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कार्यकर्ताओं की ‘खेती’ बंद, राजनीतिक दल अब ‘अधिया’ पर!

Modern Indian politics

नैतिक मूल्य, विचारधारा, सिद्धांत, एकता और समन्वय के भाव से परे भारत में राजनीति अब ‘मतलब’ तक सीमित रह गयी है। 90 का दशक शुरू होने के बाद जहाँ एक ओर परिवारवाद की राजनीति पूरे देश में दीमक की तरह फ़ैल रही था वहीँ ‘ग्लैमर’ बॉलीवुड और क्रिकेट को छोड़ राजनीतिक गलियारों में अपना घर तलाश रही थी। कार्यकर्ताओं के कमजोर कंधे अपने ‘आदर्शों की अर्थी’ उठाने में असमर्थ होते दिख रहे थे और आज हाल कुछ ऐसा है कि किसी भी पार्टी में ‘कार्यकर्त्ता’ जैसी कोई चीज़ रह नहीं गयी है।

दलों को ‘मिस काल’ वाले कार्यकर्ताओं का सहारा

क्या है इसका मुख्य कारण

राजनीतिक दल अब ‘अधिया’ पर

मशहूर इतिहासकार पैट्रिक फ्रेंच ने अपनी एक किताब में कहा था कि “भारत में राजनीति अगर ऐसे ही चलती रही तो जल्द ही माहौल ‘राजतंत्र’ जैसा हो जाएगा”, जनता के सेवक अब जनता को ‘प्रजा’ और खुद को ‘राजा’ मान बैठे हैं, दरबार भी कुछ ऐसा जहाँ कुछ ‘चाटुकारों’ को छोड़ बाकी सबकी राय ताक पर होती है। इतिहास खुद को दोहराता जरूर है, और ऐसे में हम सिर्फ यही उम्मीद कर सकते हैं कि वो समय वापिस आये जब नेताओं की कार्यकर्ताओं के प्रति जवाबदेही और और कार्यकर्ता ‘ठगा’ हुआ न महसूस करे!

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