भारत में गाय को माता का दर्जा दिया गया है। उसी गाय माता को उरई में भूख से तड़प-तड़प कर मरती हालत पर प्रशासन के द्वारा हो रही अनदेखी अब बेनकाब हो गई। उत्तर प्रदेश सरकार ने फरवरी माह में ही जिले को जानवरों का पेट भरने के लिए भूसा हेतु 1 करोड़ रुपये का बजट उपलब्ध करा दिया था। मगर सिर्फ 18 लाख रुपये का भूसा लिया गया। मरती गायों को उनके हाल पर छोड़कर जिला प्रशासन ने वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर 82 लाख रुपये उत्तर प्रदेश सरकार को सरेंडर कर दिये।

  • गायों की चिंता धर्म की दुहाई देने वाले लोग सिर्फ दंगे का माहौल बनाने मात्र के लिए ही करते हैं।

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  • इतना ही नहीं धर्म के कई ठेकेदारों ने तो गौशालाएं खोलकर जमीन हथियाने का धंधा बना लिया है।
  • ऐसे ठेकेदार गौ-संरक्षण के नाम पर मिलने वाले चंदे व अनुदान को हड़पने में भी कोई गुरेज नहीं कर रहें हैं है।
  • जब भी गायों के नाम पर कोई उंगली उठाई जाती है तो केवल अल्प संख्यकों तक ही इशारा सीमित रह जाता है।
  • इस बार सूखा पड़ने के कारण चारा न रहने से गौ माता के लिये बहुत ही विकट स्थिति खड़ी हो गयी है।

झुंड के साथ गौ मातायें मुख्य सड़कों तक पर भूख और प्यास से भटकतीं रहती हैं। संवेदनशील आदमी को द्रवित करके झकझोरती रहती हैं मगर धर्म के नाम पर सियासत करने वाले ठेकेदारों ने उन्हें बचाने के लिए पुत्र का फर्ज निभाने के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति ही करते नजर आ रहें है। इन ठेकेदारों प्रशासन से गुहार लगाने तक ही अपने कर्तव्य को सीमित रखा। उधर शासन ने प्रशासन के द्वारा गायों को बचाने के लिए भूसे की जिस वित्तीय मदद की व्यवस्था की थी उसे ही वापस कर दिया। अधिकारियों ने शायद यह मान लिया कि गायें मरती हैं तो मरें अपनी बला से।

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मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. एसके शाक्य ने अपनी सफाई में कहा कि वापस किया गया बजट वापस मिल जायेगा। अगर उनकी यह बात मान भी ले तो बजट वापस मिलने तक न जाने कितनी और गौ मातायें बलिदान हो चुकी होंगी। इसका अंदाजा भी लगाना मुश्किल है।

  • इस हरकत से उत्तर प्रदेश प्रशासन सवालों के घेरे में है की क्यों अखिलेश सरकार ने यह बजट वापस लिया?
  • क्या इसलिये यह बजट वापस लिया गया ताकि बचाने के लिए कम से कम गायें रह जायें और उत्तर प्रदेश शासन को भूसे की व्यवस्था पर ज्यादा पैसा न खर्च करना पड़े।
  • अधिकारियों के द्वारा की गयी यह नमक हलाली वाकई में काबिले तारीफ है।
  • दूसरा सबसे अहम सवाल यह भी उठता है कि 18 लाख का भूसा किन गायों का पेट भरने में उत्तर प्रदेश प्रशासन का खर्च हो गया।
  • इसका भी कोई सही  ब्यौरा सरकार के पास नही है।

पशु चिकित्साधिकारी डॉ. एसके शाक्य का कहना है कि आटा के पशु पालन फार्म में रखी गईं अन्ना गायों के लिए यह भूसा भेज दिया गया था। वर्तमान स्थिति को देखते हुये सवाल यह भी है कि लाखों की संख्या में घूम रही अन्ना गायों में से कितनी गौ माताएँ आटा के फार्म में रखी जा सकी होंगी। यानि उत्तर प्रदेश सरकार में गोलमाल नहीं बल्कि सब गोलमाल है भाई।

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