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6 दिसम्बर 1992 के बाद यूपी सहित देश की सियासत बदल गई. इतिहास में 6 दिसम्बर ऐसे दर्ज हुआ कि उसकी गूंज आज भी है. आज भी यूपी के चुनाव में उसकी धमक सुनाई देती है. राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद को लेकर विवाद कोई नया नहीं है. लेकिन बाबरी मस्जिद और राम मंदिर को लेकर कई दशकों से चल रहे इस विवाद पर एक मौलाना ने जो कुछ भी कहा, उसने एक नई बहस को जन्म दे दिया है.

वीडियो: देखिये राम मंदिर को लेकर क्या कहा मौलाना ने:

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Video- The News

शाही इमाम को आया गुस्सा:

वीडियो में खुद को अखिल भारतीय महा सूफी समिति का अध्यक्ष बताने वाले मौलाना ने राममंदिर मुद्दे पर एक बड़ी बात कह दी. उन्होंने कहा कि 1528 के खसरे में राजा दशरथ का नाम आ गया, तब उनके पुत्र होने की हैसियत से श्रीराम उनके वारिश हुए. लिहाजा जो राम जन्मभूमि के दावे करते हैं, वो सही है और इत्तेहाद बनाकर राम जन्मभूमि अखाड़े को पूरी संपत्ति सौंप देनी चाहिए. ये वीडियो किस वक्त का है, इसकी पुष्टि नहीं नहीं जा सकती है लेकिन यूट्यूब पर ये वीडियो 6 साल पहले अपलोड किया गया था. जो कि आजकल सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है.

इसी का जिक्र जब इस पत्रकार ने शाही इमाम बुखारी के सामने प्रेस कांफ्रेंस में किया तब, शाही इमाम आग बबूला हो गए और उनके साथ ले लोगों ने पत्रकार पर हमला भी कर दिया. वहीँ वीडियो में एक व्यक्ति को बोलते हुए सुना गया कि इस पत्रकार को कांग्रेस ने भेजा था.

सुप्रीम कोर्ट में लंबित है मामला:

बता दें कि राम जन्मभूमि का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और आखिरी फैसला आने तक इस भूमि पर किसी भी समुदाय द्वारा किसी भी प्रकार का कोई निर्माण कार्य नहीं किया जा सकता है. इस भूमि पर बाबरी कमेटी और राम जन्मभूमि अखाड़ा अपना-अपना दावा पेश करते रहे हैं.

जमकर हुई सियासत:

विवादित ढांचे को बचाने के लिए तत्कालीन राज्‍य सरकार द्वारा किये गए सुरक्षा इंतजाम नाकाफी साबित हुए जिसके कारण राज्य सरकार को बर्खास्त भी कर दिया गया था. हजारों कार सेवकों की भीड़ ने 6 दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचे को ध्‍वस्‍त कर दिया. राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद दोनों की आस्था से जुड़े मुद्दे हैं लेकिन इनपर देश की कई राजनीतिक दलों ने रोटियां सेंकी हैं.

मुलायम सिंह यादव भी बाबरी मस्जिद विवाद में कारसेवकों पर गोली चलाने की घटना को सही बताने में जुटे हुए हैं और समुदाय विशेष को लुभाने में जुटे हुए हैं. वहीँ राम मंदिर बनाने के मुद्दे को बीजेपी भी उठाती रहती है. कांग्रेस भी एक समुदाय विशेष को इसकी आड़ में वोट का खजाना समझती रही है. बसपा सुप्रीमो समुदाय विशेष से खुलकर बसपा के समर्थन में वोट देने की बात करती रही हैं.

1984 में कांग्रेस ने जब ऐतिहासिक बहुमत प्राप्त किया, तब उसी वक्त शाह बानो प्रकरण चर्चा में था. समुदाय विशेष के दबाव में आकर तत्कालीन केंद्र सरकार ने संविधान में संशोधन कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया. इसी कांग्रेस सरकार ने तुष्टीकरण की नीति अपनाते हुए अयोध्या मंदिर का ताला खुलवा दिया. इस घटनाक्रम के बाद बीजेपी को राम मंदिर का मुद्दा मिल गया और ये मुद्दा पर चुनावों के दौरान खूब छाया रहता है.

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