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बेंगलुरु में वायु प्रदूषण के कहर को कम कर सकते हैं ई-वाहन

प्रजवला हेगड़े द्वारा

बेंगलुरु, कर्नाटक:

दिल्ली में भारी प्रदूषण की वजह से सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया गया है। इससे बचने का एक ही तरीका बताया गया है, और वह यह है कि आने जाने के लिए ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक परिवहन सेवाओं का उपयोग किया जाए। वायु प्रदूषण भारत में मौत की प्रमुख वजह बन कर उभर रहा है। इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर के अध्ययन से पता चला है कि भारत में कैंसर की बड़ी वजह डीजल को ईंधन के तौर पर प्रयोग करना बड़ी वजह है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक अध्ययन के मुताबिक भारत के छह प्रमुख प्रदूषित शहरों में बेंगलुरु सबसे ऊपर है।

इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि औद्योगिक गतिविधियां, इसमें डीजल के जेनरेटर का प्रयोग हो रहा है, इसके साथ ही डीजल से चलने वाले वाहनों की संख्या में तेजी से वृद्धि को भी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है।

नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन के मुताबिक इलेक्ट्रिक वाहनों से बहुत हद तक डीजल की खपत को कम किया जा सकता है। जाहिर है जब डीजल नहीं चलेगा तो प्रदूषण भी कम होगा। यानी इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रयोग से प्रदूषण का स्तर काम किया जा सकता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि

बैटरी चलित इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) और इंजन से चलने वाले वाहनों कि यदि तुलना की जाए तो हम पाएंगे कि इलेक्ट्रिक वाहन पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं । जाहिर है इनके प्रयोग से हवा की गुणवत्ता और जलवायु परिवर्तन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

इस बात के पुख्ता प्रमाण है कि यदि डीजल इंजन से चलने वाले वाहनों की बजाय इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रयोग किया जाए तो हवा की गुणवत्ता को सुधारा जा सकता हैै।

लेकिन स्थिति का दूसरा पहलु यह है कि सबसे प्रदूषित शहरों की श्रेणी में शामिल होने के बाद भी

बेंगलुरुमेट्रोपॉलिटनट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (बीएमटीसी ) के पास एक भी इलेक्ट्रिक बस नहीं है।

अभी तक और 300 ई-बसों को बेडे़ में शामिल करने के लिए निविदा पांच साल से अटकी हुई है। जबकि केंद्र ने ई बस को बढ़ावा देने के लिए तेजी से निर्माण व इसके उपयोग की योजना के दूसरे चरण में यह मंजूरी दी थी।

बीएमटीसी ने 2014 में भी ई-बसों का परीक्षण भी किया था, इसके बाद भी ई बस अपनाने में पूरी तरह से विफल होते नजर आ रहे हैं।

बीएमटीसी के प्रबंध निदेशक सी शिखा ने कहा

इलेक्ट्रिक बस डिपोहेब्बल, एचएसआर, केआरपुरम और व्हाइटफील्ड स्थापित होंगे।

कार्यकर्ताओं का कहना है कि ई वाहनों के लिए ढांचागत सुविधाएं भी चाहिए

कॉलेज छात्र सुमेध सुनील केदारी ने बताया कि सात माह से उनके पास इलेक्ट्रिक बाइक है। इससे वह हर रोज औसतन 24 किलोमीटर का सफर तय करता है। उसने बताया कि अक्सर चार्जिंग स्टेशन की कमी का सामना करना पड़ता है। लेकिन वह शहर से ज्यादा दूर नहीं जा सकता है। क्योंकि कुछ समय बाद ही ईबाइक को चार्ज करने की जरूरत पड़ती है, चार्जिंग स्टेशन की कमी है। शहरी मामलों के कार्यकर्ता संजीव दयमन्नवर ने कहा कि सड़कें इतनी भीड़भाड़ वाली हैं कि बस को

10 किलोमीटर की दूरी तय करने में एक घंटा लग जाएगा। इतने समय में तो बैटरी खत्म हो सकती है। इसलिए सड़कों की ओर भी ध्यान देना चाहिए। यदि ई बस के लिए अलग से लेन बन जाए तो इस समस्या से निपटा जा सकता है। लेकिन इस ओर संबंधित विभाग ध्यान नहीं दे रहे हैं।

उन्होंने कहा कि हाल ही में बैटरी से चलने वाले वाहनों पर कर में कमी की गयी है। यह अच्छा प्रयास है, इससे लोगों में इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रति रुझान बढे़गा।

दयमन्नवर ने बताया कि ऐसा इंतजाम हो जाए कि इलेक्ट्रिक बस के लिए तार की व्यवस्था हो जाए, जिससे वह लगातार बिजली लेती रहे, जैसे कि ट्राम आदि लेती है। इससे एक बार तो खर्च होगा, लेकिन बाद में इसके संचालन पर खर्च काफी कम आएगा। दूसरा यह भी व्यवस्था होनी चाहिए कि जो बैटरी बस के उपयोग के लायक नहीं है, उसका दूसरी जगह इस्तेमाल होना हो, इस दिशा में भी संभावना तलाशनी होगी।

चार्जिंग स्टेशन भी बढ़ाने होंगे

2019 में, हुंडई मोटर कंपनी ने भारत की पहली इलेक्ट्रिक एसयूवी लॉन्च की, लेकिन अगस्त माह में डीलरों के माध्यम से केवल 130 कोना एसयूवी ही बिकी। वह देश जिसमें

15 करोड़ चालक है, वहां इलेक्ट्रिक एसयूवी क्यों नहीं बिकी, यह सवाल उठना जरूरी है। इसके पीछे जो सबसे बड़ी उभर कर सामने आ रही है, वह यह है कि गाड़ियों को चार्ज करने की सुविधा ही नहीं है। यहीं वजह है कि भारत में इलेक्ट्रिक एसयूवी की बिक्री गति नहीं पकड़ पायी। वह देश जो आटोमोबाइल में दूसरे नंबर पर है, वहां इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर यह स्थिति निश्चित ही चिंताजनक है। इसके साथ ही यह भी सोचने पर मजबूर करती है कि आखिर इसकी वजह क्या है? चीन

ईवीएस के लिए सबसे बड़ा बाजार हैं, यहां 2018 में लगभग 456,000 चार्जिंग प्वाइंट है, जबकि भारत में 650 चार्जिंग स्टेशन है। की तुलना में चार्जिंगपॉइंट। भारत में आटोमार्केट की बहुत अच्छी संभावना है। यहां एक हजार भारतीयों के पीछे केवल 27 कारें हैं,जबकि जर्मनी में 570 कार है।

चीन के दक्षिणपूर्वी शहर शेनजेन ने 2017 में घोषणा की कि वहां चल 16,359 बसों को इलेक्ट्रिक बस में तब्दील करना है। अब डीजल की बस का बंद कर इलेक्ट्रिक बस चलाने के लिए काफी फंड चाहिए था। इसके लिए राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर सब्सिडी उपलब्ध करायीगई। इससे ई बसों की खरीद आसान हो सकी। इस तरह से वहां डीजल बस की जगह ई बस चलाना संभव हो पाया।ई-बसों और पारंपरिक डीजल इंजन की बसों में लागत का काफी अंतर।शेन्ज़ेन में ई-बसें की खरीद महंगी थी, लेकिन उनके उनके संचालन और रखरखाव की लागत डीजल बस की तुलना में कम थी। शहर में जो ई बस ली, वह पांच घंटे तक चार्ज करने पर 250 किलोमीटर का सफर तय करती है। औसतन एक बस दिन में इतना ही सफर तय करती है। इसके साथ ही बस निर्माताओं ने बस के संचालन और बैटरी की आजीवन गारंटी दी। इसका फायदा यह हुआ कि यहां 2016 और 2017 में हवा की गुणवत्ता के सुधार का जो लक्ष्य रखा गया था, ई बस से हासिल भी कर लिया गया था।

ट्रैफिक विशेषज्ञ एमएनश्रीहरि ने कहा कि ई-बसों की दिशा में चीन ने हमेशा ही एक उदाहरण प्रस्तुत किया। भारत में इस ई बसों के लिए ढांचागत सुविधाओं और तकनीक का खासा अभाव है। हमारे यहां तेजी से चार्जिंग की सुविधा होनी चाहिए, क्योंकि ऐसा नहीं हो सकता कि किसी बस को चार्जिंग के लिए लंबे समय तक खड़ा किया जा सके।

(प्रजवला हेगड़े बेंगलुरु के फ्रीलांस पत्रकार है, वह  101Reporters.com अखिल भारतीय ग्रासरुट रिपोर्टर्स नेटवर्क के सदस्य है)

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