उत्तर प्रदेश विधानपरिषद चुनाव के लिए सूबे की 13 सीटों पर वोटिंग पूरी हो चुकी है और अब सभी की निगाहें नतीजों पर लगी हुई हैं। राज्य की 13 सीटों पर हो रहे चुनाव के लिए 14 उम्मीदवार होने से क्रास वोटिंग की संभावनाए बढ़ गई हैं। राज्य के विधानसभा चुनावों में अभी समय शेष है लेकिन विभिन्न दलों के बीच जोड़ तोड़ की कोशिशें तेज हो गई हैं।

सूबे में सत्ताधारी दल के दो विधायकों ने जहां पार्टी लाइन से हटकर क्रास वोटिंग की है वही अन्य दलों में भी कमोबेश यही हाल है।

सपा विधायक गुड्डू पंडित और मुकेश शर्मा ने भाजपा नेता संगीत सोम के साथ जा कर परिषद के लिए वोटिंग की, वहीं कादिपुर विधायक रामप्रसाद चौधरी के भी क्रास वोटिंग करने की चर्चा है। इसके साथ ही लखनऊ से सपा विधायक रविदास मेहरोत्रा के भी क्रास वोटिंग करने की आशंका है, आज सुबह से ही उनका सपा नेताओं से संर्पक नहीं हैं, खबर है कि सपा के करीब आधा दर्जन विधायकों ने परिषद चुनाव में क्रास वोटिंग की है, और अब वह अन्य दलों में अपना भविष्य तलाश रहें हैं।

सपा के साथ साथ बसपा, भाजपा, कांग्रेस और अन्य छोटे दलों में भी बगावत के शुर सुनाई पड़ने लगे हैं।

डॉ अयूब की पीस पार्टी से तीन विधायक हैं, जिसमें से दो सपा का दामन थाम चुके हैं, और सपा ने उन्हें अगले चुनाव में टिकट भी दे दिया है। अब डॉ अयूब अकेले पार्टी में बचे हुए हैं और उन्होने कांग्रेस के समर्थन का ऐलान किया है।

हाल में बसपा से बगावत करने वाले पार्टी के निलंबित विधायक राजेश त्रिपाठी भी क्रास वोटिंग करेगें। सूत्रों के अनुसार उन्होने सपा के पक्ष में वोट डाला है। बताया जा रहा है कि बसपा के कम से कम 4 विधायकों ने क्रास वोटिंग की है, बसपा सुप्रीमों मायावती ने इनका टिकट काटने का मन बनाया हुआ है, जिसके बाद इन विधायकों ने बगावत के शुर बुलंद कर दिए।

गुरूवार को बसपा प्रमुख मायावती ने पार्टी विधायकों के साथ बैठक कर एकजुट रहने के निर्देश दिए थे, लेकिन इस बैठक में ही तीन विधायक शामिल नहीं हुए थे। बताया जा रहा है कि इन्होंने क्रास वोटिंग की है।

वही रालोद मुखिया छोटे चौधरी अजीत सिंह ने चार वोट सपा को और चार वोट कांग्रेस को देने का ऐलान किया था लेकिन चर्चा है कि आरएलडी विधायक सुदेश शर्मा ने भाजपा के पक्ष में क्रास वोटिंग की है।

उधर अपना दल से विधायक आरके शर्मा ने भी भाजपा में शामिल होने का मन बना लिया है।

आज हुए विधान परिषद चुनाव में जमकर हुई क्रास वोटिंग से साफ है कि प्रदेश की राजनीति में दल बदल की नीति हावी रही है, राजधानी में चला दावतों का दौर किसी काम नहीं आया। पार्टी विधायकों की एकजुटता के दावों की हवा निकलती नजर आयी। हर छोटे बड़े दल में भविष्य को थामने की चाह देखी जा सकती है। चुनाव नतीजे आने के साथ ही सूबे में बहती सियासी हवा का इशारा भी दिखाई देने लगेगा।
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