उत्तर प्रदेश में शिक्षा की स्थिति काफी ख़राब है, कहीं नक़ल, कहीं बच्चों के साथ गलत बर्ताव, कहीं पैसे की कमी से जूझता भारत का भविष्य। सूबे में योगी सरकार ने आने के बाद शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के संकेत दिए लेकिन मामला प्राइवेट और सरकारी के बीच उलझ जाता है। एक मामले के मुताबिक, प्रदेश में ऐसे कई प्राइवेट स्कूल(private school) हैं जो पढ़ाई-लिखाई में कमजोर बच्चों को नजरअंदाज कर पढ़ाई में अच्छे बच्चों को अलग से कोचिंग भी पढ़ा रहे हैं, मामले में पढ़ें एक रिपोर्ट:

Lions School में सिर्फ पढ़ने वालों बच्चों की कद्र(private school):

  • मामला मिर्ज़ापुर के एक प्राइवेट स्कूल का है, कहने को ये एक पब्लिक स्कूल है।
  • लेकिन याद ये हमारे पुराने जातीय प्रथा और रुढ़िवादी संस्कृति की याद दिलाता है।
  • आज के स्कूलों में माँ-बाप अपने बच्चो को एक बेहतर इंसान और जिन्दगी में सफलता प्राप्त करने के लिए भेजते हैं,
  • किन्तु मुझे इन स्कूलों की कार्यशैली से घृणा है।
  • उदाहरण के रूप में Lions School की कक्षा 12 में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या अधिक होने के कारण लगभग 7 कमरों में पढ़ाई होती है।
  • जिनमें PCM, PCB और Commerce पढ़ने वाले विधार्थी हैं।
  • लेकिन इनमे एक section है जिसमें 11 में जिन बच्चों ने सबसे बेहतरीन NUMBER प्राप्त किये वही रखे गए हैं।
  • अब सवाल ये है कि, ऐसा क्यों?
  • इसका जवाब ये है कि, उन्हीं विधार्थियों पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाये जिसे वो 12 में सबसे ज्यादा percentage प्राप्त करें,
  • ताकि स्कूल इस बात का डंका बजाये की उसके इस वर्ष इतने बच्चे 90% से ज्यादा नंबर से उत्तीर्ण हुए हैं।
  • जिससे ज्यादा से ज्यादा बच्चे उनके स्कूल में दाखिला लें।

चलती हैं दो प्रकार की कक्षाएं(private school):

  • गौरतलब है कि, स्कूल के निर्धारित समय से एक घंटे पहले बुलाकर दो कक्षाएं अलग से चलती हैं।
  • एक है Enrichment जिनमें Test में सबसे बेहतरीन नंबर प्राप्त करने वालों में थोड़ा और ज्यादा किताबी ज्ञान ठूंसा जाता है।
  • और दूसरी है Remedial जिसमें सबसे कम नंबर कम पाने वाले बच्चों को पढ़ाया जाता है।
  • जो बच जाते हैं मतलब जिनका इन दोनों ही कक्षा में से किसी से भी वास्ता नही होता,
  • वो आज के Middle Class परिवारों की तरह हैं न सरकारी योजना का लाभ न अमीरों की तरह आराम भरी जिन्दगी और सत्ता का सुख।
  • खैर नंबर पाने के आधार पर class बांटना या चलाना काफी कुछ जातीय प्रथा से मिलता-जुलता है।
  • लेकिन इन सब के बावजूद 90% से ज्यादा बच्चों को कोचिंग और ट्यूशन की जरूरत या मजबूरी रूप होती है।

लेखक: हिमांशु जायसवाल

ट्विटर: @ChallengerHj

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