अनैतिक हमलों का शिकार बनाकर मासूम बच्‍चों के मन पर नकारात्‍मक असर डालने वाली पॉर्न साइडों पर प्रतिबंध लगाने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीर्म कोर्ट ने कहा कि अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर अश्‍लीलता का व्‍यापार करने की अनुमति किसी को भी किसी भी कीमत पर नही दी जा सकती। इस मामले पर कोर्ट ने सरकार से कहा है कि सार्वजनिक जगहों पर पॉर्न देखने और दूसरों को देखने पर मजबूर करने वालों के खिलाफ सख़्त कदम उठाए जाने चाहिए। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से सरकार को इस सिलसिले में सुझाव देने की बात भी कही है।

इसके साथ ही चाइल्ड पॉर्न वेबसाइट पर पाबंदी को लेकर उठाए गए कदमों से सुप्रीम कोर्ट ने संतोष जताया और केंद्र और राज्यों से इस बारे में समन्वय के साथ काम करने की अपेक्षा की है। कोर्ट ने टिप्पणी में कहा कि अश्लीलता किसी भी तरीके से हो, वह कानून के मुताबिक अपराध है। ऐसे में चाहे चाइल्ड पॉर्नोग्राफी हो या सिर्फ पॉर्नोग्राफी, दोनों IPC की धारा 292 के दायरे मे आते हैं। इसलिए इन्हें ब्लॉक करने और रोक लगाने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की बनती है।

उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार से सवाल किया कि क्या वह चाइल्ड और व्यस्क पॉर्नोग्राफी मे अंतर समझती है? केंद्र सरकार अपना रुख़ साफ करे कि पॉर्नोग्राफी के मामले मे वह क्या करना चाहती है। कोर्ट ने सुझाव दिया कि सरकार को ऐसी साइट को ब्लॉक करने से संबंधित कोई मेकेनिज्म तैयार करना चाहिए। मोबाइल में अश्लील वीडियो रखना भी आईटी की धारा 67 के तहत अपराध के दायरे में आता है। सुप्रीम कोर्ट ने टिपण्णी में यह भी कहा की पॉर्नोग्राफी एक जटिल विषय है। कोई मोनालिसा की पेंटिंग में अश्लीलता ढूंढ सकता है लेकिन चाइल्ड पॉर्न का मामला बिलकुल साफ़ है।

वहीं केंद्र की ओर से इस मामले में दलील दी गई है कि सरकार चाइल्ड पॉर्न को बंद करने के पक्ष में है लेकिन बाकी पर रोक नहीं लगाई जा सकती क्योंकि कोई प्राइवेट में इसे देखता है तो यह कोई अपराध नहीं बनता। केंद्र ने कहा कि इन साइट को देश के बाहर से चलाया जाता है, जहां भारत का कानून लागू नहीं होता।

भारत में बढ़ते बाल अपराध को देखते हुऐ सुप्रीम कोर्ट ने भारत की केंद्र और तमाम राज्‍य की सरकारों को जो सुझाव दिये , उस पर अगर अमल किया गया तो बाल अपराधों की संख्‍या में काफी कमी आ सकती है।

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