भारत और यहाँ की शिक्षण व्यवस्था से सभी परिचित हैं, बच्चों के माता-पिता शुरू से ही उनके दिमाग में यह बात बिठा देते है कि उन्हें पहला स्थान पाना है, फिर चाहे वे किसी और दिशा की ओर ही क्यों ना बढ़ना चाहते हों. माता-पिता द्वारा अपनी उम्मीदों का बोझ बच्चों पर इस तरह डाल दिया जाता है कि बच्चे अपनी इच्छाओं को भूल अपने माता-पिता के सपने पूरे करने में लग जातें हैं. जिसके बाद या तो वे देश के शिक्षण व्यवस्था रूपी समुद्र को पार कर जातें हैं, या फिर वे हार मान कर इसी में डूब जातें हैं और अंत में माता-पिता केवल यही सोचते हैं कि काश सही समय पर वे बच्चे के मन को समझ गए होते.

काबुलीवाला और uttarpradesh.org द्वारा प्रस्तुत अमन की कहानी :

  • अमन….कौन है अमन? एक लड़का जो लड़ता रहा तब तक जब तक वह लड़ सका.
  • पर यह लड़ाई थी किस्से..? जवाब है देश की शिक्षण व्यवस्था से….
  • आखिर भारत की शिक्षण व्यवस्था में ऐसा क्या है जो इस तरह से आये दिन किसी की साँसे लील रहा है?
  • जवाब है कि आज का समय एक ऐसी प्रतिस्पर्धा का है जिसके लिए बच्चों को बचपन से ही तैयार किया जाता है.
  • माता-पिता बचपन से ही बच्चों के कोमल मन में प्रतिस्पर्धा की भावना भर देते हैं.
  • जिसके चलते बच्चे केवल और केवल इस भावना से ही हर क्षेत्र में उतरते हैं फिर चाहे वह एक खेल ही क्यों ना हो.
  • बड़े होने पर वे इस प्रतिस्पर्धा को जलन बना लेते हैं और कोशिश करते हैं कि हर दिशा में अव्वल आये.
  • प्रतिस्पर्धा का बीज उसके मन में इस तरह से प्रस्फुटित होता है कि वह अपनी हार को झेल नहीं पाते है.
  • इस हार का सामना ना करना पड़े यह सोचकर वह सबसे आसान रास्ता चुनता है, वह है आत्महत्या
  • जो जीवन भर उसके माता-पिता के लिए एक ज़ख्म की तरह बन जाता है.

देश में शिक्षा व्यवस्था लचर क्यों है :

  • भारत में बच्चे जितने प्रतिभावान है, शायद ही किसी देश में मौजूद होंगे.
  • परंतु हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था इतनी लचर है कि इस प्रतिभा का कोई मोल नहीं रह जाता है.
  • भारत में जितने शैक्षिक संस्थान हैं उतने ही बच्चे इसमें भाग लेने के लिए भी हैं.
  • जिसके चलते प्रतिस्पर्धा इतनी बढ़ जाती है कि जो बच्चे इसमें पार नहीं होते वे हताशा में डूब जाते हैं.
  • उनकी इस विफलता पर ना तो कोई कॉलेज उन्हें जगह देता है ना ही परिवार का संरक्षण उन्हें मिल पाता है.
  • जिसके नतीजा यह होता है कि वह उनके जीवन को ख़त्म करने के अलावा और कुछ नहीं सोच पता है.
  • इसी क्रम में आता है आरक्षण, जिसकी शुरुआत पिछड़ी जातियों के उत्थान के लिए की गयी थी.
  • परंतु अब इसकी जड़ों ने मिटटी पकड़ ली है और इसके चलते प्रतिभा की कोई पूछ नहीं है.
  • ऐसे में एक बच्चे के पास क्या उपाय रह जाता है ? वह अपनी हताशा के चलते अपने जीवन को ख़त्म कर लेता है.
  • परंतु हमारे समाज को अब जागरूक होने की ज़रुरत है, ज़रुरत है यह जानने की इस व्यवस्था में क्या कमियाँ हैं.
  • इन कमियों को जानकर इन्हें दूर करने की ज़रुरत है ताकि फिर देश में और कोई अमित नहीं बने ना ही उनका रास्ता चुने.

 

 

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