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व्यंग्य: नेताओं की हरकतों से बौराया ‘पशु समाज’, आतंकी याकूब भी यही करता!

leaders using derogatory words

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के 5 चरणों के चुनाव संपन्न हो चुके हैं। यूपी में इस बार का विधानसभा चुनाव काफी अहम है, साथ ही इस चुनाव में सूबे की परंपरागत समस्याओं या राजनीतिक मुद्दों (विकास, धर्म, जाति, साम्प्रदायिकता) में एक नया चैप्टर जुड़ गया है, जिसमें दो पैरों वाले पशुओं के साथ ही चार पैरों वाले पशुओं पर भी ध्यान दिया गया है।

राजनीति के बड़े-बड़े धुरंधरों ने किया जिक्र:

यूपी चुनाव 2017 एक बहुत ही ऐतिहासिक चुनाव होने जा रहा है, राजनीतिक दल पिछले 70 सालों में भले ही सूबे का 70 इंच भी ‘असली विकास’ न कर पर पाए हों, लेकिन उनकी भागदौड़ में कोई कमी हो तो बताइए? यह चुनाव ऐतिहासिक इसलिए भी है क्योंकि सूबे के बड़े-बड़े नेता दो पैरों वाली जनता के साथ ही समाज में उपेक्षित चार पैरों वाली जनता की भी बात कर रहे हैं।

चार पैरों वाले समाज में भी तुष्टिकरण की राजनीति:

यूपी के इस चुनाव में जब सबके द्वारा चार पैरों वाले समाज की बात शुरू हुई तो आशा थी यहाँ वो गलतियाँ नहीं दोहराई जाएँगी, जो दो पैरों वाले समाज में की जाती हैं। लेकिन वो नेता ही क्या जो आपकी उपेक्षाओं पर खरा उतर जाये, जनाब नेता बनने के लिए पहली क्वालिटी ही यही चाहिए, अच्छा बोलना, क्या बोलना, कैसे बोलना ये सारी बातें राजनीति में मोह-माया की श्रेणी में आती हैं। गौर फरमाएं, नेताओं ने अपने तुष्टिकरण की राजनीति वाले फार्मूला को यहाँ भी अप्लाई कर दिया। बात गधों से निकली और दूर तक जाए बिना गैंडों पर खत्म हो गयी।

चार पैरों वाले समाज में रोष:

पशु समाज में नेताओं की तुष्टिकरण की राजनीति के बाद से काफी रोष व्याप्त है। राजधानी लखनऊ स्थित प्राणी उद्यान में कई पशुओं ने भूख हड़ताल शुरू कर दी है। सभी का कहना है कि, ये नेता लोग इंसानों के बाद अब हमारी एकता की लंका लगाना चाहते हैं। साथ ही उनका मानना है कि, भाई! कमजोर और पीड़ित तो हमारे यहाँ भी हैं, लेकिन बात और नाम सिर्फ गधों और गैंडों के हिस्से में आये। वहीँ प्राणी उद्यान के शेरों ने इटावा में मारे गए अपने दूर के चचेरे भाई और भाभी की आकस्मिक मृत्यु पर दुःख जताते हुए, इसे राजनीतिक साजिश करार दे दिया।

आतंकी याकूब मेनन भी बौरा जाता:

पशु समाज तो फिर भी ठीक है, हमारे नेताओं की यूपी विधानसभाओं में जो हरकतें जारी हैं, उसके बाद तो 72 हूरों में व्यस्त याकूब मेनन भी बौरा जाता। जी हाँ, यूपी चुनाव में कसाब का भी जिक्र किया जा रहा है। जिसके बाद याकूब भी दावेदारी के साथ कह सकता था कि, कसाब में ऐसे कौन से लाल लगे हैं कि, पहले 10 साल तक उसे स्पेशल जेल में बिरयानी खिलाई गयी और अब उत्तर प्रदेश चुनाव में भी जिक्र? कसाब से तो बड़ा ही हमला किये थे हम।

नेताओं को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए, उन्हें किसने हक़ दिया कि, अपने इंसानी पचड़ों में बेचारे सीधी-साधी ज़िन्दगी जी रहे पशुओं की शांति को भंग कर सकें।

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