उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले की करहल विधानसभा सीट अखिलेश यादव के सांसद बनने के बाद खाली हो गई है। 2022 में अखिलेश यादव करहल से विधायक चुने गए थे, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में कन्नौज से सांसद बनने के बाद उन्होंने करहल विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया। अब यह सीट समाजवादी पार्टी के लिए अहम हो गई है, क्योंकि यह अखिलेश यादव का गढ़ मानी जाती है और इसे बरकरार रखना पार्टी के लिए बेहद जरूरी है। करहल विधानसभा के जातीय समीकरण तीन लाख मतदाता पर निर्भर करता है, जिसमें सबसे बड़ी यादव समुदाय की है.

उत्तर प्रदेश में विधानसभा उपचुनाव के लिए दस सीटों पर चुनाव होंगे।

करहल विधानसभा का जातीय समीकरण

करहल विधानसभा सीट पर जातीय समीकरण में सवा लाख के करीब यादव मतदाता प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इसके बाद शाक्य समुदाय के 35 हजार वोटर हैं। पाल और ठाकुर समुदाय के 30-30 हजार वोट हैं। दलित समुदाय के करीब 40 हजार वोटर हैं, जबकि मुस्लिम समुदाय के 20 हजार, ब्राह्मण के 15 हजार, और लोध व वैश्य समुदाय के 15-15 हजार वोटर हैं।

करहल विधानसभा सीट 1956 में अस्तित्व में आई थी।

करहल विधानसभा सीट का गठन 1956 के परिसीमन के बाद हुआ था, और 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के पहलवान नत्थू सिंह यादव यहां के पहले विधायक बने। इसके बाद 1962, 1967, और 1969 में स्वतंत्र पार्टी, 1974 में भारतीय क्रांति दल, और 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर नत्थू सिंह ने जीत हासिल की। 1980 में कांग्रेस के शिवमंगल सिंह ने जीत दर्ज की थी।

सियासी समीकरण बदलते हुए 1985 से 1996 तक बाबूराम यादव ने इस सीट से लगातार जीत हासिल की। उन्होंने तीन चुनाव जनता दल के टिकट पर जीते, लेकिन 1993 में समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए और इसके बाद भी दो बार विधायक बने। हालांकि, 2002 में उन्हें भाजपा के सोबरन सिंह से हार का सामना करना पड़ा। सोबरन यादव ने 2002 से 2017 तक लगातार इस सीट से चुनाव जीते, लेकिन 2022 में अखिलेश यादव ने इस सीट से जीत हासिल की। अब अखिलेश यादव के सांसद बनने के बाद करहल विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव में सियासी वारिस की तलाश जारी है।

 

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