उत्तर प्रदेश की राजनीति में समाजवादी परिवार के उद्भव की कहानी में मैनपुरी अहम किरदार रहा है. सपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह के इलाके में लोग उन्हें ‘दद्दा’ कहते हैं. पार्टी में लोग सम्मान के साथ ‘नेताजी’ कहते हैं. एक छोटे से परिवार से निकलकर यूपी की राजनीति में खुद को एक स्तम्भ के रूप में स्थापित करने वाले मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी की सीट से 1996 लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की थी.

लोकसभा चुनाव में इस सीट पर यादव परिवार का कब्ज़ा है और इस परिवार का ही कोई न कोई सदस्य सांसद चुना जाता है. लोकसभा 2014 के चुनाव में मुलायम सिंह ने आजमगढ़ के अलावा मैनपुरी से भी चुनाव लड़ा और दोनों सीटों पर जीत दर्ज की. लेकिन जब एक सीट छोड़ने की बात हुई तो उन्होंने मैनपुरी की सीट से भतीजे तेजप्रताप (तेजू) को उपचुनाव में उतारा। मैनपुरी में चार विधानसभा सीटों सदर, करहल, किशनी और भोगांव पर भी सपा का ही कब्ज़ा है.

शिवपाल समर्थक बसपा के खेमे में:

2002 और 2007 में मैनपुरी सदर की सीट पर यादव और मुस्लिम मिलकर जिताऊ समीकरण बनाते हैं, फिर भी ब्राह्मण, ठाकुर, और लोधी वोट एक तरफ हुआ तो बीजेपी यहाँ पासा पलट सकती है. मैनपुरी सदर सीट से सपा के राजकुमार यादव 2012 में चुनाव जीते थे. बीएसपी से पिछली बार रमा शाक्य लड़ी थीं, जो अब भाजपा के टिकट पर करहल विधानसभा सीट से अपनी किस्मत आजमा रही हैं.

मैनपुरी सदर से बसपा ने महाराज सिंह शाक्य को टिकट दिया है.शाक्य और दलित उनके साथ आते दिखाई दे रहे हैं लेकिन सबसे अहम बात है शिवपाल यादव के समर्थकों का बसपा प्रत्याशी के समर्थन में लामबंद होना. मुलायम के गढ़ में ये समीकरण कोई सपा में कलह का नतीजा ही माना जा रहा है. शिवपाल समर्थक यादव अब दूसरे दल यानी बसपा के खेमे में जाते दिखाई दे रहे हैं जो कि सपा के लिए अच्छा संकेत नहीं है. मुलायम सिंह के गढ़ में शिवपाल यादव और अखिलेश समर्थकों का आमने-सामने आ जाना ये बताने के लिए काफी है कि कुनबे में जो लड़ाई चल रही है, उसका असर जमीन पर भी दिखाई दे रहा है.

वोट मैनपुरी का विकास सैफई का:

हालाँकि मैनपुरी सदर की इस सीट पर राजकुमार यादव की दावेदारी मजबूत नहीं जान पड़ती है. बीजेपी के अशोक सिंह चौहान और बसपा के महाराज शाक्य दोनों ही मजबूत टक्कर देते दिखाई दे रहे हैं. मैनपुरी में राजकुमार को लेकर अलग-अलग बातें सामने आती हैं. पैसे कमाने के आरोपों के बीच लोगों के साथ घुलमिलकर रहना एक वो कारण है जिसके बाद मुकाबले से ‘आउट’ मानना भूल ही होगी.

हालाँकि मैनपुरी के लोगों में क्षेत्र का विकास सैफई की तर्ज पर ना हो पाना चुभता है. उनकी आँखों में सैफई चकाचौंध चुभती रही है. हालाँकि कभी खुलकर मुलायम का विरोध करते ये लोग नजर नहीं आये लेकिन इनको लगता है कि जो सुविधाएँ मिलनी चाहिए थीं वो नहीं मिली। यहाँ के लोग कहते हैं – ‘वोट मैनपुरी का और विकास सैफई का’

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