रिफ्यूजी कैम्प यानी शरणार्थी शिविर, जहाँ सताए हुए या अबला-असहाय और बेसहारा लोग रहते हैं. उनके जीवन यापन के लिए कुछ जरूरतों को पूरा किया जाता है. लेकिन ये रिफ्यूजी कैम्प कुछ हटकर है जहाँ शरणार्थियों को तरजीह देने के साथ-साथ उनसे उम्मीद भी की जाती है.
दिल्ली में हुई पार्टी की दुर्गति:
यूपी चुनाव बीजेपी के लिए अभी तक बिहार और दिल्ली में हुए चुनाव सरीखा ही साबित होता दिख रहा है. दिल्ली और बिहार के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने दूसरे दल के नेताओं को तरजीह दी, नतीजा सबके सामने है. कांग्रेस से आये कई नेताओं को पार्टी ने टिकट दिया जबकि अपने ही पार्टी के उम्मीदवारों पर बीजेपी भरोसा नहीं जता सकी. दिल्ली के चुनाव में सीएम कैंडिडेट के रूप में किरण बेदी को उतारकर बीजेपी ने जिसे मास्टर स्ट्रोक बताया, वो सबसे सुरक्षित समझी जाने वाली कृष्णानगर सीट से चुनाव हार गयीं. दिल्ली में पार्टी के कार्यकताओं और नेताओं को नजरअंदाज कर बीजेपी ने बाहरी राज्यों से प्रचार के लिए टीम लगा दी थी, जिसके बाद स्थानीय कार्यकर्ताओं के विरोध का सामना भी पार्टी को करना पड़ा. केंद्र सरकार का हर मंत्री दिल्ली में सभाएं कर रहा था लेकिन दिल्ली बीजेपी यूनिट को जैसे दूध से मक्खी की तरह पार्टी ने निकाल बाहर फेंका था. नरेंद्र मोदी ने कई रैलियां की थी. दिल्ली में बीजेपी को ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा.
बिहार में भी पार्टी को मिली हार:
बिहार चुनाव में भी बीजेपी ने दूसरे दलों के नेताओं को पार्टी में शामिल किया और उन्हें टिकट दे दिया. यहाँ भी दिल्ली चुनाव से पार्टी ने कुछ खास सबक नहीं लिया. यहाँ भी नरेंद्र मोदी को स्टार प्रचारक बनाते हुए सीएम का चेहरा घोषित नहीं किया गया. पार्टी की स्थानीय इकाई में भी मतभेद उभरकर सामने आया. स्थानीय नेताओं ने पार्टी के खिलाफ लामबंदी शुरू कर दी. कुछ एक ने दूसरे दलों का दामन थाम लिया क्योंकि अन्य दलों से आये लोगों को बीजेपी ने अपने उम्मीदवारों पर तरजीह देते हुए टिकट दे दिया था. पुरानी गलतियों को दोहराने का अंजाम भी वही हुआ और बिहार में पार्टी को प्रतिशत के आधार पर सबसे ज्यादा वोट भले मिले लेकिन सीटों के मामले में पार्टी तीसरे स्थान पर रही. महागठबंधन ने बिहार में सरकार बना ली और नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद संभाल लिया.
हार से नहीं लिया बीजेपी ने कोई सबक:
बात अगर अब यूपी चुनाव की करें तो यहाँ भी पार्टी अन्य दलों के नेताओं के लिए ‘रिफ्यूजी कैम्प‘ ही बनी हुई है. बसपा, सपा और कांग्रेस के कई नेताओं ने हाल के महीनों में बीजेपी ज्वाइन किया. पार्टी इसे अपना मजबूत पक्ष मानकर चल रही थी. लेकिन चुनाव की घोषणा के बाद उम्मीदवारों की सूची को लेकर पार्टी को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. 149 उम्मीदवारों की सूची जारी करने के बाद अबतक पार्टी दूसरी सूची जारी नहीं कर सकी है. पश्चिमी यूपी के कई जिलों में प्रत्याशियों को टिकट ना मिलने के कारण उनके समर्थक बिफरे हुए हैं. बीजेपी के पोस्टर फाड़ दिए गए हैं और विरोध प्रदर्शन लगातार जारी है. जिन उम्मीदवारों को टिकट नहीं मिल पाया है उन्होंने पार्टी पर बाहरी लोगों को टिकट देकर अपने उम्मीदवारों पर भरोसा ना करने का आरोप लगाया है. इन प्रत्याशियों का कहना है कि इतने समय से क्षेत्र में चुनाव की तैयारी कर रहे थे लेकिन कुछ दिनों पहले शामिल हुए अन्य दलों के नेताओं को टिकट देकर पार्टी ने धोखा किया है.
इन बगावती तेवरों को देखते हुए प्रथम दृष्टया तो यही कहा जा सकता है कि पार्टी भले ही रिफ्यूजी कैम्प के जरिये शरणार्थियों के जख्मों पर मरहम लगा रही हो लेकिन घर के ही सदस्यों की देखभाल कायदे से ना हो पाना पार्टी की मुश्किलें बढ़ाने वाला है.
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Kamal Tiwari
Journalist @weuttarpradesh cover political happenings, administrative activities. Blogger, book reader, cricket Lover. Team work makes the dream work.