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फिल्म समीक्षा- फैमिली ड्रामा है कपूर एंड सन्स

निर्माता निर्देशक करण जौहर की नयी फिल्‍म कपूर एडं सन्‍स एक पारिवारिक रिश्तों के इर्दगिर्द बुनी गई फिल्म है । इस फिल्म से आप अपने को जोड़ते हुए कपूर्स एंड सन्स का हिस्सा बन जाते हैं।

कपूर्स एंड सन्स इस बात दर्शाती है कि गलतियां सभी से होती हैं। परिवार के सदस्यों के बीच भी तनाव होता है, लेकिन यही ऐसी जगह है जहां सबको आसानी से माफ भी कर दिया जाता है।  

फिल्म की कहानी दादा (ऋषि कपूर), पापा (रजत कपूर) और उनके दो बेटों राहुल (फवाद खान) और अर्जुन (सिद्धार्थ मल्होत्रा) के इर्दगिर्द घूमती है। राहुल लंदन में तो अर्जुन न्यूजर्सी में हैं। दोनों लेखक हैं। राहुल सफल हो चुका है, लेकिन अर्जुन का संघर्ष जारी है। दादा को दिल का दौरा पड़ता है और दोनों भाई भारत लौटते हैं।

रिश्ते के इस मकड़जाल में कुछ रिश्ते तनावपूर्ण है। मसलन अर्जुन को शिकायत है कि राहुल ने जो सफल उपन्यास लिखा है वो उसका आइडिया था जिसे बड़े भाई ने चुराया है। इन दोनों के मां-बाप के रिश्ते में भी कड़वाहट है। पिता की जिंदगी में कोई और महिला है। बिजनेस भी ठीक से नहीं चल रहा है। अर्जुन को शिकायत है कि माता-पिता राहुल को ज्यादा प्यार करते हैं।नर्स के साथ फ्लर्टिंग करने वाले और मंदाकिनी के दीवाने दादा की बीमारी के बहाने सभी इकट्ठा होते हैं। दादा की इच्‍छा है कि एक फैमिली फोटोग्राफ खींचा जाए। उस फोटोग्राफ को खींचने के पूर्व रिश्तों में काफी उथल-पुथल मचती है। कुछ राज खुलते हैं। कुछ गलतफहमियां दूर होती हैं और मन के अंदर जमा बहुत सारा मैल बह जाता है। फिल्म को शकुन बत्रा ने लिखा और निर्देशित किया है। शकुन ने 2012 में एक बेहतरीन रोमांटिक फिल्म ‘एक मैं और एक तू’ बनाई थी।

पारिवारिक फिल्मों की कहानी लगभग एक जैसी होती है, लेकिन शकुन की इस बात के लिए तारीफ करना होगी कि उन्होंने फिल्म को गैर जरूरी भावुकता और गंभीरता से बचाए रखा है। साथ ही उनका प्रस्तुतिकरण इस पुरानी कहानी में भी ताजगी भर देता है। संभव है कि कुछ दर्शकों को ‘दिल धड़कने दो’ की याद भी आए जो पिछले वर्ष ही रिलीज हुई थी।

कपूर परिवार का हर किरदार मजेदार है। किरदार इस तरह से प्रस्तुत किए हैं कि दर्शकों को कपूर परिवार अपना ही परिवार लगने लगता है। ऐसा लगता है मानो हम अदृश्य रूप से उनके घर में मौजूद हैं और सारी बातें सुन और देख रहे हैं। इस परिवार में झगड़े इस तरह के होते हैं कि उनमें प्यार झलकता है। वैसे कहा भी जाता है कि जिस परिवार के सदस्य छोटी-छोटी बातों पर झगड़े होते हैं उनमें आपसी प्यार ज्यादा ही होता है।

फिल्म का पहला हाफ मौज-मस्ती से भरा हुआ है, इसमें ऋषि कपूर के कुछ सीन तथा आलिया-सिद्धार्थ-फवाद के बीच के दृश्य बेहतरीन बन पड़े हैं जो आपको हंसाते हैं। अच्छी बात यह है कि कहानी में लगातार ट्विस्ट आते रहते हैं जो आपकी रूचि और उत्सुकता को बनाए रखते हैं। दूसरे हाफ में कहानी गंभीर मोड़ लेती है और यह हिस्सा थोड़ा लंबा लगता है। हालांकि कुछ सीन ऐसे हैं जो आपको भावुक कर देते हैं।

निर्देशक के रूप में शकुन बत्रा का काम अच्छा है। उन्होंने फिल्म को युथफुल लुक देते हुए हास्य, इमोशन और ड्रामे का संतुलन बनाए रखा है। फिल्म में उन्होंने कई खुशनुमा पल रचे हैं। दूसरे हाफ में जरूर वे कुछ सीन कम कर सकते थे। कलाकारों से उन्होंने बेहतरीन अभिनय लिया है।

 

 

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