राप्ती नदी के कारण श्रावस्ती के सिसवारा और आसपास के गांवों के करीब दो-ढाई लाख लोगों का संपर्क जिला मुख्यालय, ब्लॉक व तहसील से संपर्क कट जाता है। थोड़ी दूरी पर स्थित अपने खेत पर पहुंचने के लिए भी कई किलोमीटर चलना पड़ता है। अगर रात को कोई बीमार हो जाए तो इकौना या गिलौला पहुंचने के लिए मीलों का सफर तय करना पड़ता है।

 नदी पर पुल बनाने की मांग करीब 30 वर्ष पुरानी है। हर मंच पर यह मुद्दा उठा। माननीयों और हुक्मरानों ने आश्वासन दिए लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी। ऐसे में सिसवारा के लोगों ने खुद ही पहल की। ‘अपना हाथ जगन्नाथ’ की तर्ज पर कड़ी से कड़ी जुड़ती चली गई। ग्रामीणों ने एक लाख रुपये चंदा जुटाया और बांस, बल्ली, खर-फूस से 15 दिन में करीब 120 मीटर लंबा अस्थायी पुल बना डाला।

गांव के राम नारायण कहते हैं, इसमें लगभग 50 लोगों का सहयोग रहा। पुल बनने से ग्रामीणों का जिला मुख्यालय, तहसील व ब्लॉक से संपर्क संभव हो गया है। समय की भी बचत हो रही है। पुल से रोजाना पांच से छह हजार लोग मोटर साइकिल, साइकिल व पैदल सफर करते हैं।

पुल की मरम्मत के लिए लेते हैं एक-दो रुपये

गांव के सोहन लाल वर्मा कहते हैं कि अस्थायी पुल होने के कारण कहीं खर-फूस हट जाता है तो कहीं बल्लियों का बंधन ढीला हो जाता है। हर दूसरे दिन इसकी मरम्मत करनी होती है। इसे देखते हुए पुल पर चलने वालों से एक से दो रुपये लिया जाता है। स्कूली बच्चों व किसानों से कोई पैसा नहीं लिया जाता।

जानकारी नहीं
एक वर्ष से जिला पंचायत की ओर से घाटों की नीलामी नहीं होती है। सिसवारा घाट व पुरुषोत्तमपुर घाट पर बने लकड़ी के पुल की जानकारी नहीं है।
– श्रीकांत दूबे, अपर मुख्य अधिकारी, जिला पंचायत

पुरुषोत्तमपुर के लोगों ने भी दिखाया था जज्बा
ऐसा ही हाल पुरुषोत्तमपुर घाट का भी था। आसपास के लगभग 70 हजार लोगों को भी रोजाना के कामकाज के लिए नदी पार करनी पड़ती है। वहां भी लोगों ने करीब महीना भर पहले खुद ही चंदा कर अस्थायी पुल बना लिया था।

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