कई बार माँ बाप की डांट से परेशान होकर बच्चे घर को छोड़कर भाग जाते हैं। कई बच्चे शहर छोड़ने के लिए ट्रेनों में चढ़ जाते हैं। एक अनुमान के मुताबिक हर साल ट्रेनों में यात्रा के दौरान 70 हजार से एक लाख बच्चे लापता हो जाते हैं।  ट्रेनें उत्तर प्रदेश से होकर पूरब, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशाओं से गुजरती हैं। लिहाजा मानव तस्करी और बच्चों की गुमशुदगी की दृष्टि से यूपी अत्यंत महत्वपूर्ण है। उसमे भी रेलवे के माध्यम से इस काम को आसानी से अंजाम दिया जाता है। ये जानकारी खुद एडीजी रेलवे और जीआरपी प्रमुख वीके मौर्य ने दी।

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इस वर्ष 227 बच्चे मिले लावारिस

  • बाल संरक्षण के क्षेत्र में कार्य कर रहीं सभी सरकारी और गैर सरकारी संगठनों के बीच आपसी समन्वय होना जरूरी है।
  • एडीजी रेलवे ने कहा कि उत्तर प्रदेश के रेलवे रूटों और ट्रेनों में विशेष सतर्कता बरतने की जरूरत है।
  • बेहतर तालमेल से लावारिस मिले बच्चों को उनके अभिभावकों तक सुरक्षित पहुंचाया जा सकता है।
  • एडीजी रेलवे ने मानव तस्करी से जुड़े अपराधिक तत्वों को चिन्हित करने के लिए निर्देश दिए हैं।
  • आरपीएफ,जीआरपी के साथ ट्रेनों में चलने वाले टीटीई से अटेंडेंट को संवेदनशील बनाने को कहा।
  • उन्होंने कहा कि यह लोग ट्रेनों में यात्रियों को भी समय समय पर जागरूक करें।
  • जिससे तुरंत सूचना मिल सके। सभी स्टेशनों के आसपास के क्षेत्रों पर कड़ी नजर रखी जाए।
  • जिससे कोई मानव तस्कर स्टेशन में न प्रवेश कर पाए।
  • एसपी रेलवे सौमित्र यादव ने बताया कि इस वर्ष अब तक चारबाग स्टेशन पर 227 बच्चे लावारिस हालत में मिले थे।
  • इसमें से नौ बच्चों के माता पिता का पता नहीं चल सका। उनको बाल संरक्षण गृह भेजा गया है।
  • जबकि शेष 218 बच्चों को उनके अभिभावकों तक सुरक्षित पहुंचा दिया गया है।

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