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जन्‍मदिन विशेष: आजाद ने गुलाम भारत में बहायी थी आजादी की लहर

chandra shekhar azad

भारत में एक वक्‍त ऐसा भी था कि यहां के लोगो का ये आजादी भी नहीं थी कि वो शासन के खिलाफ विरोध प्रर्दशन कर सके। ये वो दौर था कि हिन्‍दुस्‍तान पर अग्रेजों की हुकूमत थी। अग्रेज हिन्‍दुस्‍तानियों को अपना गुलाम बनाये हुए थे। इस दौर भारत में रहने वाले आम लोगो से  अग्रेज जानवरो की तरह काम करवाया करते थे।

ऐसे दौर में एक नौजवान अपने देशवासियों के हक की लड़ाई लड़ने के अपनी आवाज बुलन्‍द करता है और देखते देखते हिन्‍दुस्‍तान में क्रान्ति की पहचान  बन जाता है। हिन्‍दुस्‍तान को अग्रेजो की गुलामी से आजाद करने का सपना देखने वाले इस नौजवान को ही हम चन्‍द्रशेखर आजाद के नाम से याद करते है।

आजाद इतनी चालाकी से काम करते थे कि पुलिस उनका हुलिया तक नहीं जुटा पाई थी। इसलिए आजाद फोटो खिंचाने से हमेशा इनकार कर देते थे। लेकिन एक दिन वह नहाने के बाद धोती बांधते बाहर निकले, तो वह दोस्त कैमरा लिए तैयार बैठा था। राष्ट्रीय धरोहर बन चुकी उनकी पिस्तौल पास ही स्टूल पर रखी थी। आजाद बोले, अच्छा रुक, जरा मूंछों पर ताव तो दे लेने दे। आजाद मूंछों पर ताव देना खत्म करते इससे पहले ही कैमरे का बटन दबाया जा चुका था।

इसके अलावा आजाद के बारे में बातें कम ही होती हैं। आजाद को मूलत: एक आर्यसमाजी साहसी क्रांतिकारी के रूप में ही ज्यादा जाना जाता है। यह बात भुला दी जाती है कि रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाकुल्लाह खान के बाद की क्रांतिकारी पीढ़ी के सबसे बड़े संगठनकर्ता आजाद ही थे। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव सहित सभी क्रांतिकारी उम्र में कोई ज्यादा फर्क न होने के बावजूद आजाद की बहुत इज्जत करते थे। एक बार, आगरा के पास बम बनाने की ट्रेनिंग लेने दौरान राजगुरु पड़ोस की हाट से एक अद्र्धनग्न मॉडल का पोस्टर ले आए और उसे चारपाई के ऊपर लगा लिया। सुनसान जंगल के बीच उस घर में जब अचानक आजाद का आना हुआ, तो वह पोस्टर देख आगबबूला हो उठे। उन्होंने पोस्टर फाड़कर टुकड़े-टुकड़े कर दिया। पर क्या मजाल कि कोई चूं तक कर दे। इसलिए नहीं कि आजाद हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी के मुखिया थे, बल्कि उनके व्यक्तित्व में ऐसी गरिमा थी कि सभी उन्हें अपना नेता मानते थे।

चंद्रशेखर आजाद भगत सिंह की उत्कट बौद्धिक क्षमताओं के कायल थे। वह उनके लिए जेबों में भरकर किताबें लाते और यह जानने को उत्सुक रहते कि उनमें क्या लिखा है? खुद उनका पढ़ाई से ज्यादा क्रांतिकारी काम करने में यकीन था, पर माक्र्सवाद जैसे जटिल विषयों को भी वह भगत सिंह से समझने की कोशिश करते। उनकी समझदारी बहुत गहन विचारधारात्मक मुद्दों पर सरल, किंतु सटीक थी।

अपने एक कनिष्ठ साथी से एक बार आजाद ने स्पष्ट शब्दों में कहा था, तेरी यह हिंदू राजतंत्र की कल्पना देश को बहुत बड़े खतरे में डालने वाली है। कुछ मुसलमान भी ऐसा ही स्वप्न देखते हैं। हमें तो फ्रंटियर से बर्मा तक और नेपाल से कराची तक के हर हिन्दुस्तानी को साथ लेकर एक तगड़ी सरकार बनानी है। चंद्रशेखर आजाद को उनकी जयंती पर याद करते समय हमें उस शहीद को याद करना चाहिए, जिसके सपनों में आजाद भारत की समेकित तस्वीर थी।

 

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