कुंदरकी विधानसभा सीट, उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले में स्थित है, और इसका जातीय समीकरण इस क्षेत्र के चुनावी परिणामों को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कुंदरकी में विभिन्न जातियों के मतदाताओं का मिश्रण है, जिनमें प्रमुख रूप से मुस्लिम, दलित, ओबीसी और सवर्ण जातियां शामिल हैं। यहाँ जातीय समीकरण इस प्रकार है:

 कुंदरकी विधानसभा का जातीय समीकरण:

1. मुस्लिम वोटर: कुंदरकी विधानसभा सीट पर मुस्लिम वोटरों का प्रमुख प्रभाव है, जो कुल मतदाताओं का लगभग 50% से अधिक हिस्सा बनाते हैं। इस समुदाय के वोट चुनावी परिणामों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।

2. दलित वोटर: दलित मतदाताओं की संख्या कुंदरकी में लगभग 20% है। बसपा इस वोट बैंक पर मजबूत पकड़ रखती है, लेकिन अन्य पार्टियां भी इस समुदाय को साधने की कोशिश करती रहती हैं।

3. ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग): कुंदरकी में ओबीसी समुदाय भी बड़ी संख्या में हैं। इसमें प्रमुख रूप से जाटव, यादव और कुर्मी समुदाय शामिल हैं। ये मतदाता करीब 15-20% तक हैं और चुनाव के नतीजों पर असर डाल सकते हैं।

4. सवर्ण वोटर: सवर्ण जातियों (ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया) की संख्या यहां अपेक्षाकृत कम है, लगभग 10-12% के आसपास। यह वर्ग भाजपा के लिए समर्थन का मुख्य आधार रहा है।

5. अन्य जातियां: इसके अलावा अन्य जातियों जैसे पाल, मौर्य, नाई, कुम्हार आदि भी यहां मौजूद हैं, जो कुल मतदाताओं का लगभग 5-10% हिस्सा बनाते हैं।

कुंदरकी विधानसभा का जातीय समीकरण

यहां 65 फीसदी मुस्लिम और 35 फीसदी हिंदू वोटर हैं.

कुंदरकी विधानसभा सीट पर जातीय समीकरण इस प्रकार है:

– मुस्लिम मतदाता: 2 लाख 25 हजार
– अनुसूचित जातियां: 65 हजार
– क्षत्रिय: 30 हजार
– सैनी: 30 हजार
– लोधी राजपूत: 20 हजार
– यादव: 15 हजार

इस जातीय समीकरण में मुस्लिम मतदाताओं की बहुलता के कारण, सपा और बसपा जैसी पार्टियों को यहाँ पर प्रमुख बढ़त मिलती रही है। इसके साथ ही अनुसूचित जातियों, क्षत्रिय, सैनी, लोधी राजपूत, और यादव समुदायों के वोट भी चुनावी परिणामों को प्रभावित करने में अहम भूमिका निभाते हैं।

चुनावी असर:

मुस्लिम-यादव समीकरण : समाजवादी पार्टी (सपा) इस सीट पर मुख्य रूप से मुस्लिम और यादव मतदाताओं के समर्थन पर निर्भर करती है।
दलित वोट बैंक: बहुजन समाज पार्टी (बसपा) दलित वोटरों पर अपना प्रभाव बनाए रखती है और कई बार इस वोट बैंक की बदौलत चुनावी जीत हासिल की है।
ओबीसी और सवर्ण वोटर: भाजपा का वोट बैंक मुख्य रूप से ओबीसी और सवर्ण मतदाताओं पर निर्भर करता है, लेकिन मुस्लिम बहुल सीट होने के कारण भाजपा को यहां कड़ी चुनौती मिलती है।

कुंदरकी  में एक बार ही लहराया था भगवा

कुंदरकी विधानसभा सीट पर जातीय समीकरण हमेशा से ही चुनावी गणित को प्रभावित करता आया है, और इसी के आधार पर राजनीतिक पार्टियां अपनी रणनीति बनाती हैं।

कुंदरकी विधानसभा सीट 1967 के परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थी, और इसके बाद से यहाँ 15 बार विधानसभा चुनाव हुए हैं। अब तक के राजनीतिक इतिहास में भाजपा के प्रत्याशी चंद्र विजय सिंह ने सिर्फ एक बार, 1993 में, इस सीट पर जीत हासिल की थी। इसके बाद से कुंदरकी सीट पर समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का दबदबा रहा है।

इस सीट की सबसे खास बात यह है कि यहाँ से ज्यादातर मुस्लिम प्रत्याशी ही जीतते रहे हैं। कुंदरकी विधानसभा सीट मुस्लिम बहुल क्षेत्र होने के कारण, सपा और बसपा के मुस्लिम उम्मीदवारों को मतदाताओं का खासा समर्थन मिलता है। यही कारण है कि भाजपा को यहाँ एक बार जीतने के बाद लगातार चुनौती का सामना करना पड़ा है, और सपा तथा बसपा ने यहां पर अपने पैर जमाए रखे हैं।

कुंदरकी का चुनावी इतिहास दर्शाता है कि जातीय समीकरण और धार्मिक आधार पर यहाँ की राजनीति काफी हद तक प्रभावित होती रही है, और भविष्य में भी इन फैक्टरों का असर बना रहेगा।

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