भारतीय जूनियर हॉकी टीम ने हॉकी के इतिहास में सुनहरे शब्दों में अपनी जीत दर्ज की है. इस जीत का श्रेय टीम के खिलाडियों को तो मिलता ही है इसके साथ ही टीम से जुड़े हर व्यक्ति जीत की ख़ुशी मना रहा है. लेकिन कोई ऐसा है जिसका मकसद केवल मुकाबला जीतना नहीं था बल्कि इस मैच को जीतने के साथ ही अपना वजूद भी तलाश करना था. हम बात कर रहे है भारतीय हॉकी जूनियर टीम के कोच हरेंद्र सिंह की.

आंसू नहीं रोक पाएं कोच-

  • पूरी दुनिया जूनियर हॉकी टीम की जीत का जश्न मना रही थी.
  • तब टीम के कोच हरेंद्र सिंह की आँखे नम थी.
  • हरेंद्र सिंह की आँखे में ख़ुशी के अनसु झलक रहे थे.
  • बता दें कि रविवार को जूनियर हॉकी वर्ल्ड कप के फाइनल में भारत ने बेल्जियम को 2-1 से हराया था.
  • इसके साथ ही 15 साल के बाद दूसरी बार वर्ल्ड चैंपियन का खिताब अपने नाम किया.

पुराने ज़ख्म भरे-

  • 11 बरस पहले रोटरडम में ब्रांज मैडल के मुकाबलें में स्पेन ने भारत को पेनलिटी शूटआउट में हराया था.
  • यह हार हरेंद्र सिंह को एक गहरा ज़ख़्म दे गई थी.
  • लेकिन हरेंद्र सिंह ने हार नहीं मानी.
  • अपने 16 साल के कोचिंग करियर के बाद दो साल पहले जूनियर टीम की कमान संभाली थी.
  • तभी से वो इस जीत की तैयारियों में जुट गए थे.
  • उन्होंने खिलाड़ियों में आत्मविश्वास और हार ना मानने का जज्बा भरा.
  • हरेंद्र ने टीम को एक टीम के रूप में जीतना सिखाया.
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