कपिल काजल द्वारा

बेंगलुरु, कर्नाटक:

पर्यावरण कैसे साफ सुथरा होगा? कैसे लोगों को सांस लेने के लिए साफ व सुथरी हवा मिलेगी? यह जिम्मेदारी सरकार की है। सरकार का दायित्व बनता है कि वह इस दिशा में उचित कदम उठाए। पर्यावरण के लिए का काम करने वाले अलग स्वयंसेवकों ने बताया कि सरकार को चाहिए कि वह इस दिशा में उचित कदम उठाए। लेकिन हो यह रहा है कि सरकार इस ओर ध्यान ही नहीं दे रही है। अब बानरघट्टा के आस पास के इलाके को ही ले लिजिए। यह क्षेत्र पर्यावरण के लिए संवेदनशील घोषित किया गया था। लेकिन लोगों के भारी विरोध के बाद भी सरकार ने बानरघट्टा के आसपास के पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र का दर्जा ही खत्म कर दिया।

मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश

जावड़ेकर को पत्र लिख कर मांग की कि पर्यावरण के लिए संवदेनशील क्षेत्र का दायरा 100 वर्ग किलोमीटर और कम किया जाए। अब पर्यावरणविदों और कार्यकर्ताओं का कहना है कि इससे शहर के पर्यावरण पर गंभीर विपरीत असर पड़ेगा। इसका शहर के वायुमंडल पर गंभीर असर पड़ेगा। इसे तो यहां रहना ही मुश्किल हो जाएगा। राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करे। जिससे लोगों को सांस लेने के लिए साफ व शुद्ध हवा मिले।पर्यावरणविदो ने बताया कि संविधान के मुताबिक यह नागरिकों का अधिकार है।

भारतीय विज्ञान संस्थान के प्रोफेसर डॉक्टर टीवी रामचंद्र ने बताया कि हमारा संविधान

नागरिकों को स्वस्थ और प्रदूषण मुक्त वातावरण का अधिकार प्रदान करता है। यदि कोई सरकार इस दिशा में काम नहीं करती तो नागरिक इसके लिए अदालत में भी जा सकते हैं। नागरिकों को अपने इस अधिकार का पता भी होना चाहिए। तभी वह इस दिशा में उचित कदम उठा सकते है।

यहां सरकार लगातार ऐसे निर्णय ले रही है, जिसका असर पर्यावरण पर पड़ रहा है। मसलन नया प्रस्तावित स्टील फ्लाईओवर का मामला ही ले लीजिए । इसके निर्माण से पेड़ों की कटायी करनी होगी जिससे शहर में हरियाली का क्षेत्र फल कम होगा। लेकिन सरकार इसके लिए भी तैयार है।

कर्नाटक सड़क विकास निगम (केआरडीसीएल) ने सड़क चौड़ा करने के लिए 8500 पेड़ों को काटने की योजना भी बना ली है। लेकिन जब तक यह प्रोजेक्ट पूरा होगा, तब तक कम से कम दस हजार पेड़ काटने पड़ेंगे।लेकिन इससे सरकार को कोई मतलब नहीं है।

सामाजिक कार्यकर्ता संदीप अनिरुद्धन मानते हैं कि लोग पर्यावरण के लिए एकजुट नहीं होते। उन्हें दरअसल पता ही नहीं कि पर्यावरण के लिए वह क्या कर सकते हैं? इसके लिए उनके क्या अधिकार है। यदि अधिकार का हनन हो रहा है तो वह क्या कर सकते हैं? वह बस अपनी रोजी रोटी में ही उलझे हुए हैं। समाज में क्या चल रहा है, इस दिशा में वह ज्यादा नहीं सोचते। सरकार के निर्णयों, कामकाज में उनकी कोई भूमिका ही नहीं होती।

पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अनुसार भारत सरकार पर्यावरण संरक्षण के लिए उचित कदम उठाएगी। अधिनियम के तहत सरकार से यह उम्मीद की जाती है कि पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण मुक्त पर्यावरण रखने में हर संभव कदम उठाया जाना चाहिए। जिस जिस से भी पर्यावरण को खतरा हो सकता है, उन सभी गतिविधियों पर रोक लगानी चाहिए। जिससे प्रदूषण मुक्त पर्यावरण उपलब्ध करा इंसान, प्राणी, वनस्पति और लोगों की संपत्ति की रक्षा की जाए।

भारत के संविधान के अनुसार मौलिक कर्तव्यों में संविधान के अनुच्छेद 51-ए (जी) में बताया गया कि भारत का प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह जंगलों, झीलों, नदियों और वन्य जीवन समेत प्राकृतिक वातावरण में सुधार और इसके संरक्षण के लिए काम करेगा।

संविधान के निर्देशक सिद्धांत, भारत सरकार को निर्देश देते हैं

कि साफ सुथरा वातावरण होना चाहिए, संविधान के अनुच्छेद 47 के मुताबिक लोगों की अच्छी सेहत के के लिए सरकार जिम्मेदार है।

, इसमें यह भी शामिल है कि पर्यावरण को साफ सुथरा रखना, संरक्षण देना और सुधार के लिए उचित कदम उठाना भी शामिल है। क्योंकि प्रदूषण मुक्त वातावरण में ही लोगों की सेहत अच्छी रह सकती है। अनुच्छेद

47 सार्वजनिक स्वास्थ्य के सुधार से संबंधित है जिसमें सुरक्षा और सुधार भी शामिल है

संविधान का अनुच्छेद 48-ए कहता है

राज्य “पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा। इसके सुधार के लिए वनों व वन्य जीवों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करनी होगी। ”

संविधान में अनुच्छेद 19 और 21 के तहत साफ सुथरा वातावरण नागरिकों का मौलिक अधिकार है।

संविधान का अनुच्छेद 19 (1) (जी) हमें काम का अधिकार तो देता है। कोई भी व्यक्ति कुछ भी काम और व्यापार कर सकता है। लेकिन इसके साथ ही यह रोक भी लगता है कि ऐसा कोई काम या व्यापार नहीं कर सकता जो सेहत के लिए हानिकारक साबित होता हो। अच्छे वातावरण का अधिकार गरिमा पूर्ण जीने के अधिकार में सम्माहितहै।

इसे और स्पष्ट तरीके से हम एमसी मेहता बनाम भारत सरकार के केस से समझ सकते हैं। इस विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि प्रदूषण मुक्त साफ सुथरे वातावरण में रहने का हक मौलिक अधिकार है। इसके लिए भारत काे संविधान का अनुच्छेद 21 यह अधिकार देता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि पर्यावरण को लेकर

सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण को लेकर स्पष्ट निर्णय दिया। इसके अलावा संविधान में स्पष्ट उल्लेख है कि पर्यावरण संरक्षण करना है। प्रदूषण को लेकर समय समय पर कितने ही दिशा निर्देश दिए गए, , लेकिन इतना सब होने के बाद भी राज्य व केंद्र सरकार, राजनेता और

नौकरशाही के लिए और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े विभिन्न विभाग आज भी इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं।

अनिरुद्धन ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जब स्पष्ट कानून होने के बाद भी पर्यावरण के प्रावधान इसलिए सही तरह से लागू नहीं हो रहा है, क्योंकि इसमें समाज की भागीदारी नहीं है। पर्यावरण के मुद्दे पर सरेआम संविधान की आवमानना हो रही है। लेकिन समाज से कोई आवाज नहीं उठ रही है। लोगों की सक्रिय भागीदारी न होने की वजह से सरकार की पर्यावरण संबंधी नीतियों में पूरी तरह से मनमानी चल रही है।

इकोलॉजिकल सिक्योरिटी ऑफ इंडिया के गवर्निंग काउंसिल मेंबर

डॉक्टर येलपा रेड्डी ने कहा कि जब कोई विकास की योजना, जैसे की सड़क, पुल या कोई भवन आदि की तैयारी हो रही होती है, तभी इसका पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका आंकलन भी जरूर करना चाहिए। लेकिन देखने में आता है कि ज्यादातर योजनाओं में पर्यावरण आंकलन को लेकर खानापूर्ति ही होती है। उन्होंने

कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (KSPCB की कार्ययोजना पर सवाल उठाते हुए कहा कि प्राधिकरण होने के बावजूद भी बोर्ड भी इस दिशा में अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहा है।

पर्यावरणविद विजय निशांत ने बताया कि लोगों को वास्तव में इसके महत्व को समझना चाहिए।

अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना चाहिए। क्योंकि जब तक हम अंजान बने रहेेंगे, किसी को क्या पड़ी है कोई हमारे बारे में सोचेगा। उन्हें तो बस अपने धंधे से मतलब है। इसलिए यदि लोग अपने पर्यावरण संबंधी अपने अधिकार के प्रति जागरूक होते हैं तो वह पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली सरकारी योजनाओं को विरोध करेंगे।

लोगों को पता होना चाहिए कि यदि एक भी पेड़ कट रहा है तो इससे पहले सरकार को वहां के लोगों की मंजूरी लेना जरूरी है।

उन्होंने कहा कि अब बेंगलुरु के नागरिकों को उठाना होगा, उन्हें अपनी आवाज बुलंद करनी होगी। यदि इससे बात नहीं बनती तो उन्हें पर्यावरण की सुरक्षा के लिए कोर्ट में जाना होगा। उन्हें राजनेताओंवब्यूरोक्रेट्स के खिलाफ कानून रास्ता अपनाना होगा, क्योंकि वह नागरिगों को स्वच्छ वातावरण उपलब्ध कराने में नाकाम रहे हैं।स्वच्छ वातावरण क्योंकि सीधे जीने के अधिकार से जुड़ा है, इसलिए उन्हें अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए।

(लेखक बेंगलुरु आधारित स्वतंत्र पत्रकार हैं ।

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