सीताराम येचुरी फिर से माकपा के महासचिव बन गए हैं। पार्टी की 22वीं कांग्रेस समापन चरण में यह फैसला लिया गया। पिछले कई दिनों से इस बात को लेकर चर्चाओं का बाजार सरगर्म था कि इस पद पर कौन आसीन होता है, लेकिन आखिर में बाजी येचुरी के हाथ ही लगी। उनके मनोनयन को 95 सदस्यीय केंद्रीय समिति ने हरी झंडी दिखाई। समापन सत्र के बाद पत्रकारों से बातचीत करते हुए येचुरी ने कहा कि सांप्रदायिक ताकतों को रोकने के लिए कांग्रेस के साथ सीपीएम का कोई राजनीतिक गठबंधन नहीं होगा लेकिन संसद के भीतर और बाहर तालमेल रहेगा.

सीताराम येचुरी फिर बने माकपा के महासचिव:

देश की सबसे बड़ी कम्युनिस्ट पार्टी माकपा की कांग्रेस ने एक बार फिर सीताराम येचुरी को अगले तीन साल के लिए महासचिव चुन दिया है। कई हफ्ते की अनिश्चितता के बाद येचुरी को एकमत से दोबारा चुना गया. हैदराबाद में पार्टी की 22वीं कांग्रेस के समापन चरण में नवनिर्वाचित 95 सदस्यीय केंद्रीय कमेटी ने 65 साल के येचुरी को पार्टी प्रमुख चुना.

अटकलें लगाई जा रही थीं कि पूर्व महासचिव प्रकाश करात का खेमा उनके रास्ते में बाधा बन सकता है। पर पार्टी लाइन तय करने के लिए लाए गए राजनीतिक प्रस्ताव में बदलाव करा कर येचुरी ने शनिवार को ही संकेत दे दिया था कि वे फिर से पार्टी की कमान संभालने जा रहे हैं। रविवार को पार्टी कांग्रेस में नई बनी सेंट्रल कमेटी ने उनके नाम पर मुहर लगा दी।

दूसरी बार निर्वाचित हुए येचुरी:

दूसरी बार तीन साल के लिए महासचिव चुने जाने के बाद येचुरी ने कहा कि पार्टी कांग्रेस की बैठक अच्छी रही और पार्टी एकजुट होकर उभरी है। पार्टी के गठन के बाद सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही माकपा ने अपने राजनीतिक प्रस्ताव में भाजपा को हराने का संकल्प किया। साथ ही कांग्रेस के साथ या दूसरी पार्टियों के साथ रणनीतिक तालमेल और सीटों के एडजस्टमेंट का विकल्प खुला रखा है।

पार्टी कांग्रेस के समापन सत्र को संबोधित करते हुए येचुरी ने कहा, ‘हमारी कांग्रेस असरकारी रही, विस्तार से चर्चा हुई और हमने इस कांग्रेस में कई अहम फैसले किए। हमारे नेताओं, कार्यकर्ताओं और हमारे वर्ग शत्रु में यदि कोई संदेश जाना चाहिए तो वह ये है कि सीपीएम एक एकजुट पार्टी के तौर पर उभरी है।’

2015 में प्रकाश करात को हराकर बने थे महासचिव:

गौरतलब है कि 18 अप्रैल से पार्टी कांग्रेस शुरू हुई थी, जिसमें येचुरी के उत्तराधिकारी के लिए कई नामों पर चर्चा हुई। पार्टी सूत्रों ने बताया कि त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री माणिक सरकार, पोलित ब्यूरो की सदस्य बृंदा करात और सचिव बीवी राघवुलु संभावित दावेदारों में शामिल थे। लेकिन अंत में कोई दूसरा उम्मीदवार नहीं बना और येचुरी आम राय से पार्टी के महासचिव चुने गए। वे 2015 में विशाखापत्तनम कांग्रेस में प्रकाश करात की जगह महासचिव बने थे।

येचुरी को महासचिव चुने जाने से ज्यादा मशक्कत पार्टी की राजनीतिक लाइन तय कराने में करनी पड़ी। वे कांग्रेस के साथ तालमेल का रास्ता खुला रखना चाहते थे जबकि प्रकाश करात खेमा इसके एकदम विरोध में था। शनिवार को इस मामले में बीच का रास्ता निकाला गया। मसौदा दस्तावेज में संशोधन करके कांग्रेस से कोई तालमेल नहीं करने की बात निकाली गई और उसकी जगह रणनीतिक तालमेल और सभी धर्मनिरपेक्ष पार्टियों को एकजुट करने की बात लिखी गई।

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