जिस ज़माने में महिलाओं के लिए शिक्षा भी दूभर थी, ऐसे दौर में विदेश जाकर डॉक्टरी की डिग्री हासिल करना अपने आप में बड़ी बात है। यदि आपको कोई काम करने के लिए दिया तो आप उस काम को करने के लिए तमाम बाधाओं को गिना देते हैं, लेकिन एक भारतीय महिला ने उस दौर में शिक्षा हासिल कर देश की पहली महिला डॉक्टर का गौरव प्राप्त किया था जब देश व समाज में तमाम तरह की समस्याएं व्याप्त थीं। आज उसी पहली भारतीय महिला डॉक्टर आनंदीबाई जोशी का जन्मदिन है।

हर लड़की के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं आनंदीबाई जोशी:

  • आनंदीबाई जोशी का व्‍यक्तित्‍व सभी महिलाओं के लिए प्रेरणास्‍त्रोत है।
  • उन्‍होंने जब डॉक्टर बनने का निर्णय लिया था तब उनकी समाज में काफी आलोचना हुई थी।
  • एक शादीशुदा हिंदू स्‍त्री विदेश (पेनिसिल्‍वेनिया) जाकर डॉक्‍टरी की पढ़ाई करे, यह समाज को नागवार गुजरा।
  • मगर अपने दृढ़निश्‍चय पर अड़ी रहने वाली आनंदीबाई ने आलोचनाओं की तनिक परवाह नहीं की।
  • यही वजह है कि 1886 उन्‍हें पहली भारतीय महिला डॉक्‍टर होने का गौरव प्राप्‍त हुआ।

पहली महिला डॉक्टर के बारे में जानकारी:

  • डॉक्टर आनंदीबाई जोशी का जन्म पुणे शहर में आज के दिन 31 मार्च 1865 को हुआ था।
  • आनंदीबाई जोशी का विवाह मात्र नौ साल की उम्र में उनसे 20 साल बड़े गोपालराव से हो गया था।
  • वह विवाह 5 साल बाद 14 वर्ष की अल्पायु में मां बन गईं।
  • लेकिन जन्में बच्चे की मृत्यु 10 दिनों के भीतर ही गई, जिससे उनको बड़ा आघात लगा।
  • अपनी संतान को खोने के बाद उन्होंने यह निश्चय किया कि वह एक दिन डॉक्टर बनेंगी।
  • साथ ही प्रण किया कि डॉक्टर बनने के बाद वह ऐसे असमय होने वाले मौत को रोकने का प्रयास करेंगी।
  • आनंदीबाई के पति गोपालराव ने न सिर्फ उनके डॉक्टर बनने की बात का समर्थन किया बल्कि भरपूर सहयोग देते हुए उनकी हौसलाअफजाई भी की।

जिस उद्देश्‍य से डिग्री ली, नहीं हुईं उसमें सफल:

  • यह सच है कि आनंदीबाई ने एक उद्देश्‍य से डॉक्‍टरी की डिग्री ली थी।
  • परन्तु आनंदीबाई उसमें वह पूरी तरह से सफल नहीं हो पाईं थीं।
  • आपको बता दें कि डिग्री पूरी करने के बाद जब आनंदीबाई भारत वापस लौटीं तो उनका स्‍वास्‍थ्‍य गिरने लगा।
  • बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण मात्र बाईस वर्ष की उम्र में 26 फ़रवरी 1887 को उनकी मृत्‍यु हो गई।
  • एक महिला होकर उन्‍होंने समाज में वह स्थान प्राप्त किया, जो आज भी एक मिसाल है।
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