मायावती सरकार में हुए चीनी मिलों की बिक्री में घोटाले की जांच जैसे ही योगी सरकार (Yogi Sarkar) ने नए सिरे से करवानी शुरू की तो अफसरों में खलबली मचीमच गई है। जांच के आदेश होते ही घोटालेबाज अधिकारियों की नींद उड़ी हुई है। बता दें कि चीनी मिलों की बिक्री में हुए करोड़ों के इस घोटाले की नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने जांच की थी।

  • पूर्व सपा सरकार ने भी इसकी जांच कराई, लेकिन सेटिंग के चलते जांच ठंडे बस्ते में डाल दी गई।
  • अब योगी सरकार ने चीनी मिलों की बिक्री में हुए 1180 करोड़ रुपये के घोटाले की जांच के निर्देश दिए तो जिम्मेदारों की नींद उड़ गई है।
  • जांच में कई घपलेबाजों पर शिकंजा कसना तय है।

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क्या है पूरा मामला

  • दरअसल, मायावती के शासनकाल में वर्ष 2010 में जुलाई से अक्‍टूबर और 2011 में जनवरी से मार्च के बीच दो चरणों में क्रमश: 10 और 11 चीनी मिलों को बेचा गया।
  • पहले चरण की बिक्री वाली 10 मिलों को सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी इंडियन पोटाश लि. ने खरीदा।
  • वहीं, दूसरे चरण की 11 चीनी मिलों को एक ही प्रबंधन ने अलग-अलग कंपनियों के नाम से खरीद लिया था।
  • सीएजी ने चीनी मिलों की बिक्री पर 2012 में पेश अपनी ऑडिट रिपोर्ट में खुलासा किया था कि विनिवेश, परामर्शी मूल्यांकन और कंसल्टेंसी मॉनिटरिंग के नाम पर बनाई गई।
  • आईएएस अफसरों की कमेटियों तक ने इसमें दलालों की तरह भूमिका निभाई।
  • सीएजी ने निष्कर्ष निकाला था कि मिलें किसे बेचनी हैं। यह बिडिंग प्रक्रिया शुरू किए जाने से पहले तय था।

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  • बिडर्स को वित्तीय बिड भी पहले ही बता दी गई थी।
  • इस पर भी काम नहीं बना तो बिडिंग के बीच में ही प्रक्रिया बदल दी गई।
  • मिलों की बिक्री के समय उसकी जमीन, प्लांट व मशीनरी की कीमत तय करने के पीछे भी खजाने को चपत लगाने की बदनीयती रही।
  • बाद में, रजिस्ट्री के लिए स्टांप ड्यूटी भी कम तय कर दी गई।
  • मिलें बेचने में सरकार को क्रमश: 841.54 करोड़ और 338.30 करोड़ रुपये यानी कुल 1179.84 करोड़ रुपये की चपत लगी।
  • यूपी राज्य चीनी निगम लि. (यूपीएसएससीएल) की मिलों को बेचने पर 841.54 करोड़ का नुकसान हुआ।
  • यूपी राज्य चीनी एवं गन्ना विकास निगम लि. (यूपीआरसीजीवीएनएल) की मिलों को बेचने की प्रक्रिया में 338.30 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
  • सीएजी की जांच रिपोर्ट पर प्रदेश सरकार की दलील थी कि चीनी मिलों के विनिवेश का हर चरण मंत्रिपरिषद से अनुमोदित है और मंत्रिपरिषद के फैसले सीएजी के ऑडिट दायरे के बाहर हैं।
  • सीएजी ने सरकार की दलील को खारिज करते हुए कहा था राज्य सरकार के 25 अप्रैल 2003 की अधिसूचना के तहत पूरी विनिवेश प्रक्रिया की लेखा परीक्षा का अधिकार उसे मिला हुआ है।

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  • बिक्री होने वाली चीनी मिलों में यूपीएसएससीएल की 10 मिलें हैं इनमें चांदपुर, जरवल रोड, अमरोहा, बिजनौर, बुलंदशहर, खड्डा, रोहनकलां, सकौती टांडा, सहारनपुर व सिसवा बाजार हैं। इस प्रक्रिया में मोहिउद्दीनपुर की चीनी मिल बेची नहीं जा सकी।
  • दूसरे चरण की बिक्री में यूपीआरसीजीवीएनएल की 11 मिलें हैं इनमें बरेली, भटनी, चेतानी, बेतालपुर, बाराबंकी, रामकोला, शाहगंज व हरदोई, देवरिया, गुग्ली, लक्ष्मीगंज हैं।
  • सीएजी की पड़ताल में यह भी खुलासा हुआ था कि शराब व्यवसायी गुरदीप सिंह उर्फ पौंटी चड्ढा चीनी मिलों की खरीद में फायदे में रहे थे।

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  • बताते चलें, पौंटी का बसपा-सपा में बराबर का दखल माना जाता था।
  • इस दौरान सीएजी ने कहा कि इससे लगी चपत का मौद्रिक मूल्य तय नहीं हो सकता।
  • खास कंपनी को कौड़ियों के भाव में मिलें देने के लिए अफसरों ने सारे तिकड़म लगा दिए।
  • पहले तो सलाहकार ने जमीन के मूल्य में ही 30 फीसदी तक कमी की।
  • इसके बाद भूमि व भवन पर अतिरिक्त 25 प्रतिशत छूट दे दी गई।
  • चालू हालत वाले प्लांट व मशीनरी को कबाड़ मान कर मूल्यांकन किया गया।
  • इसी तरह उप्र राज्य चीनी एवं गन्ना विकास निगम लिमिटेड (यूपीआरसीजीवीएनएल) की 11 मिलों के मूल्यांकन में गड़बड़ी मिली।

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  • मूल्यांकन में स्टांप ड्यूटी एवं रजिस्ट्रेशन फीस आदि के कारण पांच प्रतिशत छूट दी गई।
  • प्लांट व मशीनरी का मूल्यांकन कम स्क्रैप मूल्य पर किया गया।
  • 21 मिलों के मूल्यांकन व अपेक्षित मूल्य तय करने में 840.34 करोड़ की कमी की गई।
  • मूल्यांकन की प्रक्रिया में संशोधन से 243.48 करोड़ रुपये की चपत लगी।
  • इसमें 192.48 करोड़ तो भवन को जमीन के साथ शामिल करने व जमीन व भवन पर अतिरिक्त छूट देने से हुआ।
  • चीनी मिलों के प्लांट व मशीनरी के कबाड़ की कीमत पहले 114.96 करोड़ तय की गई।
  • बाद में इसे 32.88 करोड़ कर दिया गया।

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  • सीएजी का कहना है कि सभी मिलें 2009-10 तक संचालित थीं।
  • जरवल रोड, सहारनपुर, सिसवा बाजार मिलों ने वर्ष 2008-09 में और खड्डा मिल ने वर्ष 2009-10 में लाभ कमाया।
  • 10 चालू मिलें 61 प्रतिशत से लेकर 95 प्रतिशत तक की क्षमता से चलीं।
  • इन मिलों की औसत उपभोग क्षमता बिकने के बाद 67 प्रतिशत से बढ़कर 81 प्रतिशत तक थी।
  • ऐसा माना जा रहा है कि (Yogi Sarkar) अगर सही तरीके से जांच हो गई तो कई अफसरों की गर्दन फंसना तय है।

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