एक जमाना था जब हमारा देश अंंग्रेजोंं का गुलाम था। ये वो जमाना था जब अंंग्रेज भारत में रहने वाले मजदूर वर्ग के लोगो को अपना गुलाम समझते थे। वो इन मजदूरों से जानवरों की तरह काम करवाया करते थे। गुुलामी की जंंजीरो में जकड़ेे हुए इस देश को आखिकार 15 अगस्‍त 1947 को आजादी नसीब हुई। देश आजाद तो हो गया लेकिन यहां रहने वाले लोग आज भी तमाम तरह के बधनों में जकड़े हुए है।

एक ताजा सर्वे के अनुसार देश में रहने वाली तकरीबन 1 करोड 83 लाख से अधिक जनसंंख्‍या आज भी गुलामी की जिन्‍दगी जीने पर मजबूर है। इन मजदूूरों से इनके मालिक जानवरों की तरह काम करवा रहे हैंं। ये लोग कही बधुुआ मजदूर के रूप में काम कर रहे है तो कही इस वर्ग की महिलाएं वेश्‍यावृत्ति के रूप में अपने आपका शाारीरिक शोषण करवा रहीी हैंं। इनमे से कई तो काम के दौरान ही अपनी जिन्‍दगी से हार मानकर मौत के काल में समा गये है।

भारत में गुलामी जैसी असामाजिक परम्‍परा को खत्‍म करने के लिए कई तरह के कानून देश की तमाम सरकारों द्वारा बनाये जा चुके है लेकिन अपने घर में लोगो को गुलामों की तरह रखने की ये रीत आज भी जारी है। ना केवल हिन्‍दुस्‍तान में बल्कि पूरी दुनिया में अमीर वर्ग द्वारा गरीबो को अपना गुलाम बनाया जा रहा है। अगर पूरी दुनिया के गुलामों की बात करे तो दुनिया में तकरीबन 4 करोड़ 60 लाख ऐसे है जो गुलाम बनकर अपनी जिन्‍दगी जी रहे है। ध्‍यान देने वाली बात ये है कि पहले ये संंख्‍या 3 करोड़ 58 लाख थी। ऐसे में पूरे विश्‍व को इस समस्‍या का समाधान निकालने के लिए महत्‍वपूर्ण कदम उठाने की जरूरत है।

अापको बताते चले कि ऑस्‍ट्रेलियाई मानवाधिकार समूह ने वैश्विक गुलामी सूचकांंक जारी किया है जिसके तहत ये आकड़े पेश कियेे गये है।

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