किसी भी देश की पहचान वहां का राष्ट्रीय ध्वज होता है. विविधताओं से भरे भारत को एक सूत्र में बांधता है हमारा राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा. हमारी पहचान बन चुके तिरंगे को आजादी से कुछ दिन पहले 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया था. महात्मा गाँधी ने भी कहा था ‘हर देश का एक झंडा होना चाहिए जिसके लिए वहां के नागरिक जी और मर सके.’

हमारे राष्ट्रीय में तीन समान चौड़ाई की क्षैतिज रेखाएं है,जिनमें सबसे ऊपर केसरिया, बीच में श्वेत और सबसे नीचे हरे रंग की पट्टी है. श्वेत रंग की पट्टी में अशोक चक्र है जिसे सारनाथ के अशोक स्तंभ से लिया गया है. चक्र में चौबीस तीलियाँ है और इसका व्यास श्वेत पट्टी के चौड़ाई जितना है.तिरंगे की लंबाई-चौड़ाई का अनुपात 3:2 होता है.

Indian national Flag Tiranga approved Today called Tricolor day

तिरंगे के रोचक तथ्य:

1921 में महात्मा गाँधी ने कांग्रेस के अपने झंडे की बात की थी. कांग्रेस के झंडे को पिंगली वेंकैया ने डिजाईन किया था, जो जियोलॉजी में पी.एच.डी थे. वेंकैया के झंडे में दो रंग थे- लाल रंग हिन्दुओं के लिए और हरा मुस्लिमों के लिए. बाद में इसमें अन्य धर्मों के लिए सफ़ेद रंग को जोड़ा गया. उनके डिजाईन किये झंडे में सफ़ेद पट्टी पर चरखा बना था. आगे चलकर इस चरखे की जगह अशोक चक्र ने ले ली.

1951 में पहली बार भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने राष्ट्रध्वज के लिए कुछ नियम तय किये थे.

1968 में तिरंगा बनाने को लेकर कुछ मानक तय किये थे मसलन केवल खादी या हाथ से कटा गया कपड़ा ही झंडा बनाने के लिए प्रयोग किया जा सकता है.धारवाण के पास गदक और कर्नाटक के बागलकोट में इस खादी की बुनाई की जाती है. ‘हुबली’ एक मात्र लाइसेंस प्राप्त संस्था है जो झंडों का निर्माण और आपूर्ति करती है.

Indian national Flag Tiranga approved Today called Tricolor day

कपड़ा बुनने से लेकर झंडा बनाने तक बीआईएस प्रयोगशाला में कई बार इसकी टेस्टिंग की जाती है.

बीआईएस की जांच में पास होने वाला झंडा ही बाजार में बेचने के लिए भेजा जाता है.

राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास :

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान राष्ट्रीय ध्वज ने भी लंबा सफ़र तय किया है.

पहला राष्ट्रीय ध्वज: 7 अगस्त 1907 को पारसीबागन चौक(ग्रीन पार्क) कलकत्ता में फहराया गया था.

दूसरा राष्ट्रीय ध्वज: पेरिस में मैडमकामा 1907 में उनके साथ निर्वासित क्रांतिकारियों ने फहराया था.

तीसरा राष्ट्रीय ध्वज: 1917 में आया जब हमारे राजनितिक संघर्ष ने एक नया मोड़ लिया. घरेलू शासन (होमरुल) आन्दोलन के दौरान डॉ. ऐनीबेसेंट और लोकमान्य तिलक ने इसे फहराया.

चौथा राष्ट्रीय ध्वज: 1921 में कांग्रेस कमिटी के बेजवाडा( विजयवाड़ा) में हुए सत्र में आन्ध्र के एक युवक ने यह झंडा बनाकर गाँधी को दिया. इसमें लाल हिन्दुओं के लिए और हरा मुस्लिमों के लिए था. आब्द में शेष समुदायों के लिए सफ़ेद और देश की प्रगति का संकेत देने के लिए चरखा जोड़ा गया.

पांचवां राष्ट्रीय ध्वज: 1931 में ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में मान्यता का प्रस्ताव पास हुआ हुआ. रंगों के साम्प्रदायिकमहत्त्व को बदल इसके रंगों की  व्याख्या नए तरीके से की जाने लगी.

वर्तमान राष्ट्रीय ध्वज:  1931 के ध्वज का स्थान सम्राट अशोक के धर्म चक्र ने ले ली.

रंगों का मतलब:

केसरिया शक्ति और साहस, सफ़ेद शान्ति और सत्य और निचली पट्टी में हरा उर्वरकता,उन्नत्ति और भूमि की पवित्रता को दर्शाता है. चक्र गतिशील जीवन और प्रगति को दर्शाता है.

जब आम नागरिक को मिला तिरंगा फहराने का अधिकार:

26 जनवरी जनवरी 2002 को भारतीय ध्वज संहिता में संसोधन करके भारत के नागरिकों को घरों, कार्यालयों और फैक्टरी में न केवल राष्ट्रीय दिवस पर बल्कि किसी भी दिन फहराने का अधिकार मिल गया.

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