1 जनवरी 2017 को समाजवादी पार्टी में एक बहुत बड़ा बदलाव किया गया, जिसने समाजवादी ‘साइकिल’ के टुकड़े-टुकड़े कर दिए हैं। 1 जनवरी को सपा का अधिवेशन बुलाया गया, जिसे खुद सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने असंवैधानिक बता दिया। लेकिन बावजूद इसके समाजवादी पार्टी में अब दो गुट हैं, एक जो सपा प्रमुख को राष्ट्रीय अध्यक्ष मानता है और दूसरा मुख्यमंत्री अखिलेश को। वहीँ सपा प्रमुख द्वारा अधिवेशन को असंवैधानिक बताया जाना कोई इत्तेफाक नहीं है, पार्टी के संविधान के मुताबिक,यह अधिवेशन असंवैधानिक ही है।

अखिलेश का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना असंवैधानिक:

कारण 1:

  • पार्टी के संविधान के मुताबिक, अधिवेशन सिर्फ राष्ट्रीय अध्यक्ष ही बुला सकता है।
  • 1 जनवरी के अधिवेशन को रामगोपाल यादव ने बुलाया था, जबकि सपा प्रमुख ने इसके खिलाफ लैटर भी जारी किया था।
  • सपा के संविधान की धारा-16 के अनुसार, राष्ट्रीय सम्मेलन या विशेष सम्मेलन बुलाने का अधिकार सिर्फ मुलायम सिंह को ही है।

कारण 2:

  • सपा प्रमुख ने न ही इस अधिवेशन की अध्यक्षता की और न ही कार्यक्रम में पहुंचे।
  • संविधान की धारा-16 के अनुसार, राष्ट्रीय अध्यक्ष ही इस सम्मेलन कर सकता है।

कारण 3:

  • रामगोपाल यादव ने 40 फ़ीसदी सदस्यों द्वारा विशेष अधिवेशन बुलाने के लिए पत्र लिखने की बात सिर्फ मौखिक रूप से कही।
  • संविधान की धारा-16 के अनुसार, राष्ट्रीय सम्मेलन के 40 फ़ीसदी सदस्यों की मांग पर राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवेशन बुला सकते हैं।

कारण 4:

  • इस बात का जिक्र भी नहीं किया गया है कि, 15 दिन पहले राष्ट्रीय कार्यकारिणी के समक्ष इस बात का प्रस्ताव रखा गया है।
  • साथ ही इस बात का भी जिक्र कहीं नहीं किया गया है कि, कार्यकारिणी सम्मेलन में लाने के लिए सहमति दी है।
  • रामगोपाल यादव ने यह बात भी सिर्फ मौखिक रूप से ही कही थी।
  • पार्टी संविधान की धारा-15 के अनुसार, राष्ट्रीय सम्मेलन कोई सदस्य सम्मेलन की बैठक में कोई प्रस्ताव नहीं लाना चाहता है।
  • तो सम्मेलन की बैठक में कम से कम 15 दिन पहले राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सामने अपना प्रस्ताव भेजेगा।
  • प्रस्ताव पर राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सहमति के बाद ही प्रस्ताव को सम्मेलन में ला सकती है।
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