साल 1986 को अदालत ने अयोध्या के राम मंदिर का ताला खोलने का आदेश जारी किया था. ये फैसला फैज़ाबाद जिला न्यायधीश के.एम. पांडेय ने सुनाया था. सुनवाई के दौरान एक ऐसा वाक्या हुआ था, जो आज राम जन्म भूमि मामले में एक दिलचस्प किस्सा बन गया है. इसी किस्से के बारे में खुद जस्टिस पांडेय से जानने के लिए UttarPradesh.Org की टीम उनके घर पहुंची. जस्टिस पांडेय तो अब हम सब के बीच नहीं रहे लेकिन उनके बड़े बेटे से UttarPradesh.Org की टीम ने खास बातचीत की.  

राम मंदिर – एक ऐसा विषय जो हमेशा से ही भारतीय राजनीति में प्रासंगिक रहा है. किसी के लिए यह राम मंदिर है, किसी के लिए बाबरी मस्जिद तो किसी के लिए मात्र एक विवादित ढांचा. जहाँ एक तरफ राम मंदिर से लाखों-करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी है वहीँ दूसरी ओर सालों से चल रहे इस विषय से जुड़े है सैकड़ों किस्से. इन्हीं किस्सों में से एक है ‘चमत्कारी बंदर’ का किस्सा.

फैसले के दिन हुआ था कुछ खास:

हमारी  UttarPradesh.Org  की टीम राम जन्म  भूमि का फैसला सुनाने वाले जस्टिस के.एम. पांडे के घर पहुंची. जहाँ पर उनकी बात जस्टिस पांडे के बड़े बेटे राकेश पांडे से हुई. इस दौरान उनके बेटे ने उस दौरान घटे कई सारे किस्सों के बारें में हमे बताया.

जब राकेश पाण्डेय से पूछा गया की जिस दिन ये फैसला आना था उस दिन ऐसी क्या दिलचस्प घटना घटी थी,

तब उन्होंने बताया की जिस दिन ये फैसला आना था उस दिन सुबह से ही उनकी अदालत क उप्पर जो झंडे फैराए जाते है,

उस झंडे को पकड़ कर एक लंगूर बंदर उसके चक्कर काट रहा था. लोगो ने उस बंदर को केला और मूंगफली खिलाने की कोशिश की लेकिन उसने कुछ नही खाया.

उन्होंने ये भी बताया की वो बंदर शाम को 4 बजे के जजमेंट देने के बाद गायब हो गया वहां से और दिखा नही,

लेकिन जैसे ही जस्टिस पांडे अपने घर वापस लौटे तो वो बंदर वही खड़ा था उनके सामने हाथ जोड़कर नमस्कार किया और फिर वहां से चला गया.

राजनीतिक दवाब में नही लिया फैसला:

जब उनसे सवाल किया गया कि जस्टिस पांडे पर केस की सुनवाई के दौरान फैसले को लेकर किसी तरह का दवाब या प्रभाव था, तो उन्होंने बताया की ये एक न्यायिक प्रक्रिय थी, जो भी फैसला लिया गया वो उनके विवेक से लिया गया.

इस फैसले के पीछे किसी भी पॉलिटिकल पार्टी का दवाब नही है. ये उनका अकेले का फैसला है.

जब राकेश पाण्डेय से राम जन्म भूमि के मामले के बारें में पूछा गया तो उन्होंने ये बताया कि ये पूरा मामला लोगो की आस्था पर है,

क्यूंकि हिन्दू ये मानते है की इस जगह पर भगवान राम का जन्म हुआ था और सारी लड़ाई भी इसी बात पर हाई कोर्ट में चल रही थी

खुदाई में मिले मंदिर होने के तथ्य:

इतना ही नहीं उन्होंने ये भी बताया की हाई कोर्ट ने आदेश दिया था उस जगह की खुदाई करने के लिए ताकि जान सके आखिर उस में ऐसा क्या है.

और जब खुदाई करी गयी तो उसमे ऐसे कई तथ्य निकले जिससे ये साबित हुआ की यहां पर मंदिर था पहले से और इसी के आधार पर हाई कोर्ट ने ये फैसला दिया की यहां भगवान राम का ही जन्म स्थान था.

मामले को लेकर लोगों ने उठाया राजनीतिक फायदा:

जस्टिस पांडे के बेटे का ये भी कहना था की इस फैसले को लेकर लोगों ने इसे पॉलिटिकल बातों से जोड़ दिया, जब की ये सारी बातें सबकी आस्था से जुड़ी है.

इस मामले को लेकर लोगों ने राजनीतिक फायदा भी खूब उठाया, फैसले के बाद सरकार भी बनी लेकिन जो ये कहते है कि फैसला उनके कारण आया तो सरासर गलत है.

जस्टिस पांडे को मिला राजनीतिक प्रस्ताव:

इसके साथ ही उन्होंने बताया कि इस मुक़दमे के दौरान उनके पिता जस्टिस पांडे को राज्यसभा भेजने का प्रस्ताव भी दिया गया था,

लेकिन जस्टिसक पांडे ने इस प्रस्ताव को साफ मना करते हुए कहा कि उन्हें राजनीति में कोई रूचि नही है और अगर वे राजनीति में आते है तो लोगो का उन पर से विश्वास उठ जायेगा.

उन्होंने ये भी बताया कि फैसले के बाद उनके ऊपर कई दवाब पड़े , इसके बावजूद उन्होंने कोई लाभ लेने की कोशिश नही की.

मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने की कोशिश:

इसके बाद इस फैसले को लेकर हाई कोर्ट में मुकदमा चला और जो सच्चाई थी वो धीरे धीरे सामने आई. खुदाई में जो पत्थर निकले, धार्मिक कलश भी मिले और तमाम ऐसी चीज़ें जो हिन्दू धर्म में पाई जाती है.

तो इन सभी चीज़ों से ये साबित होता है कि मंदिर को ही तोड़कर के मस्जिद बनाने का प्रयास किया गया है.

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