जैन धर्म के प्रवर्तमान काल के चौबींसवें तीर्थंकर महावीर स्वामी जी अहिंसा के प्रतीक थे। उनका जीवन त्याग और तपस्या से ओतप्रोत था। महावीर स्वामी जी का जन्म 599 ई. पूर्व माना जाता है। वे बाल्यकाल से अत्यन्त साहसी, तेजस्वी और बलशाली थे जिसके कारण वे महावीर कहलाए, उनके बचपन का नाम वर्धमान था।

महावीर जी के जीवनोपदेशः-

  • किसी भी जीवित प्राणी अथवा जीव से हिंसा न करें।
  • आजन्म ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें, मिथ्या अर्थात झूठ ने बोलें।
  • किसी भी वस्तु को किसी के दिये बिना स्वीकार न करें, वस्त्रों के अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु का संचय न करें।
  • किसी आत्मा की सबसे बड़ी गलती अपने असली रूप को न पहचानना है, और यह केवल आत्मचिन्तन से ही ठीक हो सकती है।
  • यदि आप ने कभी किसी का भला किया हो तो भूल जायें और यदि कभी किसी ने आप का बुरा किया हो तो उसे भी भूल जांए।
  • किसी के अस्तित्व को मत समाप्त करों, दूसरों को भी शांतीपूर्वक जीने का अधिकार दो।
  • वास्तविक शत्रु आप के भीतर रहते हैं, वो शत्रु हैं क्रोध, लालच, घमण्ड और वासना।
  • खुद पर विजय प्राप्त करना लाखों शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने से बेहतर हैं।
  • स्वयं से लड़ो, बाहरी दुश्मन से क्या लड़ना? जो स्वयं पर विजय प्राप्त कर लेगा उसे आनन्द की प्राप्ति होगी।
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