चाह नहीं मैं सुरबाला के, गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं, प्रेमी-माला में, बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं, सम्राटों के शव, पर हे हरि, डाला जाऊँ,
चाह नहीं, देवों के सिर पर, चढ़ू भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जावें वीर अनेक,

आज ही के दिन 4 अप्रैल, साल 1889 को बावई, मध्य प्रदेश में हिंदी भाषा के एक महान कवि, अध्यापक, लेखक और पत्रकार का जन्म हुआ था। उन महान कवि और लेखक का नाम ‘माखन लाल चतुर्वेदी’ था। माखन लाल चतुर्वेदी सरल भाषा एवं ओजपूर्ण भावनाओं के अनूठे रचनाकार थे। वे ‘कर्मवीर राष्ट्रीय दैनिक’ नाम के अख़बार के संपादक भी थे। वहीँ माखन लाल चतुर्वेदी ने स्वतंत्रता आन्दोलनों में भी सक्रिय भूमिका निभायी थी।

‘इनका उपनाम एक भारतीय आत्मा है, राष्ट्रीयता इनके काव्य का कलेवर है तथा रहस्यात्मक प्रेम उसकी आत्मा है’

माखन लाल चतुर्वेदी का साहित्यिक सफ़र:

  • मुंशी प्रेमचंद्र की तरह ही माखन लाल चतुर्वेदी भी अपनी सरल भाषा के लिए काफी प्रसिद्ध थे।
  • साथ ही माखन लाल चतुर्वेदी में राष्ट्रीयता की भावना कूट-कूट कर भरी थी।
  • माखन लाल चतुर्वेदी का परिवार राधावल्लभ संप्रदाय का अनुयायी था, इसलिए उनके व्यक्तित्व में वैष्णव पद साफ़ नजर आता है।
  • प्राथमिक शिक्षा के बाद माखन लाल चतुर्वेदी ने घर पर ही संस्कृत का अध्ययन किया।
  • बाद में आठ रूपया मासिक के वेतन पर उन्होंने अध्यापक की नौकरी कर ली।
  • चतुर्वेदी जी ने साल 1913 में प्रभा पत्रिका का संपादन किया था, जिसे पहले पूना की चित्रशाला प्रेस ने छापना शुरू किया था।
  • बाद में पत्रिका प्रताप प्रेस, कानपुर से छपना शुरू हो गयी थी।
  • पत्रिका के संपादन के समय ही माखन लाल चतुर्वेदी की मुलाकात गणेश शंकर विद्यार्थी से हुई थी।
  • साल 1918 में माखन लाल चतुर्वेदी ने ‘कृष्णार्जुन युद्ध’ नाटक की रचना की थी।
  • जिसके बाद साल 1919 में जबलपुर से उन्होंने ‘कर्मवीर’ का प्रकाशन शुरू किया।
  • दो साल बाद 12 मई, 1921 को राजद्रोह के आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
  • साल 1922 जेल से रिहा हुए और 1924 में गणेश शंकर विद्यार्थी की गिरफ़्तारी के बाद प्रताप के सम्पादकीय का भी काम संभाला।

ज्वालामुखी की तरह धधकता अंतर्मन:

  • माखन लाल चतुर्वेदी की कविताओं और लेख में उनकी सरलता सहसा आश्चर्यचकित कर देती है।
  • वे अपनी कविताओं में सिर्फ एक ही पहलू पर विशेष कृपा नहीं रखते है।
  • बल्कि, मानव जीवन की सभी भावनाओं के पहलुओं को अपनी लेखनी में दिखाया है।
  • कभी उनकी कवितायेँ जो समाज में मौजूद विषमता की अग्नि को दर्शाती हैं, जैसे ज्वालामुखी की तरह धधकता अंतर्मन।
  • तो कभी उनके रचनाओं में पौरुष की गर्जना दिखाई देती है।
  • कभी वे अपनी लेखनी से करुणा को भी चित्रित कर देते हैं।
  • माखन लाल चतुर्वेदी की लेखनी में संक्रमणकालीन भारतीय समाज सारी विरोधी विशिष्टतताओं समावेश दिखाई देता है।

पर्ची से निकला था मुख्यमंत्री पद के लिए नाम:

  • आजादी के बाद नवगठित मध्य प्रदेश के लिए किसे मुख्यमंत्री चुना जाये ये प्रश्न सबके सामने था।
  • मुख्यमंत्री पद के लिए तीन नाम उभरकर आये,
  • पहला पंडित माखन लाल चतुर्वेदी, दूसरा पंडित रविशंकर शुक्ल और तीसर नाम पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र।
  • तीनों नामों को अलग-अलग पर्ची पर लिखा गया और जो पर्ची निकली उस पर पंडित माखन लाल चतुर्वेदी लिखा था।
  • जिसके बाद सभी उनके पास पहुंचे और बताया कि, उन्हें मध्य प्रदेश का पहले मुख्यमंत्री का कार्यभार संभालना है।
  • जिस पर माखन लाल चतुर्वेदी ने लगभग सबको डांटते हुए कहा कि, मैं पहले से शिक्षक-साहित्यकार होने के नाते ‘देवगुरु’ के पद पर हूँ।
  • उन्होंने इसी में आगे जोड़ा कि, अब तुम मुझे ‘देवराज’ के पद पर बैठाना चाहते हो, जो मुझे सर्वथा अस्वीकार्य है।
  • माखन लाल चतुर्वेदी के इंकार के बाद रविशंकर शुक्ल को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया।

(नोट: यह किस्सा लेखिका महादेवी वर्मा अपने सहयोगियों को अक्सर सुनाया करती थीं!)

मुख्य रचनाएँ:

  • ‘कृष्णार्जुन युद्ध’,
  • ‘हिमकिरीटिनी’,
  • ‘साहित्य देवता’,
  • ‘हिमतरंगिनी’,
  • ‘माता’,
  • ‘युगचरण’,
  • ‘समर्पण’,
  • ‘वेणु लो गूंजे धरा,
  • ‘अमीर इरादे’,
  • ‘गरीब इरादे’।
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