हाल ही में देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया था कि, चुनाव के दौरान कोई भी नेता जाति और धर्म का इस्तेमाल कर वोटबैंक को आकर्षित नहीं करेगा। सभी यह जानते हैं कि, उत्तर प्रदेश समेत 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। जिसमें नेताओं और राजनीतिक दलों द्वारा अपने-अपने वोटबैंक को आकर्षित करने के लिए सभी साम-दाम-दंड-भेद अपनाये जाते हैं। आइये आपको बताते हैं कि, सुप्रीम कोर्ट को चुनाव में जाति-धर्म का इस्तेमाल करने से क्यों मना करना पड़ा।

यूपी विधानसभा चुनाव में जाति-धर्म का बोलबाला:

  • उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में अब लगभग एक महीने का समय बाकी रह गया है।
  • यूपी चुनाव के बारे में हमेशा से ऐसा कहा जाता है कि, यहाँ का चुनाव जाति-धर्म से अलग होकर नहीं लड़ा जा सकता है।
  • इस कहावत को एक प्रकार से बिल्कुल सही माना जा सकता है।
  • सभी नेता बात यह जानते हैं कि, यूपी में वोटिंग प्रत्याशी देखकर नहीं बल्कि, जाति देखकर होती है।
  • इतना ही नहीं हर राजनीतिक दल के पास अपने-अपने वोटबैंक को लेकर रणनीतियां भी होती हैं।
  • सूबे की समाजवादी पार्टी पहले से ही यादवों और कुछ भाग मुस्लिमों की रहनुमा बनी हुई है।
  • वहीँ बसपा सुप्रीमो खुद को हमेशा से ही दलितों का हितैषी बताती आई हैं।
  • यूपी चुनाव के तहत कांग्रेस ने सवर्णों को रिझाने के लिए लगभग सेवानिवृत हो चुकीं शीला दीक्षित को CM उम्मीदवार बना दिया।
  • वहीँ दलित वोटबैंक को रिझाने और बसपा के वोटबैंक में सेंध लगाने के लिए भाजपा ने केशव मौर्य की तैनाती कर दी।
  • उत्तर प्रदेश का सिंहासन जीतने के लिए 30 फ़ीसदी वोटों की जरुरत होती है।
  • लेकिन ये 30 फ़ीसदी वोट 4 जातियों के बीच बंटे हुए हैं।

समाजवादी पार्टी:

  • समाजवादी पार्टी के पास अपना यादव और मुस्लिमों का परंपरागत वोटर है।
  • जानकारी के मुताबकि, सूबे के 80 फ़ीसदी यादव सपा को ही वोट देते हैं।
  • वहीँ प्रदेश के 50 फ़ीसदी मुसलमान सपा के लिए वोटिंग करते हैं।
  • यादव, मुसलमान के अलावा राजपूत, ब्राह्मण, कुर्मी और अन्य पिछड़ी जातियों पर भी सपा की पैठ है।

पार्टी की चुनावी रणनीति:

  • सपा चुनाव के तहत यादव-मुस्लिम और गैर यादव OBC फार्मूले पर प्रत्याशियों का चयन।
  • परंपरागत वोटबैंक के अलावा सवर्णों पर भी पार्टी की नजर।

बहुजन समाज पार्टी:

  • दलित और अनुसूचित जाति परंपरागत वोटर हैं।
  • पार्टी जाटव अनुसूचित जाति पर एकतरफा हाथ साफ़ करती है।
  • इसके अलावा गैर जाटव दलित वोटबैंक के लगभग 4 फ़ीसदी हिस्से पर पार्टी की पकड़ है।
  • अति पिछड़ा वर्ग में भी पार्टी की संतोषजनक पकड़ है।
  • वहीँ निर्णायक मुस्लिम मतदाताओं के वोट के 40 फ़ीसदी हिस्से पर बसपा की पैठ है।

पार्टी की चुनावी रणनीति:

  • सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद पार्टी ने 45 फ़ीसदी सीटों पर दलित और मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं।
  • इसके अलावा सवर्णों को लुभाने के लिए 66 सीटों पर ब्राह्माण प्रत्याशी उतारे हैं।

भारतीय जनता पार्टी:

  • सामान्य, गैर यादव ओबीसी, अन्य अति पिछड़े और गैर जाटव दलित पर भाजपा की अच्छी पकड़ है।
  • एक विश्लेषण के के मुताबिक, सामान्य से भाजपा को 56 फ़ीसदी ब्राह्मण, 3 फ़ीसदी क्षत्रिय(ठाकुर), 1.5 फ़ीसदी वैश्य के वोट मिलते हैं।
  • इसके अलावा अति पिछड़े वर्ग से लोध 7 फ़ीसदी, कुशवाहा से 14 फ़ीसदी, कुर्मी 3 फ़ीसदी भाजपा के परंपरागत वोटर हैं।
  • भाजपा की गैर जाटव वाल्मीकि, धोबी, खटीक, कोल, गोड़, खरवार पर पकड़ है।

पार्टी की चुनावी रणनीति:

  • भाजपा ने सूबे के 23 जिलों में पिछड़ी जाति से आने वाले, 3 जिलों में दलित अध्यक्ष।
  • इसके अलावा पार्टी ने एक आदिवासी समेत 3 पिछड़ी जाति के क्षेत्रीय अध्यक्ष बनाये हैं।
  • इतना ही नहीं पार्टी ने अति पिछड़े वर्ग के नेता केशव प्रसाद मौर्य को यूपी भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया है।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस:

  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस वैसे तो भारत में लगभग हर जगह अपना जनाधार खो चुकी है।
  • यही हाल पार्टी का उत्तर प्रदेश में भी है, जहाँ पार्टी 27 साल के लम्बे वक़्त से सत्ता से दूर है।
  • पार्टी का सवर्ण, दलित और मुस्लिम वोटबैंक अब बंट चुका है।
  • इसके बावजूद पार्टी के पास अपना एक परंपरागत वोटर है, जिससे कांग्रेस को करीब औसतन 9 फ़ीसदी वोट मिलते हैं।
  • वहीँ विधानसभा में 24 सीटों पर कब्ज़ा है।

पार्टी की चुनावी रणनीति:

  • कांग्रेस इस चुनाव में सामान्य, पिछड़े और मुस्लिम वोटबैंक को रिझाने का प्रयास कर रही है।
  • वहीँ पार्टी समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर अपनी स्थिति को मजबूत करने के प्रयास में भी लगी हुई है।
  • सपा के पास मौजूदा समय में सूबे के 25 फ़ीसदी वोट हैं, जिसमें कांग्रेस के 9 फ़ीसदी वोट को जोड़कर सत्ता तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।

SC के आदेशों की हो रही है अवहेलना:

  • सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में चुनाव प्रचार के दौरान जाति और धर्म के जिक्र पर रोक का आदेश दिया था।
  • जिसके बावजूद राजनीतिक दलों द्वारा SC के आदेश की अवहेलना जारी है।
  • बसपा सुप्रीमो ने SC के आदेश के अगले दिन 3 जनवरी को ही प्रेस कांफ्रेंस में आदेश की अवहेलना कर दी थी।
  • जिसमें उन्होंने कहा था कि, “दलित और मुस्लिम मिलकर बसपा की सरकार बनवायेंगे”।
  • इसके अलावा मुस्लिमों से अपील करते हुए बसपा सुप्रीमो ने कहा था कि, भाजपा को हराने के लिए विरोधी प्रत्याशियों को वोट दें।
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