महिला दिवस का वास्तविक अर्थ उन्हें समाज में बराबरी का दर्जा व मिले मान सम्मान

आठ मार्च को महिलाओं की आजादी व उनके बराबर के अधिकारों को समर्पित अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष मनाया जाता है।यह दिवस जर्मनी के सोशलिस्ट नेता कलारा जैटकिन सदका 1913 से महिलाओं की मांगों व समानता के अधिकारों की पूर्ति के लिए मनाया जाता है। जिंदगी के हर मोर्चे पर अकेले ही जूझकर अपने और अपने पतियों के सपने चरितार्थ करने वाली भारत की बेटियों को हिन्दुस्तान का सलाम। आज यानि 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है। इस दुनिया में महिलाएं इतनी ही महत्वपूर्ण है जितना पुरुष जरूरी है, लेकिन फिर भी दुनिया की आधी आबादी कहा जाने वाले इस वर्ग को सम्मान और अधिकार प्राप्त करने के लिए लड़ना पड़ता है।

  • महिलाएं अपने अधिकार और सम्मान प्राप्त करने के लिए काफी संघर्ष करती है।
  • साथ ही इनके बिना हम अपने जीवन का अस्तित्व भी नहीं सोच सकते।
  • आइए इस महिला दिवस 2019 पर उन्हें इन शानदार मैसेज, फोटो और शुभकामनाओं से बधाई दें।
  • देश की रक्षा में अपनी जान न्योछावर करने वाले सपूतों को तो हम सब बार-बार नमन करते हैं।
  • लेकिन उनकी विधवाओं के संघर्ष को बिसरा ही देते हैं।
  • इस महिला दिवस पर आपको रू-ब-रू कराते हैं
  • ऐसी ही कुछ महिलाओं से जो अपने पतियों की शहादत से टूटी नहीं।
  • उनका हौसला दूसरों के लिए मिसाल है।
महिला को संघर्ष करने की जरूरत
  • बेशक समाज महिलाओं को बराबर के अधिकार देने का ढिढोरा समाज वे राजनीतिक पीटता रहा है।
  • कितु वास्तव में इसके बिलकुल विपरित है।
  • पुरुष प्रधान समाज अभी भी महिलाओं को अपने बराबर का समझने के लिए मानसिक तौर पर तैयार नहीं है।
  • इसलिए आज भी महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने की जरूरत है।
सभ्याचारक तौर पर अभी भी आजाद नहीं है
  • कागजों में व कानूनी तौर पर महिला को समानता का अधिकार दिया गया है।
  • कितु वह अभी भी घर की चारदीवारी में ही बंद रहती है।
  • महिला को खोखले समाजिक नियमों का वास्ता देकर उसे घर की गृहणी कहकर उस पर दबाव डाला जाता है।
  • इसलिए असलियत कोसों दूर रखा जाता है।
समानता के लिए आगे आना जरूरी है
  • महिलाओं को खुद आगे आने की जरूरत है।
  • चुप करके घर बैठने से कभी भी उनके अधिकारों की पूर्ति नहीं हो सकती।
  • उन्होंने कहा कि महिलाओं का शिक्षित होना सबसे जरूरी है।
  • जिससे वह समाज की बुराईयों के खिलाफ खुलकर लड़ सकती हैं।
  • कितु क्षेत्र में महिलाएं समाज में कंधे से कंधा मिलाकर चलने के काबिल हैं।
  • कितु महिलाओं को अपनी शक्ति को समझने की जरूरत है।
अपने अधिकारों को समझना होगा
  • पुरुष प्रधान समाज में मानसिक तौर पर बीमार हुए समाज को ठीक करने के लिए खुद इलाज करने की जरूरत है।
  • महिला को घर की चारदीवारी में से निकलकर बाहर अधिकारों प्रति जागरूक होना पड़ेगा।
  • कानून द्वारा दिए गए अधिकारों को अमली रूप में लागू करवाना महिलाओं के अपने हाथ में है।
रिपोर्ट- संजीत सिंह सनी

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