Uttar Pradesh News, UP News ,Hindi News Portal ,यूपी की ताजा खबरें
India

शहर के लिए घातक साबित हो रहा है बढ़ता वायु प्रदूषण

कपिल काजल द्वारा

बेंगलुरु, कर्नाटक

भारत में वायु प्रदूषण मौत की तीसरी सबसे बड़ी वजह बन कर उभर रहा है। औसतन हर साल यहां 1.2 मिलियन लोगों की मौत की वजह वायु प्रदूषण है। यह हमारे तीन प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद को सीधे तौर पर प्रभावित करता है। प्रदूषण के लिहाज से देश में प्रमुख हॉटस्पॉट में

बेंगलुरु भी एक है। जिस तरह से किसी क्षेत्र के विकास को वहां के लोगों को स्वास्थ्य प्रभावित करता है। इसी तरह से प्रदूषण भी विकास पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

ग्रीनपीस इंडिया ने 2015-16 में वायु प्रदूषण के स्तर का पता लगाने के लिए अलग अलग राज्यों में एक अध्ययन किया। इस क्रम में कर्नाटक के 21 शहरों और कस्बों के भी प्रदूषण का अध्ययन किया गया। इसमें पाया गया कि बेंगलुरू में वायु प्रदूषण उच्च स्तर पर है। जो कि लगभग तुमकुर के बराबद था।

बेंगलुरु के शहरी पर्यावरण संरक्षक विजय निशांत का कहना है कि शहर गार्डन सिटी से कचरे के ढेर में तब्दील होता जा रहा है। सड़क व पक्की गलियां बनाने के लिए पेड़ों को काटा जा रहा है। उंचे भवन बनाए जा रहे हैं। इस तरह से शहर से जहां हरियाली गायब हो रही है, वहीं अब सिर्फ प्रदूषण फैलाने वाले साधन ही शहर में बचे हैं। इसमें वाहन और उद्योग शामिल है। इन पर रोक लगाने की दिशा में कुछ नहीं हो रहा है।

द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट ने अपने एक अध्ययन में बताया कि यातायात हवा में पीएम 10 एमएम ( सुक्ष्म कणों) की मात्रा को बढ़ाने के लिए 42 प्रतिशत तक जिम्मेदार है। सड़कों से उड़ने वाले वाली धूल 20 प्रतिशत, निर्माण के कार्य की वजह से होने वाले प्रदूषण को 14 प्रतिशत, उद्योग को 14 प्रतिशत, डीजल से चलने वाले जनरेटर सेट को 7 प्रतिशत और घरेलू क्षेत्र को तीन प्रतिशत जिम्मेदार बताया गया है।

इस स्टडी में आगे बताया गया कि शहर में नाइट्रोजन ऑक्साइड बढ़ने की मुख्य वजह यातायात 68 प्रतिशत, और डीजल बिजली जनरेटर सेट को 23 प्रतिशत है। इंडस्ट्री 8 प्रतिशत, घरेलू क्षेत्र एक प्रतिशत ही जिम्मेदार बताया गया। सल्फर डाइऑक्साइड के लिए इंडस्ट्री को 56 प्रतिशत, जेनरेटर सेट को 23 प्रतिशत, यातायात को 16 प्रतिशत करार दिया गया।

इसी रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि यातायात से पीएम 2.5 को स्तर को 50 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। रिपोर्ट में बताया गया कि डीजल से चलने वाले जनरेटर सेट भी प्रदूषण की बड़ी वजह है। डीजल जनरेटर सेट से निकलने वाले धुएं से पीएम 10 की मात्रा 13 प्रतिशत और पीएम 2.5 की मात्रा 25 प्रतिशत तक वायुमंडल में मिलती है। हालांकि इस रिपोर्ट में यह बात भी बतायी गयी कि बेंगलुरु में उद्योगों से हवा में सुक्ष्मकणों से प्रदूषण बहुत कम होता है। इसकी वजह यह निकल कर सामने आ रही है, क्योंकि यहां कोई बड़ा उद्योग नहीं है। लेकिन दूसरी ओर पीन्या के औद्योगिक क्षेत्र में प्रदूषण में सुक्ष्मकण जिम्मेदार है। यहां पीएम 10 की तुलना में पीएम 2.5 काफी ज्यादा है।

लगातार बढ़ रहा शहीरकरण और सामाजिक आर्थिक विकास शहर के प्रदूषण को बढ़ा रहा है, जो अपने साथ कई तरह की बीमारियों की वजह भी बन रहा है। इसमें दिल की बीमारी प्रमुख है, इसके साथ ही सांस की दिक्कत, फेफड़े की बीमारी, अस्थमा, उच्च रक्तचाप और मधुमेह शामिल है। इसकी चपेट में बच्चे और बुजुर्ग तेजी से आ रहे हैं।

प्रदूषण की वजह से बेंगलुरु के निवासी अब गैर-संक्रामक बीमारियों की चपेट में भी आ रहे हैं। छाती के मरीजों की संख्या देश में तेजी से बढ़ी है। छाती एवं सांस रोग विशेषज्ञ (पल्मोनोलॉजिस्ट) के पास ऐसे मरीजों की संख्या में 2015 की तुलना में 2016 में लगभग 62 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी है।

35 शहरों में बीमारियों और बीमारियों के रुझान पर एक स्टडी की गयी, इसमें पाया गया कि बेंगलुरु में यह नंबर सबसे ज्यादा है। शहर में पाया गया गया कि गैर-संक्रामक बीमारी इसमें छाती और सांस के मरीजो की संख्या में 80 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि मुंबई में 64 प्रतिशत और दिल्ली में 50 प्रतिशत थी।

लेकसाइड केंद्र के बाल रोग विशेषज्ञ डाक्टर एच परमेश ने बताया कि पहले जहां चिकन पॉक्स और खसरा ज्यादा हुआ करता था, अब गैर-संक्रामक बीमारी जैसे कि अस्थमा तेजी से बढ़ रहा है।

बढ़ रहे वायु प्रदूषण पर

ग्रीनपीस ने अपनी रिपोर्ट में अब वक्त आ गया है देश भर में इसकी जांच करते रहना चाहिए। जिससे वायु प्रदूषण का सही डाटा उपलब्ध हो। इसी डाटा को आधार बना कर नीतियां बनायी जानी चाहिए। ताकि प्रदूषण को कम कर लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा की जा सके।

रिपोर्ट में कहा गया कि अब वक्त आ गया है, प्रदूषण को कम करने की ठोस रणनीति बनायी जानी चाहिए। इसका समयबद्ध लक्ष्य पूरी तरह से स्पष्ट हो, इसके साथ ही प्रदूषण के लिए जिम्मेदारों की जवाबदेही सुनिश्चित कर उनके खिलाफ कार्यवाही भी की जानी चाहिए।

प्रदूषण को लेकर समय सयम पर स्वास्थ्य संबंधी सुझाव और हिदायत जारी की जानी चाहिए। जब जब प्रदूषण का लेवल बढ़े तो तुरंत स्कूल बंद करने चाहिए। सड़क से वाहन को कम किया जाना चाहिए। वाहनों के लिए इवन ऑड का नियम लागू करना चाहिए।जब तक

सहा में हवा की गुणवत्ता में सुधार नहीं आ जाता, तब तक कोयल से चलने वाले बिजली प्लांट, उद्योग सब बंद कर देने चाहिए।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में सुधार किया जाना चाहिए, इस तरह के वाहनों का प्रयोग होना चाहिए, जिनके इंजन से कम से कम प्रदूषण हो। इसकी सख्ती से पालना होनी चाहिए। अपग्रेड तकनीक के इंजन, जैसे कि (भारत V1)को अपनाने के लिए सख्ती दिखायी जानी चाहिए। इसी तरह से थर्मल पावर प्लांट की बिजली या फिर डीजल जनरेटर से चलने वाले उद्योगों को सोलर उर्जा पर ाअाना चाहिए। इलेक्ट्रिक वाहन, सड़कों से धूल हटाना, निर्माण के वक्त धूल न उड़े, इसे लेकर गाइड लाइन तैयार करना और कचरे को खुले में जलाने पर तुरंत रोक लगनी चाहिए।

(कपिल काजल बेंगलुरु के स्वतंत्र पत्रकार है, वह  101Reporters.comअखिल भारतीय ग्रासरुट रिपोर्टस नेटवर्क के सदस्य है। )

Related posts

घाटी में लगा कर्फ्यू जैसा प्रतिबंध, जनजीवन अस्त-व्यस्त!

Deepti Chaurasia
7 years ago

रसोई को लगा तगड़ा झटका, बिना सब्सिडी वाले सिलेंडर हुआ महंगा

Namita
8 years ago

बसपा से निष्कासित मोहम्मद शहजाद ने किया नया मोर्चा बनाने का ऐलान

Shashank
6 years ago
Exit mobile version