अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अर्थ को समझने के लिए इसके इतिहास को जानना परम आवश्यक हो जाता है। 1975 में जब समकालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने इमरजेंसी लागू कर के न केवल मीडिया और प्रेस की आजादी छीनी थी, उस दौर में उन्होंने देश के नागरिकों की स्वतंत्रता और उनके अधिकारों को भी समाप्त कर दिया था। वक्त के साथ वह इमरजेंसी तो 1977 में हट गई, लेकिन एक अघोषित इमरजेंसी अभी भी लगी हुई है, जिसमें कभी कानून बनाकर तो कभी गैर-कानूनी तरीकों से इससे स्वतंत्रता का हनन किया जाता रहा है। 2008 में भारत सरकार ने आई. टी. एक्ट में धारा 66-ए शामिल की। इसके तहत पुलिस को यह अधिकार दिया गया कि वह किसी के भी विचार को गलत मानकर उस व्यक्ति को जेल में डाल सकती थी। बाद में 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा को अनैतिक और अभिव्यक्ति की आजादी के विरुद्ध मानकर समाप्त कर दिया।

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आपको कुछ समय पहले की एक घटना याद होगी, जिसमें कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी ने केवल कार्टूनों के माध्यम से ऐसे विचार प्रकट किये जिसकी वजह से उन्हें सामाजिक विद्रोह का सामना करना पड़ा। भ्रष्टाचार विरोधी अन्ना हजारे की मुहिम से जुड़े 25 वर्षीय त्रिवेदी ने अपनी वेबसाइट पर घृणित एवं आपत्तिजनक सामग्री डालने और पिछले साल दिसम्बर में भ्रष्टाचार विरोधी अन्ना हजारे के आंदोलन के दौरान संविधान का अपमान करने वाला बैनर लगाने का आरोप लगा। उनके द्वारा किये गये इस कार्य की वजह से ही  पुलिस ने उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया और बांद्रा-कुर्ला उन्हें कर लिया।विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जरुरी है| यह सिर्फ मेरा ही विचार नहीं है, बल्कि हर कोई इस बात से सहमत होगा। परन्तु यह विचारों की अभिव्यक्ति इस प्रकार से न की जाये कि दो परस्पर विपरीत विचारों की वजह से समाज में नफरत का माहौल पैदा हो जाये। लोकतन्त्र मे जनता के हितों को प्राथमिकता देना हर विचारक का प्रमुख कर्तव्य है।आज का समय कोई अंग्रेजी हुकुमत का दौर नहीं है जहाँ हमारे विचार दबा दिए जाते हो|

हाल की ऐसी घटनाओं को देखा जाऐ तो  जेएनयू में कुछ छात्र अफजल गुरु की बरसी मनाना चाहते थे। बता दें कि अफजल जो कि संसद पर हमले का दोषी था, उसे 9 फरवरी 2013 को अदालत के आदेश के तहत फांसी दी गई थी। जेएनयू में छात्रों ने देश विरोधी और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे भी लगाए। इतना ही नहीं वहाँ मौजूद छात्रों ने भारतीय सविंधान के विरोध में नारे लगाए। उन्होंने कश्मीर को आजाद करने की भी मांग की, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ यह कभी भी नही होना चाहिए। निजी स्वार्थ कभी भी राष्ट्रहित से ऊपर नहीं हो सकते। इस देश के वे सम्मानित नागरिक जो वैश्विक पटल पर अपनी एक विशेष पहचान रखते हैं, उनका उक्त कथन कि यह देश रहने के लायक नहीं है, उनका यह विचार राष्ट्रहित में तो नहीं हो सकता।

आज जरूरत हैं कि युवा अनेक संघर्षों एवं बलिदानों से प्राप्त इस स्वतंत्रता के सही अर्थों को समझें। यह ध्यान देने योग्य है कि किसी भी व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता तभी तक सिद्ध होती है, जब तक वह किसी अन्य के अधिकारों और उसकी स्वतंत्रता को प्रभावित न करे। विचार करने की जरूरत है कि असहमति और उसकी निडर अभिव्यक्ति बिना लोकतंत्र असंभव है, निरर्थक है, पर असहमति की अमर्यादित अभिव्यक्ति भी घातक है!

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