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चिंताजनक: वायु प्रदूषण से औसतन तीन साल कम हो रही जिंदगी की डोर

कपिल काजल
बेंगलुरु कर्नाटक
बेंगलुरु में बढ़ रहा वायु प्रदूषण जानलेवा बीमारियों को बढ़ा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे जीने की औसतन उम्र भी कम हो रही है।

मेडिकल यूनिवर्सिटी  मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर केमिस्ट्री के एक अध्ययन के मुताबिक  वायु प्रदूषण से जिंदगी का जोखिम  धूम्रपान, संक्रामक रोग या हिंसा से कहीं ज्यादा है। एक अध्ययन के मुताबिक 2018 में वायु प्रदूषण की वजह से 8.8 मिलियन लोगों की असमय मौत का जिम्मेदार सिर्फ प्रदूषण है। यानी की प्रदूषण की वजह से औसतन आयु  2.9 साल कम हो रही है। जबकि धूम्रपान से औसतन 2.2 वर्ष (7.2 मिलियन मौत), एचआईवी / एड्स से 0.7 वर्ष (1 मिलियन की मृत्यु), संक्रमण और मलेरिया से , 0.6 स
साल (600,000 मौतें)। इस तरह से देखा जाए तो प्रदूषण से औसतन उम्र में भी कमी आ रही है।  इस अध्ययन के लेखक  जोस लिलिवल्ड प्रदूषण को महामारी की तरह देखते हैं। क्योंकि इससे लोगों के बहुत बड़े समूह पर प्रतिकूल असर पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए इतना घातक है कि इसकी वजह से अस्पताल के एमरजेंसी वार्ड में मरीजों की संख्या बढ़ रही है। जिससे असमय मौतों का आंकड़ा बढ़ रहा है। विश्व में 4.2 मिलियन लोगों समय से पहले ही मौत के मुंह में जा रहे हैं।

भारतीय सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं

द लांसेट की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की 76.8%  जनसंख्या खतरनाक वायु प्रदूषण के बीच रह रही है।
2017 में, भारत में वायु प्रदूषण के कारण 1.24 मिलियन मौतें हुईं, जिनमें से 51.4% मरने वाले  70 वर्ष से कम उम्र के थे।

पीटीआई न्यूज एजेंसी ने अपनी एक रिपोर्ट में  2019 में सेेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट के अध्ययन का हवाला देते हुए बताया था कि भारत में होने वाली मौतों के कारणों में वायु प्रदूषण तीसरी सबसे बड़ी वजह है। यह धूम्रपान से भी उपर है। इसके लिए कई कारण  जिम्मेदार है। इसमें घरेलू प्रदूषण , हवा में सुक्ष्म कणों की मात्रा और जहरीली गैस शामिल है। रिपोर्ट में बताया गया कि वायु प्रदूषण के कारण 49 प्रतिशत सीओपीडी यानी क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज हो रही है। यह बीमारी में  फेफड़ों और श्वास प्रणाली को नुकसान पहुंचता है। दिक्कत यह है कि इसका पता भी काफी देर से चलता है। फेफड़ों के कैंसर से  33 प्रतिशत  मधुमेह और दिल की बीमारियों से 22 प्रतिशत और दोरा पड़ने से 15 प्रतिशत मौत् हो रही है।

प्रदूषण की सबसे ज्यादा चपेट में है बेंगलुरु
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक बेंगलुरु में बढ़ता प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य की चिंता का विषय है। वाहनों की बढ़ती संख्या, उद्योगों से निकलने वाला धुआं और नगर पालिका और कृषि का कचरा वायु प्रदूषण को बढ़ा रहा है। द इंडियन इंस्टीट्यूट सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज दिवेचा  सेंटर के प्रोफेसर डॉ.  एच परमीश के अनुसार प्रदूषण से बेंगलुरु के निवासियों को क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज और अस्थामा ही नहीं हो रहा है। इसके साथ साथ वह कैंसर, दिल की बीमारियों दौरा पड़ने और  और मधुमेह की चपेट में भी आ रहे हैं। इससे उनकी औसतन आयु कम हो रही है। डॉ। परमीश
ने बताया कि वायु प्रदूषण की वजह से इसमें से कोई एक बीमारी हो सकती है। इस बीमारी की वजह से औसतन   एक माह से लेकर  से 10 साल पहले ही असमय मौत हो सकती है।

उन्होंने बताया कि 1979 में 9 प्रतिशत बच्चे अस्थमा की चपेट में थे, 2009 में यह संख्या बढ़ कर 25.5 प्रतिशत हो गयी है। बेंगलुरु में  1994 से लेकर 2009 के बीच अस्थमा के मरीजों की संख्या में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

पर्यावरणविद संदीप अनिरुद्धन ने बताया कि 1970 में मेडिकल साइंस की वजह से 47 साल की औसतन आयु को बढ़ाने में सफलता मिली है। 2019 में बेहतर इलाज की तकनीक से औसतन आयु 69 साल हो गयी है। वायु  प्रदूषण न हो तो  इसे आगे 75 साल तक बढ़ाने में मेडिकल साइंस सक्षम है। लेकिन अब वहीं तकनीक और साइंस वायु प्रदूषण बढ़ा रही है, जो लोगों की मौत की वजह बन रहा है। उन्होंने बताया कि अब यदि वायु प्रदूषण को कम करने के लिए उचित कदम नहीं उठाए गए हैं, तो भविष्य में हमें असमय होने वाली मौतों को देखना पड़ेगा। यानी सीधे सीधे औसतन आयु कम हो जाएगी।

(कपिल काजल बेंगलुरु स्थित फ्रीलांसर पत्रकार है। वह  आल इंडिया ग्रासरूट जर्नलिस्ट नेटवर्क 101 रिपोर्टर्स .काम के सदस्य है।)

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