भारत के न्यायालयों में 2 करोड़ 81 लाख मुक़दमे विचाराधीन हैं, जबकि देश की निचली अदालतों में 5 हजार न्यायाधीशों की कमी है, रिपोर्ट्स बताती हैं कि देश 4 हजार 954 जजों की पोस्ट खाली हैं जबकि निचली अदालतों में 21 हजार 324 ज्यूडिशियल ऑफिसर्स की पोस्ट सेंक्शन हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने न्यायाधीशों की बड़ी तादात में कमी की चिंता जताई है.

  • सुप्रीम कोर्ट ने ‘इंडियन ज्यूडिशियरी एनुएल रिपोर्ट 2015-16’
  • ‘सबॉर्डिनेट कोर्ट्स ऑफ इंडिया: ए रिपोर्ट ऑन एक्सेस टू जस्टिस 2016’ के नाम से दो रिपोर्ट्स जारी की हैं
  • .जिसमे बताया गया है कि मुश्किल हालातों से निपटने के लिए
  • 3 सालों में 15 हजार न्यायाधीशों की नियुक्ति करनी होगी.
  • रिपोर्ट के मुताबिक, 1 जुलाई 2015 ,30 जून 2016 के मध्य जिला न्यायालयों में
  • 2 करोड़ 81 लाख 25 हजार 66 सिविल और क्रिमिनल मुक़दमे विचाराधीन थे.
  • जबकि , इसी दौरान एक करोड़ 89 लाख 4 हजार 222 मामले निपटाए भी गए.
  • रिपोर्ट के अनुसार,जजों की मौजूदा संख्या बड़ी तादाद में केसों का निपटारा करने में काफी नही है.
  • जिसके चलते विचाराधीन मुक़दमे बढ़ते जा रहे हैं जो चिंता का विषय है.

    जजों के अलावा सपोर्ट स्टाफ बढ़ाया जाए.

  • इन्फ्रास्ट्रक्चर को भी बेहतर किया जाए.जजों की मौजूदा स्ट्रेन्थ केवल नए केसों का फैसला करने में सक्षम है।
  • ये ऐसे केस हैं जो हर साल फाइल हो रहे हैं.(एनसीआर बी) की मानें तो
  • जिला न्यायालय के ज्यूडिशियल ऑफिसर्स एक साल में महज
  • 13 फीसदी मामलों की सुनवाई कर पाते हैं।इस लिहाज से ज्यूडिशियल ऑफिसर्स की स्ट्रेन्थ को
  • 7 गुना तक बढ़ाए जाने की जरूरत है जिससे एक साल में केसों की सुनवाई पूरी की जा सके.
    रिपोर्ट के अनुसार , बिहार,गुजरात और उत्तर प्रदेश के जिला
  • कोर्ट्स की स्थिति बहुत खराब है।गुजरात में 794, बिहार में 792 और
  • उत्तर प्रदेश में 624 न्यायाधीशों की कमी है. गुजरात में निचली अदालतों में 1953,
  • बिहार में 1825 और उत्तर प्रदेश में 2394 जजों के पद सेंक्शन हैं.
  • इसके उलट गुजरात के निचली अदालतों में 1159, बिहार में 1033 और
  • यूपी में 1770 न्यायाधीश हैं.दिल्ली में भी जजों के 793 पद सेंक्शन हैं जबकि
  • 486 जज काम कर रहे हैं, 307 पद रिक्त हैं. उत्तर प्रदेश में 58.8 लाख मुक़दमे विचाराधीन हैं
  • जिनमें 43.73 लाख क्रिमिनल केस हैं.
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