2019 के लोकसभा चुनावों के लिए समाजवादी पार्टी ने तैयारी शुरू कर दी है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पार्टी पदाधिकारियों के साथ बैठक कर संगठन को मजबूती देना प्रारंभ कर दिया है। इसके अलावा सपा ने अपने प्रत्याशियों के चुनाव की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। सपा ने हमेशा से यादव और मुस्लिम के बल पर प्रदेश की सत्ता हासिल की है मगर अब मोदी लहर को रोकने के लिए सपा की नजर प्रदेश के ब्राह्मण वोटरों पर हैं जो 4 फीसदी हैं और सत्ता पक्ष का चुनाव करते हैं। इनके बारे में कहा जाता है कि जिस तरफ ये जाते हैं, सरकार उसी पार्टी की बनती है।

अखिलेश ने दी जिम्मेदारी :

देश की आजादी के बाद से ये ब्राह्मण वोट बैंक कांग्रेस के साथ था मगर 90 के दशक में हुए राम मंदिर आंदोलन के बाद ये वोटबैंक छिटक कर भाजपा के पास आ गया था। 2012 के विधानसभा चुनावों में मुलायम सिंह यादव की सपा को भी इसने मौक़ा दिया मगर 2014 में मोदी के आने पर फिर भाजपा के पास चला गया और भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनवा दी। यही कारण है कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ब्राह्मण वोटरों पर नजर रखे हुए है। सपा ने अपने बेड़े में तेज-तर्रार ब्राह्मण नेताओं की फौज तैयार कर ली है जो गली, मोहल्लों और ब्राह्मण बाहूल्य इलाकों में जाकर सपा की विचारधारा से उन्हें अवगत कराएंगे। इनका काम होगा कि वे सपा के पक्ष में ब्राह्मण समाज के ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़े।

दलित-मुस्लिम से कम हैं ब्राह्मण :

उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण वोटरों की संख्या से दलित, मुस्लिम से कम माने जाते हैं। फिर भी करीब-करीब 14 फीसदी इनकी संख्या है। उत्तर प्रदेश के मध्य और पूर्वांचल के करीब 29 जिलों में इनकी भूमिका अहम मानी जाती है। इनका प्रभाव उत्तर प्रदेश की कई सीटों पर देखने को मिलता है।राजनीतिक विशेषज्ञ कहते हैं कि 90 के दशक में ब्राह्मण समुदाय ने बीजेपी को काफी समर्थन दिया लेकिन 2017 से पहले के विधानसभा चुनावों में बीजेपी का ब्राह्मण वोट सिकुड़ता गया। वर्ष 2002 में यह करीब 50 प्रतिशत था। 2007 में यह 44 प्रतिशत पर आ गया और 2012 में यह मात्र 38 प्रतिशत पर रह गया था। इन दोनों चुनावों में बसपा और सपा की सरकार बनीं। 2004 से लेकर 2013 तक ब्राह्मण वोर्टस केंद्र में कांग्रेस व उसकी सहयोगी दलों को वोट दिया।

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