स्वदेशोन्नति और स्वसंस्कृति के अग्रदूत स्वामी दयानन्द सरस्वती एक महान चिन्तक, सन्यासी और समाज सुधारक थे। उन्हें मूलत: आर्य समाज के संस्थापक और समाज सुधारक के रूप में जाना जाता है। उन्होंने आज ही के दिन 7 अप्रैल 1875 को मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की। आर्य समाज के जरिये उन्होंने समाज में व्याप्त बुराइयों का खंडन किया। उन्होंने बाल विवाह और सती प्रथा का विरोध तथा विधवा विवाह का समर्थन किया।

आर्य समाज हिन्दू सुधार के रूप में चलाया गया एक आन्दोलन है। आर्य समाज का अर्थ है श्रेष्ठ और प्रगतिशीलों का समाज। इसके जरिये अंधविश्वास, बलि, जादू-टोना, व्रत, भूत-प्रेत, मूर्ति पूजा और छुआछूत का विरोध किया गया। आर्य समाज में ईश्वर को सर्वव्यापी माना गया है। आर्य समाज के नियम और सिद्धांत वेदों पर आधारित हैं।

MAHARISHI DAYANAND SARASWATI

आर्य समाज की मूलधारणायें:

  • एक ही सर्वशक्तिमान और निर्माता है, जिसे ॐ के रूप में जाना जाता है।
  • सभी मनुष्यों की समानता में विश्वास।
  •  वेदों के वर्णन अनुसार महिला सशक्तीकरण।
  • बाइबिल, कुरान,हिन्दू धार्मिक किताबों आदि शास्त्रों की अस्वीकृति।
  • मूर्ति पूजा को अस्वीकृति।

आर्य समाज समाज सुधार और हिन्दू धर्म सुधार के रूप में प्रारम्भ हुआ आन्दोलन था। आज के समय में पूरे विश्व में अभिवादन के लिए नमस्ते शब्द का इस्तेमाल किया जाना बहुत ही साधारण सी बात है, जो आर्य समाज की ही देन है।

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