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वायु प्रदूषण  जीडीपी के साथ साथ हमारे खर्च को भी प्रभावित कर रहा है

कपिल काजल

बेंगलुरु, कर्नाटक:
मुंबई की रहने वाली करिश्मा मल्लन (23)  नौकरी के लिए बेंगलुरु आ गयी। यहां आते ही उन्हें त्वचा से जुड़ी कई समस्या पैदा हो गयी। उनकी त्वचा में एलर्जी हो गयी। उन्होंने डाक्टर से संपर्क किया। डाक्टर ने उनके कुछ टेस्ट किये। इस पर उनका  6,000 रुपये खर्च हो गया। अब करिश्मा मल्लन को हर माह दवाओं पर 3,500 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। उनके इस खर्च की वजह है प्रदूषण। बढ़ रहा प्रदूषण हमारी जेब पर भी भारी पड़ रहा है। क्योंकि इससे बीमारियां बढ़ रही है। स्वस्थ होने के लिए  इलाज जरूरी है, और इस पर भारी   खर्च होता है।
इसी तरह से एक दूसरा मामला है, इसमें  स्थानीय निवासी जसविंदर सिंह (36) ने बताया  कि उनका पांच साल का बेटा अस्थमा से पीड़ित है। उन्होंने बताया कि  उनका  बेटा जब  दो साल का था, तो वह उसे शहर में  घुमाने के  लिए बाइक से ले जाता था। क्योंकि उन्हें नहीं पता था कि प्रदूषण उनके बेटे के स्वास्थ्य के लिए दिक्कत पैदा कर सकता है। इसलिए वह मास्क का प्रयोग भी नहीं करते थे।
उन्होंने बताया कि अचानक ही बेटे को खांसी की समस्या रहने लगी।

उन्होंने इसे सामान्य खांसी समझा। लेकिन चिंता तब हुई जब दो सप्ताह बाद भी खांसी खत्म तो क्या होनी थी, बल्कि स्थिति और गंभीर होने लगी। बेटा रात भर खांसता रहता था, कई बार तो उसे  लगातर दस दस मिनट तक खांसी होते रहती थी। तब उन्होंने बच्चे को डाक्टर को दिखाया। तब डाक्टर ने उन्हे बताया कि उनके बेटे को सांस की दिक्कत हो गयी है। डाक्टर की सलाह पर बेटे के लिए  एक नेबुलाइज़र खरीदना पड़ता है, जिसकी कीमत लगभग 4,000 रुपये थी। दवाओं पर प्रति माह  3,000 रुपये खर्च करना पड़ रहा है।
अब ऐसे कितने लोग है, जो इलाज के इतने भारी खर्च को वहन कर सकते हैं?

वायु प्रदूषण लगभग 7प्रतिशत  आबादी या देश में 63 मिलियन लोगों को गरीबी रेखा से नीचे धकेल रहा है।  विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन के मुताबिक दस में से नौ लोग   ओजोन, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड से प्रदूषित हवा में सांस लेने के लिए मजबूर है। डब्ल्यूएचओ ने 2016 में  अध्ययन किये गये  1,000 टेस्ट  रिपोर्ट से पता चला कि  अस्थमा सबसे आम बीमारी थी, इसके बाद एलर्जिक राइनाइटिस (एआर), सीओपीडी और राइनोसिनिटिस मिला।

अध्ययन से यह भी पता चला कि इन बीमारियों के इलाज पर औसतन हर साल प्रति मरीज  लगभग 50,000 रुपये खर्च हो रहा है। इसमें ज्यादा खर्च दवाओं पर हो रहा है।
इसमें
भारत में फेफड़ों के कैंसर के इलाज में 3-3.7 लाख रुपये खर्च हो जाते हैं।
एक स्वास्थ्य बीमा कंपनी के अनुसार

चेन्नई और हैदराबाद में कैंसर का इलाज नई दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु से अपेक्षाकृत सस्ता है। बीमा कंपनी के अनुसार दिल की बिमारियों में पिछले कुछ समय में काफी वृद्धि दर्ज की गयी है। दिल की बीमारी पर भी औसतन  3 से 5 लाख या उससे अधिक  रुपये तक खर्च हो सकते हैं।  भारतीय विज्ञान संस्थान के प्रोफेसर डॉ एच परमीश ने बताया कि भारत में वायु प्रदूषण का आर्थिक असर तेजी से बढ़ रहा है।
हेल्थकेयर बजट का 52 प्रतिशत अस्थमा और एआर जैसी सांस की बीमारियों के इलाज पर खर्च हो जाता है।  वायु प्रदूषण के कारण पुरानी खाँसी 1999 में 8प्रतिशत से  बढ़कर 22प्रतिशत  हो गई
बेंगलुरु में 2018, लोगों ने  इलाज पर 85.20 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। इसमें से यहां  70प्रतिशत  बीमारियों के लिए वायु प्रदूषण जिम्मेदार है।

विश्व बैंक के एक अध्ययन के अनुसार, विकासशील देशों पर वायु प्रदूषण का अधिक प्रभाव पड़ता है
भारत, 1.4 मिलियन लोग वायु प्रदूषण के कारण जिंदगी से हाथ धो बैठते हैं।  जाते हैं। इस पर  505 बिलियन डॉलर से अधिक खर्च भी हो जाता है।

वायु प्रदूषण किस तरह से आर्थिक दबाव बढ़ता है, इसका अंदाजा इसी से लग सकता है कि 2013 में भारत का जीडीपी घाटा 8.5प्रतिशत  से अधिक था।

तो सवाल यह उठता है कि क्या इससे बचा जा सकता है। इसका एक ही जवाब है। किसी भी तरह से वायु प्रदूषण कम करना होगा। इसके लिए सबसे पहले तो पदूषण रहित  परिवहन व्यवस्था अपनानी होगी। इसके लिए वाहनों में बीएस -VI इंजन, इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों को अपनाना होगा। एेसे कदम उठाने होंगे, जिससे हवा की गुणवत्ता ठीक रहे। ऐसे वाहनों पर रोक लगानी होगी जो प्रदूषण की वजह बन सकते हैं। फाउंडेशन ऑफ इकोलोजी सिक्योरिटी ऑफ इंडिया के गवर्निग काउंसिल के  सदस्य डाक्टर येलपा रेड्डी ने बताया कि
वायु प्रदूषण को कम करने के लिये उचित कदम उठाने चाहिये। यदि वायु प्रदूषण कम होता है तो निश्चित ही इससे लोगों के स्वास्थ्य पर होने किये जाने वाले खर्च कम होंगे।

(कपिल काजल बेंगलुरू स्थित फ्रीलांस पत्रकार है। वह  आलइंडिया ग्रासरूट पत्रकार संगठन   101 रिपोर्टर्स के सदस्य है।

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