छत्तीसगढ़ के बस्तर में नक्सलियों के बीच फंसे 200 जवानों को सुरक्षित निकाल लिया गया है। 1 मार्च को सीआरपीएफ और डीआरजी के जवानों की संयुक्त टीम किस्टारम से एक ऑपरेशन पर निकली थी। इस दौरान गुरुवार सुबह 10 बजे के करीब डब्बामरका गांव के पास पहुंचने पर नक्सलियों ने जवानों पर फायरिंग शुरू कर दी। नक्सलियों ने जवानों को तीन तरफ से घेर लिया था। जिसमें तीन जवान शहीद हो गए और 22 से ज्यादा घायल हुए हैं। 12 जवानों की हालत गंभीर बताई जा रही है। फायरिंग में घायल फत्ते सिंह, एनएस लांजु और लक्ष्मण कुर्ती ने समय पर इलाज नहीं मिलने से वहीं दम तोड़ दिया। जवानों ने एनकाउंटर में दस से ज्यादा नक्सली मार गिराए। नक्सली अपने साथियों के शव उठाकर ले गए।

Chhattisgarh Naxal Attack

घायल सब इंस्पेक्टर पोदांबर ने बताया- हमने 1 मार्च को सुबह किस्टाराम से ऑपरेशन शुरू किया। हम पहली बार उस इलाके में घुस रहे थे, जो पूरी तरह से नक्सलियों के कब्जे में माना जाता है। हम गोलापल्ली के उस इलाके की ओर बढ़ रहे थे, जो नक्सलियों का हेडक्वार्टर माना जाता है। हम वहां घुस गए, जहां अब तक नक्सलियों की हुकूमत मानी जाती थी। हमें मालूम था कि हमला हो सकता है।

स्पेशल डीजी नक्सल ऑपरेशन डीएम अवस्थी ने कहा कि नक्सली पूरी प्लानिंग के साथ घात लगा कर बैठे थे। ये जवानों का हौसला ही है कि वे इतने बड़े जाल से निकलकर बाहर गए। रेस्क्यू ऑपरेशन में सात सौ से ज्यादा जवान शामिल थे। इस टीम का सामना नक्सलियों के तीन अलग-अलग दस्ते से हुआ था। इनमें तीन सौ से ज्यादा हथियारबंद नक्सली थे।

Chhattisgarh Naxal Attack

नक्सलवाद के बढ़ते कदम एक बड़ी समस्या…

भारत में नक्सली हिंसा की शुरुआत 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से हुई थी। सत्ता के खिलाफ वामपंथी नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल के सशस्त्र आंदोलन ने नक्सलवाद का रूप लिया। मजूमदार मानते थे कि भारतीय मजदूरों और किसानों की दुर्दशा के लिए सरकारी नीतियां जिम्मेदार हैं। उनकी सत्ता दमन की इस सोच ने नक्लवाद को जन्म दिया। शुरूआत में तो पुलिस ने इस विद्रोह को कुचलने की कोशिश की, लेकिन दशकों बाद इस आंदोलन ने झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों को अपनी जद में ले लिया।

और जिस तरह से पिछले कुछ समय से देश की राजधानी दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से सत्ता विरोधी और बन्दूक की नोक पर कश्मीर की आजादी के सुर बुलन्द हो रहे है। मुमकिन है कि नक्सलवाद ने अपनी पैठ देश की राजधानी में भी बना ली है।

 

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