मां दुर्गा के नव रूपों में चौथा रूप माता कूष्माण्डा का होता है। शारदीय नवरात्र के चौथे दिन देवी कूष्माण्डा जी की पूजा की जाती है। अपनी मन्द मुस्कान से अण्ड अर्थात ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण ही इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से जाना जाता है।

देवी कुष्मांडा :

  • देवी कूष्माण्डा इस जगत की अधिष्ठात्री हैं,माता कुष्मांडा ने ही इस सृष्टी की रचना की है।
  • जब सम्पूर्ण ब्रह्मांड में अन्धकार फैला था,तब माता कुष्मांडा प्रकट हुई,जिनका मुखमंडल सैकड़ों सूर्य की प्रभा से प्रदिप्त है।
  • कुसुम अर्थात फूल के समान मां कुष्मांडा की हंसी से ब्रह्माण्ड में चारों ओर उजाला ही उजाला फ़ैल गया।
  • देवी को कूम्हडे की बलि बहुत प्रिय है जिसे संस्कृत में कुष्मांड कहा जाता है इसी कारण इस देवी को कुष्मांडा कहा जाता है।
  • सूर्यमंडल के मध्य में देवी का निवास है यह देवी सूर्यमंडल को अपने संकेत से नियंत्रित रखती हैं।
  • सूर्यलोक में रहने की क्षमता केवल इसी देवी में है,इन्हीं के तेज़ से दसों दिशाएँ आलोकित हैं।
  • देवी कुष्मांडा को अष्टभुजा भी कहा जाता है क्यूंकि इनकी आठ भुजाएं होती हैं।
  • माता के हाथों में कमण्डलु,धनुष,बाण,कमल का फूल,अमृत से भरा कलश,चक्र तथा गदा है।
  • इस देवी के आठवें हाथ में सिद्धियों और निधियों को देने वाली बिजरंके (कमल फूल के बीज) की माला है।
  • देवी कुष्मांडा का वाहन सिंह है,जिस पर देवी सवार रहती हैं।

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देवी कुष्मांडा की पूजा से होगा भक्तों का कल्याण :

  • जो भक्त सच्चे मन से देवी की उपासना करेगा उसके सभी प्रकार के कष्ट,रोगों व शोक का अंत होगा।
  • देवी की पूजा करने वालों की आयु बढ़ेगी साथ ही यश की भी प्राप्ति होगी।
  • माता की पूजा करने से भक्तों को अनहत चक्र की प्राप्ति होती है,जिससे वे सभी प्रकार के भय से मुक्त हो जाते हैं।
  • सच्चे मन से पूजा करने वालों को सुगमता से परम पद प्राप्त होता है।
  • माँ कुष्मांडा की उपासना करने से भक्तों को सुख सम्रद्धि प्राप्त होती है और हर कार्य में उनकी उन्नति होती है।
  • देश भर के हर मंदिरों में देवी कुष्मांडा की पूजा बड़े ही विधि विधान से की जाती है।
  • हर छोटे बड़े मंदिरों में भक्तों की लम्बी कतारें लगी रहती हैं सभी माँ से मुराद मांगते हैं।
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