भारत की स्वतंत्रता की बात करते ही सबसे पहले 1857 की क्रांति का जिक्र होने लगता है। यह वह पहली क्रांति थी जिसने भारत की आजादी की आधारशिला रख दी थी। सबसे पहले आजादी का हक मांगकर अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर दी थी। उनके बागी तेवर के कारण उनकी आवाज को दबाने के लिए अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ा दिया। पर इस बागी की शहादत ने अंग्रेजों के चूलें हिला दी और समूचे देश में क्रांति का बिगुल फूंक दिया।

mangal pandey program in lucknow

शहीदों के सम्मान में झांसी के समाजसेवी सुशील गुप्ता ने ‘द हिन्दू फाउंडेशन’ के साथ मिलकर इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान के भव्य ऑडिटोरियम में सुशील गुप्ता ने एक कार्यक्रम आयोजित किया। सुशील ने मुख्यमंत्री भव्य सम्मान किया तो मुख्यमंत्री ने की सुशील गुप्ता के कार्यों की प्रसंशा की। सुशील गुप्ता ने कहा कि शहीदों के लिए हम हमेशा समर्पित हैं, अगला कार्यक्रम झांसी में होगा और मैं मुख्यमंत्री को आमंत्रित करूँगा।

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विद्रोह के कारण

बता दें कि इस क्रांतिकारी महापुरूष का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में ब्राह्मण परिवार में 19 जुलाई 1827 में हुआ था। बताया जाता है कि 1849 में 22 वर्ष की उम्र में अपनी आजीवका चलाने के लिए वह अंग्रेजी फौज में भर्ती हो गए थे। मंगल पांडेय कोलकाता के पास बैरकपुर की सैनिक छावनी में 34वीं बंगाल नेटिव इन्फ्रैंटी के सिपाही थे। मंगल पांडे ने 29 मार्च 1857 को रविवार के दिन अंग्रेज अफसरों पर हमला कर औपनिवेशिक शासन के खिलाफ अपने विद्रोह का बिगुल फूंका था। जिसे आज के ही दिन यानि 8 अप्रैल 1957 को फांसी दे दी गई।

कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी के इस्तेमाल की फैली थी अफवाह

भारतीय सिपाहियों में गोरे शासकों के प्रति पहले से ही असंतोष था लेकिन बंगाल की सेना में एनफिल्ड पी−53 राइफल के आने से यह विद्रोह की चिंगारी में बदल गया। एनफिल्ड राइफल के कारतूस को दातों से खींच कर चलाना पड़ता था। उस समय भारतीय सिपाहियों में अफवाह फैल गई कि गोली में गाय और सुअर की चर्बी का इस्तेमाल किया गया है। भारतीय सैनिकों ने आरोप लगाया कि अंग्रेजों ने ऐसा जानबूझकर किया है ताकि भारतीयों का धर्मभ्रष्ट किया जा सके। हिंदू और मुस्लिम सैनिकों ने इन राइफलों का इस्तेमाल करने से इंकार कर दिया। 9 मार्च सन् 1857 को एक बार फिर से अंग्रेजी सरकार ने अपने जवानों को नई कारतूस दी और कहा कि यह किसी भी जानवर की चर्बी से नहीं बनी हैं, तब मंगल पांडे से ये मानने से इनकार दिया।

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गिरफ्तार करने का किया हुकूम जारी

इसके बाद अंग्रेजी अफसर ने मंगल पांडे को गिरफ्तार करने का हुकूम जारी किया, लेकिन एक भी सैन्यकर्मी ने ऐसा नहीं किया. इसके बाद खुद पलटन के सार्जेंट हडसन मंगल पांडे को पकड़ने आगे बढ़ा तो, पांडे ने उसे गोली मार दी, इसके बाद जब लेफ्टीनेंट बल आगे बढ़ा तो उसे भी पांडे ने गोली मार दी। मौजूद अन्य अंग्रेज सिपाहियों नें मंगल पांडे को घायल कर पकड़ लिया। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ 29 मार्च को पहली बार चिंगारी फूंकी थी। वह गुलाम भारत के पहले शख्स थे, जिन्होंने ब्रिटिश कानून का विरोध किया था।

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गुपचुप तरीके से मंगल पांडे को दे दी फांसी

मंगल पांडे के विद्रोह को देखते हुए अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और उनका कोर्ट मार्शल किया गया। छह अप्रैल के दिन कोर्ट मार्शल का फैसला सुनाया गया जिसमें कहा गया कि 18 अप्रैल के दिन मंगल पांडे को फांसी दे दी जायेगी। उन्होंने बताया कि अंग्रेजों ने यह महसूस किया कि यदि फांसी देने में देर की गई तो और भी सैनिक बगावत में शामिल हो सकते हैं इसलिए आठ अप्रैल को ही गुपचुप तरीके से मंगल पांडे को फांसी दे दी गई।

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मंगल पाण्डेय के प्रपौत्र वधु को किया गया सम्मानित

अमर शहीद मंगल पांडे के 161 वें बलिदान दिवस के मौके पर उनके पैतृक गांव नगवां स्थित स्मारक परिसर में मंगल पांडेय विचार मंच के सदस्यों ने उनकी विशाल प्रतिमा के समक्ष पुष्प चढ़ा कर श्रद्धांजलि अर्पित किया। वहीं इस दौरान सदस्यों ने मंगल पाण्डेय की 93 वर्षीय प्रपौत्र वधु तेतरी देवी को उनके घर जाकर सम्मानित किया।

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