स्वामी विवेकानंद के अमेरिका के शिकागो में दिए गये ऐतिहासिक भाषण की आज 125वीं वर्षगांठ है। स्वामी विवेकानंद ने जो कुछ भी उस समय कहा था, वह भाषण आज भी उतना ही प्रासंगिक है।उनका भाषण संभवतः आने वाले कई दशकों तक भी मानव समाज को ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की शिक्षा देता रहेगा। स्वामी विवेकानंद का धर्म संसद में दिया गया ये है पूरा भाषण…

मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों!

  • आपके इस स्नेहपूर्ण और ज़ोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भर गया है।
  • मैं आपको दुनिया की प्राचीनतम संत परम्परा की तरफ से धन्यवाद देता हूं।
  • मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ से धन्यवाद देता हूं।
  • सभी जातियों, संप्रदायों के लाखों, करोड़ों हिन्दुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं।
  • मेरा धन्यवाद कुछ उन वक्ताओं को भी है, जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है।
  • मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया।
  • हम सिर्फ सार्वभौमिक सहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं।
  • मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूं, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के त्रस्त और सताए गए लोगों को शरण दी है।
  • मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने हृदय में उन इस्राइलियों की पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं, जिनके धर्मस्थलों को रोमन हमलावरों ने तोड़-तोड़कर खंडहर बना दिया था।
  • तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली थी।
  • मुझे इस बात पर गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं, जिसने महान पारसी धर्म के लोगों को शरण दी और अभी भी उन्हें पाल-पोस रहा है…

एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा :

  • भाइयो, मैं आपको एक श्लोक की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा।
  • जिन्हें मैंने बचपन से स्मरण किया और दोहराया है।
  • जो रोज़ करोड़ों लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है – ‘रुचिनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम… नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव…’
  • इसका अर्थ है – जिस तरह अलग-अलग स्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद्र में जाकर मिल जाती हैं, उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है, जो देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लगें, परंतु सभी भगवान तक ही जाते हैं।
  •  वर्तमान सम्मेलन, जो आज तक की सबसे पवित्र सभाओं में से एक है।
  • गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है – ‘ये यथा मा प्रपद्यंते तांस्तथैव भजाम्यहम… मम वत्मार्नुवर्तते मनुष्या: पार्थ सर्वश:…’ अर्थात, जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं।
  •  लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, आखिर में मुझ तक ही पहुंचते हैं।
  • सांप्रदायिकताएं, कट्टरताएं और इनकी भयानक वंशज हठधर्मिता लंबे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं।
  • इन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है।
  • कितनी ही बार यह धरती खून से लाल हुई है, कितनी ही सभ्यताओं का विनाश हुआ है और न जाने कितने देश नष्ट हुए हैं।
  • अगर ये भयानक राक्षस न होते, तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता, लेकिन अब उनका समय पूरा हो चुका है।
  • मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिताओं, हर तरह के क्लेश, चाहे वे तलवार से हों या कलम से, और सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा।
UTTAR PRADESH NEWS की अन्य न्यूज पढऩे के लिए Facebook और Twitter पर फॉलो करें