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समझदारी भरी वास्तुकला शहर के वायु प्रदूषण को काफी हद तक दूर कर सकती है

How thoughtful architecture can help air pollution woes of Bengaluru

कपिल काजल

बेंगलुरु, कर्नाटक

क्या वायु प्रदूषण के लिए इमारत भी जिम्मेदार हो सकती है। क्या इमारत की वास्तुकला में थोड़ा बदलाव कर हम वायु प्रदूषण कम कर सकते हैं? तो इसका जवाब है, हां। क्योंकि बेंगलुरु के बढ़ते वायु प्रदूषण के पीछे निर्माण को भी वायु प्रदूषण का मुख्य कारण बताया गया है।

आर्किटेक्ट्स भी इस बात से सहमत है। उनका कह ना है कि यदि शहर में , इमारतों और सड़कों का योजनाबद्ध तरीके से वास्तुकला में सुधार कर लिया जाए तो हम काफी हद तक वायु की गुणवत्ता को सुधार सकते हैं।

प्रिंसिपल आर्किटेक्ट राखी शेट्टी और

बेंगलुरु के डिजाइन स्टूडियो के ईशानबैल भी मानते हैं कि निश्चित ही भवनों की वास्तुकला में बदलाव कर प्रदूषण को कम किया जा सकता है। शहर के भवन निर्माण वास्तुकला पर बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि इसमें बदलाव होना चाहिए। उन्होंने बताया कि निर्माण में सही वास्तुकलान होने की वजह से आज शहर के क्षितिज में काफी बदलाव आ गया है। इससे बचने के लिए हमें निर्माण के पहले चरण पर ही सारी चीजों पर विचार कर लेना चाहिए। जिससे बाद में किसी तरह की कोई दिक्कत नआये। हमें इस तरह से काम करना होगा कि वातावरण संतुलन बना रहे। इसके लिए दृढ निश्चय करना होगा, और निर्माण में उन सभी मापदंडों को मानना होगा जो वातावरण संतुलन के लिए जरूरी है।

वायु मंडल में ग्रीन हाउस गैस छोड़ने में निर्माण क्षेत्र की बड़ी भूमिका है। यदि निर्माण के वक्त इस ओर ध्यान दिया जाए कि भवन की वास्तुकला वातावरण के अनुकूल हो तो हाउस गैस को रोकने में बड़ी भूमिका निभायी जा सकती है।

डिजिटल पब्लिकेशन इंस्टीट्यूट की मल्टिडिसिप्लेनरीजर्नर में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक निर्माण के वक्त ही भवन की वास्तुकला ऐसी होनी चाहिए कि वह वातावरण के अनुकूल हो। फिर चाहे भवन का नवीनीकरण हो रहा हो, या फिर उसे दोबारा प्रयोग के लिए तैयर किया जा रहा हो, हर जगह इसकी वास्तुकला में वातावरण का ध्यान रखा जाना चाहिए। इससे भवन के अंदर हवा की गुणवत्ता में सुधार हो।

भवन निर्माण में पुरानी चीजों का प्रयोग किया जाना। यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि हम निर्माण में ऐसी चीजें प्रयोग करें,जिनका दोबारा से इस्तेमाल संभव हो। इससे निर्माण उद्योग में एक तरह की स्थिरता आएगी। भवन निर्माण में इस तरह की सामग्री इस्तेमाल की जानी चाहिए, जिसका दोबारा से प्रयोग हो सकता है, क्योंकि जब उस भवन को तोड़ा जाए तो उस सामग्री का दोबारा से इस्तेमाल कर लिया जाए। इस तरह से वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है।

भवन निर्माण के वक्त यह ध्यान रखना चाहिए कि इसका डिजाइन ऐसा हो कि इसमे उर्जा की कम से कम खपत हो। इसके लिए महत्वपूर्ण है हमें निर्माण के वक्त निर्माण सामग्री और डिजाइन का ध्यान रखना होगा। तभी हम ऐसा भवन बना सकते है जिसमें उर्जा का कम से कम इस्तेमाल हो।

एक अच्छे डिजाइन की इमारत बिजली की खपत को आधा कर सकती है। इससे जाहिर है, बिजली के उत्पादन से होने वाला प्रदूषण कम होगा।

घर के भीतर पौधे प्रदूषण हटाने में बड़ी मदद कर सकते हैं

लिंक्डइन प्लेटफार्म पर न्यूज लिखने वाले 50 डिजाइन के फाउंडिंग पार्टनर वारसनलैम ने लिखा कि , भवनों के डिजाइन में हवा का आवागमन सुचारु रुप से होना चाहिए। इसके लिए इस तरह का डिजाइन हो कि हवा बिना किसी बाधा के भवन के अंदर जा सके। जब बाहर की ताजी हवा अंदर आएगी तो इससे भीतर गर्मी कम होगी, इससे प्रदूषण का स्तर भी कम होगा।

उन्होंने यह भी बताया कि हम भवन का डिजाइन पर्यावरण के अनुकूल डिजाइन करते हैं। इसके साथ ही इस तरह के पेंट का इस्तेमाल करते हैं, जिसमें प्रदूषक तत्व न हो, इससे घर के अंदर का वातावरण साफ सूथरा और प्रदूषित रहित हो।

उन्होंने बताया कि हम जो सामग्री निर्माण में प्रयोग करने जा रहे है, वह भी सीधे सीधे पर्यावरण से जुड़ी हुई है। क्योंकि इसे निर्माण स्थल तक लाने के लिए यातायात का प्रयोग होता है, इसमें ईंधन व गैस जलती है। जिससे प्रदूषण होता है। क्योंकि यह सामग्री समुद्र और सड़क के रास्ते से यातायात के माध्यम से ही पहुंचती है। उन्होंने कहा कि घर के अंदर पौधे रखने से भी प्रदूषण कम हो सकते हैं। एरोहेड वाइन (एक तरह की बेल होती है) , एलोवेरा घर के अंदर केमिकल के रिसाव से होने वो प्रदूषण को कम करती है। बोस्टन फर्न हवा को शुद्ध रखने में मदद करता है।

अब आगे क्या कर सकते हैं?

प्रिंसिपल आर्किटेक्ट, राखी शेट्टी ने बताया कि हमें एक बार फिर भवनों के वास्तुकला के वक्त पर्यावरण का ध्यान रखना होगा। इसके लिए समकालीन वास्तुशिल्प के दायरे को बढ़ाते हुए हमें भवनों को ढांचा इस तहर से तैयार करना होगा कि वह न सिर्फ टकाउ हो, बल्कि उर्जा की बचत करने वाला हो। यह पारंपरिकता से ओत प्रोत तो हो, लेकिन यह आज के वक्त् की जरुरत भी पूरी करने वाला हो। सबसे बड़ी बात तो यह है कि यह पूरी तरह से वातावरण के अनुकूल होना चाहिए। हमारे यहां साल भर बहुत अच्छा मौसम रहता है। इसलिए हम सूर्य की उर्जा का अधिक से अधिक इस्तेमाल कर सकते हैं। दिन के वक्त रोशनी के लिए हम सूर्य की किरणों को अधिक से अधिक प्रयोग कर सकते है। इस तरह से हम भवन में बिजली की खपत को कम कर सकते हैं। इसके लिए ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है। बस उत्तर में उंचाई पर दीवार के अनुपात में एक एक खिड़की होनी चाहिए। इससे हवा का आवागमन अासानी से भवन के अंदर हो सकता है। उन्होंने यह भी बताया कि दीवार पर प्राकृतिक प्लास्टर से तापमान और नमी नियंत्रित हो जाती है। जो हवा की गुणवत्ता पर एक सकारात्मक प्रभाव डालता है।

उन्होंने बताया कि भवन बनाते वक्त क्षेत्रफल के हिसाब से इस तरह से काम करन चाहिए कि इसमें पर्याप्त आंगन बने। जहां जरुरत हो, वहां इस तरह का डिजाइन हो कि सीधी धूप भवन के अंदर के तापमान को न बढ़ाए, पौधों का इस्तेमाल करना चाहिए। इसके साथ ही दीवार वातावरण के अनुकूल हो। इस तरह के छोटे छोटे प्रयास ही वातावरण से कार्बन फुट प्रिंट कम करने की िदिशा में बड़े उपाय साबित हो सकते हैं। इस तरह के वातावरण के अनुकूल भवनों का डिजाइन शहर की खो चूक अाभा को वापस लाने के लिए एक मिल का पत्थर साबित हो सकते हैं।

(कपिल काजल बेंगलुरु के स्वतंत्र पत्रकार है, वह  101Reporters.comअखिल भारतीय ग्रासरुट रिपोर्टस नेटवर्क के सदस्य है। )

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