कटान स्थल पर पर्याप्त मजदूरों के ना होने के कारण गाँव वाले खुद ही मिट्टी की बोरियां डालने का काम कई दिनों तक करते रहे.कुमार गौरव ने लगातार मिल रहे निर्देशों की अनदेखी की और ठेकेदारों के इशारे पर अपनी मनमाफिक जगह पर मजदुर भेजते रहे.

कुमार गौरव पहले भी ऐसी नीतियों के कारण चर्चा में रह चुके हैं और उनका तबादला भी हो चुका था. हालाँकि कुमार गौरव की कई मंत्रियों के साथ अच्छे संबंध हैं. लगातार मंत्रियों के संपर्क में रहने के कारण इन्हें पदोन्नति मिल गई और पुरे जिले का कार्यभार इन्हें देखकर वरिष्ठ इंजीनियर बनाकर बलिया भेज दिया गया.इसके कारण अभी तक उनपर कार्यवाही का इंतजार किया जा रहा है.

अब जबकि प्रशासन की लापरवाही के कारण बांध टूट गया तो अधिकारी भी अपना पल्ला झाड़ रहे हैं और प्रदेश सरकार भी सिंचाई विभाग के अधिकारियों पर कार्यवाही करने से कतरा रही है.

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