पंजाब में 2017 विधानसभा चुनाव में ड्रग्स का मुद्दा राज्य में छाया हुआ था. उस दौरान सत्ता में आने से पहले कांग्रेस ने 4 हफ्तों में ड्रग्स को जड़ से खत्म करने का दावा किया था. सरकार भी बदल गयी. लेकिन ड्रग्स का धंधा अभी भी वैसे ही चल रहा है. कांग्रेस की अमरिंदर सिंह की सरकार भी इसे उसी तरह से रोकने में नाकाम साबित हुई है जैसी पिछली सरकार हुई थी. 

धंधे में पुलिस के आला अधिकारियों की मिलीभगत की आशंका:

2017 में हुए विधानसभा चुनाव में अमरिंदर सिंह ने ड्रग्स को महज़ चार हफ्ते में खत्म करने का वादा किया था लेकिन वो ऐसा करते नज़र नहीं आ रहे हैं.

अमरिंदर सरकार के दौर में भी पुलिसवालों की मिलीभगत से ड्रग्स का धंधा ज़ोरों-शोरों से चल रहा है, जिसकी वजह से चार हफ्तों में ड्रग्स का धंधा खत्म करने का कांग्रेसी दावा झूठा साबित हो रहा है. ड्रग्स रैकेट की जांच करने वाले एसआईटी प्रमुख ने अदालत में कहा कि रैकेट में घिरे पुलिसवालों को बड़े अफसर ही बचा रहे हैं.

गौतलब है कि पंजाब उन राज्यों में शामिल है जहां ड्रग्स का धंधे को राजनीतिक और प्रशासनिक मिलीभगत से श्रय दी जाती है और तमाम सरकारें इसे रोकने में नाकाम रही हैं.

बता दें कि ड्रग्स पर रोक की नाकामयाबी में एक वजह और सामने आई है. 1986 बैच के पंजाब कैडर के आईपीएस और डीजीपी रैंक के अधिकारी सिद्धार्थ चट्टोपाध्याय पंजाब सरकार और हाईकोर्ट की ओर से गठित विशेष जांच टीम (एसआईटी) के इंचार्ज है. यह स्पेशल टीम ड्रग्स की समस्या से जुड़े तमाम पहलुओं की जांच कर रही है.

बताया जा रहा है कि चटोपाध्याय ने सीलबंद लिफाफे में अपनी जो रिपोर्ट सौंपी हैं जिनमें वरिष्ठ अधिकारियों पर उंगली उठाई गई है. इसमें उन्होंने पंजाब के डीजीपी सुरेश अरोड़ा, पंजाब पुलिस इंटेलीजेंस चीफ दिनकर गुप्ता और मोगा के एसएसपी राज जीत सिंह पर ड्रग्स सरगनाओं को संरक्षण देने के गंभीर आरोप लगाए हैं. साथ ही ये भी कहा है कि ये वरिष्ठ अधिकारी ड्रग्स के अवैध कारोबार के जरिए अपनी जेब भर रहे हैं.

बहरहाल इस समय जस्टिस सूर्यकांत की कोर्ट ने चड्ढा खुदकुशी केस में चटोपाध्याय की भूमिका को लेकर एसआईटी की जांच पर रोक लगा दी. जिसके बाद से पुलिस की ड्रग्स गतिविधियों में लिप्तिता और स्पष्ट हो रही है.

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