राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने अपनी कार्रवाइयों के दौरान राष्ट्रभाषा हिंदी पर प्रतिबन्ध लगते हुए साफ़ कर दिया है की कार्रवाई के दौरान दस्तावेज केवल अंग्रेजी भाषा में ही प्रस्तुत किये जाएँ । हरित पैनल ने 2011 एनजीटी नियमों के नियम 33 का हवाला देते हुए कहा की अधिकरण की कार्यवाही केवल अंग्रेजी में ही होनी चाहिए। गौरतलब है की ओजस्वी पार्टी की वह याचिकाएं हिंदी में होने के कारण एनजीटी ने उन्हें अस्वीकार कर दिया था लेकिन पुनर्विचार करने के लिए दाखिल की गई समीक्षा याचिका की सुनवाई के दौरान उन्हें स्पष्टीकरण दे दिया गया है।

क्या है पूरा मामला?

  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने अपनी कार्रवाइयों के दौरान हिंदी भाषा प्रतिबंधित कर दी है।
  • NGT ने साफ़ कर दिया है कि कार्रवाई के दौरान दस्तावेज केवल अंग्रेजी भाषा में ही प्रस्तुत किये जाएँ ।
  • बता दें कि ओजस्वी पार्टी की वह याचिकाएं हिंदी में होने के कारण एनजीटी ने उन्हें अस्वीकार कर दिया था।
  • जिसके बाद पार्टी ने पुनर्विचार करने के लिए एक समीक्षा याचिका दाखिल की थी।
  • समीक्षा याचिका की सुनवाई के दौरान पार्टी को यह स्पष्टीकरण दे दिया गया है।
  • जिसमे साफ़ कहागया है कि याचिकाएं हिंदी में होने के कारण अस्वीकार कर दी गईं थी।
  • गौरतलब है की साल 2015 में इस धार्मिक समूह ने यमुना नदी में मवेशियों की हत्या से फैल रहे प्रदूषण के खिलाफ एनजीटी से संपर्क किया था।
  • न्यायमूर्ती यूडी साल्वी की अध्यक्षता वाली बेंच ने साफ़ कहा, ‘‘ दायर की गई याचिका में याचिकाकर्ता को यह भम्र था कि हिंदी के राष्ट्रीय भाषा होने के चलते अधिकरण हिंदी की याचिकाओं पर भी सुनवाई करेगा।”
  • उन्होंने कहा “हालांकि अब यह भ्रम दूर कर दिया गया है और उन्हें समझ आ गया है कि 2011 एनजीटी (चलन एवं प्रकिया) नियमों के नियम 33 के अनुसार एनजीटी के काम केवल अंग्रेजी में ही होंगे। ’’
  • बेंच ने कहा, ‘‘ इन याचिकाओं और रिकार्ड पर विचार करते हुए,
  • जिनके वास्तविक अंग्रेजी संस्करण 24 सितंबर 2015 को दायर किए गए थे,
  • हम उन याचिकाओं को स्वीकार करते हैं और उन्हें फाइल में बहाल करते हैं।
  • हालांकि वे सभी हिंदी याचिकाएं जो अपने अंग्रेजी अनुवाद के बिना दायर की गई थीं,
  • उन्हे अस्वीकार किया जाता है।’’

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