आज का दिन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में विशेष है। सन 1999 ई में 17 अप्रैल यानी आज के दिन ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहासी वाजपेयी की सरकार ने लोकतंत्र में विश्र्वास मत खो दिया था। जिसके बाद वाजपेयी जी की गठबंधन सरकार ने इस्तीफा दे दिया और तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायण ने 26 अप्रैल को लोकसभा को भंग कर दिया था।

उस वक्त भाजपा और कांग्रेस के बीच आर्थिक और विदेश नीति के मुद्दों पर असहमति थी जिसमें पाकिस्तान के साथ कश्मीर सीमा विवाद का निपटारे का पहलु भी अहम था भाजपा नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार मतदान में  सिर्फ एक वोट से बहुमत साबित करने से चूक गई थी क्योंकि राजग गठबंधन में जयललिता के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक ने अपने हाथ पीछे खींच लिये थे।

इसका एक पक्ष यह भी है कि भाजपा के समर्थन से ही उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी बहुजन समाजवादी पार्टी की मुखिया मायावती ने अपने वायदे के बाबजूद लोकसभा में मतदान के वक्त वाजपेयी सरकार के विरोध में मत डाला था, लोकसभा के इतिहास में आज का दिन मायावती की वादाखिलाफी के लिए भी अंकित है।

उस वक्त सिर्फ एक वोट के संकट से जूझ रहा राजग नेतृत्व थोड़े से प्रयासों से जोड़-तोड़ की सरकार बना सकता था, पर प्रधानमंत्री अटल बिहारी ने नैतिकता का हवाला देते हुए इस संभावना से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि नैतिकता के आधार पर हमारे पास बहुमत नहीं है, और अब जनता के बीच जाकर एक बार फिर उनका विश्वास जीत कर आयेंगे।

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