मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि तीन तलाक को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज किया जाये. तीन बार तलाक कहकर शादी खत्म करने के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बोर्ड ने अपना हलफनामा दायर किया है.
इससे पूर्व मुस्लिम महिलाओं के उत्पीडन के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दो जजों की खंडपीठ ने संज्ञान लिया था. जजों ने मुख्य न्यायाधीश से तीन तलाक के मामले पर स्पेशल बेंच बनाकर मामले को देखने की सिफारिश की थी. इन मामलों में ट्रिपल तलाक, बहु विवाह और हलाला शामिल थे.
पर्सनल लॉ बोर्ड के अनुसार,
- सामजिक सुधार के नाम पर पर्सनल लॉ को दोबारा से नहीं लिखा जा सकता है.
- मुस्लिम समाज में ट्रिपल तलाक को चुनौती देने वाली याचिका कोर्ट के दायरे के बाहर है.
- याचिका में दिए गए तर्क के आधार पर समीक्षा नही की जा सकती है.
- इस आधार पर पर्सनल लॉ को चुनौती नहीं दी जा सकती है.
- इसके पीछे सुप्रीम कोर्ट के कुछ पुराने निर्णयों का उदाहरण भी पेश किया गया.
- हलफनामे में कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद-25, 26 और 29 के तहत पर्सनल लॉ को संरक्षण मिला हुआ है.
- मुस्लिम पर्सनल लॉ में शादी, तलाक और गुज़ारे-भत्ते के प्रावधान कुरान और शरीयत पर आधारित है.
- अनुच्छेद-44 में यूनिफर्म सिविल कोड का वर्णन है लेकिन इसके लिए कोई बाध्य नही है.
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Kamal Tiwari
Journalist @weuttarpradesh cover political happenings, administrative activities. Blogger, book reader, cricket Lover. Team work makes the dream work.