मुजफ्फरनगर में पचास से अधिक बार रक्तदान करने वाले सुमित को आज जब खून की ज़रूरत है तो उन्हें कहीं भी नहीं मिल रहा| उन्होंने कागज़ पर उकेरे गए सुनहरे अक्षरों से बने रक्तदान महादान के प्रमाणपत्र को जिलाधिकारी कार्यालय के सामने फाड़ कर फेक दिया|

 

आज ज़रूरत है सच्चाई बताने की, रक्तदान की आड़ में चल रहे गोरखधंधे को उजागर करने की|

 

माना कि यह पोस्ट बहुत ज्यादा लम्बी है पर अगर मैं इस पोस्ट में एक शब्द भी कम कर देता तो सच्चाई को मार देता|

 

आप लोगों में कई लोग होंगे जिन्होंने कभी न कभी तो ब्लड डोनेशन कैंप में हिस्सा लेकर ब्लड डोनेट किया ही होगा| “रक्तदान महादान” के बैनर तले हर किसी ने एक बार तो ब्लड डोनेट किया ही होगा| अब मैं वो खुलासा करने जा रहा हूँ जिससे आपके पैरों के नीचे की ज़मीन खिसक जाएगी और आप कभी भी ऐसे कैंप में ब्लड डोनेट करने से पहले सौ बार सोचेंगे|

 

मैं बीटेक के चौथे साल में था| लास्ट सेमेस्टर के कुछ दिन पहले ही मेरे दोस्त मनीष कुमार और शैलेन्द्र कुमार का एक्सीडेंट हो गया| बाइक शैलेन्द्र चला रहा था और मनीष पीछे बैठा हुआ था| कानपुर की फिसलन भरी सड़क पर उनकी बाइक अचानक से लड़खड़ा कर गिर गयी और सड़क किनारे बने डिवाइडर से टकरा गयी| शैलेन्द्र को मामूली चोट आई पर मनीष को पेट में चोट लगी और वो बेहोश हो गया| शैलेन्द्र की तत्परता से मनीष को एम्बुलेंस द्वारा हैलेट अस्पताल में भर्ती कराया गया| डॉक्टर….माफ़ कीजियेगा…जूनियर डॉक्टर…जो अभी खुद पढ़ रहे थे…उन्होंने सिर्फ ऊपर से ही देख कर मनीष को जनरल वार्ड में रख दिया| इस घटनाक्रम तक हम में से किसी दोस्त को इस एक्सीडेंट की खबर नहीं थी| शाम को जब खबर मुझ तक पहुंची तो मैं अपने दोस्तों – सुशील, अनिल, सर्वेश, संजीव और अली के साथ हैलेट अस्पताल पहुंचा| वहां का नज़ारा देख मेरी आँखों से आंसू आ गये| लाख दावा करने वाली सरकारों की स्वस्थ्य प्रणाली वहां दिख रही थी, एक बेड पर दो मरीज़ लेते हुए थे और किसी के ग्लूकोस की बोतल गमछे से लटकाई हुई थी…किसी के हाथ के नीचे घर से लाया हुआ तकिया था| किसी भी बेड पर कोई व्यवस्था नहीं| पर इन हालातों में भी हम क्या कर सकते थे? आम आदमी अपने सर को नोंच सकता है पर कुछ कर नहीं सकता| इस हालत से भी ज्यादा तब गुस्सा आया जब कोई भी डॉक्टर न तो हमारी बात सुन रहा था और न ही कोई निरिक्षण के लिए आ रहा था| जिससे पूछो वो कहता कि डॉक्टर का शिफ्ट नहीं है अभी, अभी फला डॉक्टर भोजन कर रहे है| चपरासी तक अपने आप को मुख्यमंत्री से कम नहीं समझ रहा था और न ही किसी बात का जवाब दे रहा था| एक दोस्त दर्द से कराह रहा था और हम उसे देख कर हताश, निराश, गुस्से को पीकर भी डॉक्टर के आने का इंतज़ार कर रहे थे|

 

शाम छह बजे से रात के नौ बज चुके थे| जूनियर डॉक्टर की फौज इधर से उधर घूम रही थी…वो किसी को इंजेक्शन लगा देते तो किसी को फरमान सुना के चले जाते कि फला दवाई लेकर आओ| इंतज़ार की इन्तेहाँ हो जाने पर मैंने अपने मित्र अतीत को फ़ोन किया और अतीत रिषभ, अलोक आदि को साथ लेकर आया| लगभग दस बजे एक जूनियर डॉक्टर आया तो हम सब उसको घेर कर खड़े हो गये और उससे पूछा कि क्या हुआ है? अब आगे क्या करना है? कुछ तो बताइए!

 

जूनियर डॉक्टर ने सीटी स्कैन करने के लिए बोला और अपना नंबर देते हुए कहा कि सीटी स्कैन करने के बाद मुझे कॉल करना| हम खुद गये…स्ट्रेचर खोज के लाये…न तो कोई बताने वाला था कि स्ट्रेचर कहाँ है और न ही कोई लाने वाला| खैर ज़रुरत हमारी थी तो हम खुद लेकर आये| बाहर खड़ी समाजवादी एम्बुलेंस सेवा को हमने बुक किया| सीटी स्कैन हुआ और वापस आते ही…फ्री समाजवादी एम्बुलेंस के चालक ने हमसे चार सौ रूपये की मांग कर दी| सवाल करने पर कि फ्री है तो पैसा क्यूँ? हमें एक सीधा जवाब मिला कि भाई यहाँ ऐसा ही होता है| देना तो पड़ेगा ही…अगर ज्यादा कलेक्टर बनना है तो जाओ किसी से भी कंप्लेन कर दो| ऐसे धमकी भरे भ्रष्टाचार से मुझे माननीय मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव जी की इस अद्भुत सेवा पर तरस आ गया और हमने उसे चार सौ रूपये दे दिए|

 

रात के ग्यारह बजे जब सीटी स्कैन की रिपोर्ट आई और जूनियर डॉक्टर उसे लेकर डॉक्टर के पास चला गया| रात करीब एक बजे जूनियर डॉक्टर उस रिपोर्ट के साथ भागता हुआ आया कि भाई जल्द से जल्द पैसे का इंतज़ाम कर लो अभी ऑपरेशन करना पड़ेगा| मनीष आर्थिक रूप से सक्षम नहीं था…हम मनीष की माताजी को ढांढस बंधा बाहर आये और पैसे के इंतजाम के बारे में सोचने लगे| हम सभी छात्र थे, किसी के पास महीने के खर्च के पांच सौ बचे थे तो किसी के पास एक हज़ार…कुल मिलकर भी दस हज़ार नहीं हो रहा था| फिर भास्कर भैया और अतीत ने कहा कि यार ऑपरेशन कराओ, हम देंगे पैसा…बाद में कॉलेज में चंदा लेकर बाकी का हिसाब देख लिया जायेगा|

 

रात को एक बजे हमने सबको फ़ोन किया…डायरेक्टर केके त्रिपाठी, चीफ प्रॉक्टर तोमर जी, सभी दोस्तों को…पर किसी ने फ़ोन तक नहीं उठाया| हम अजीब दुविधा में थे…पर हमने फैसला किया कि पहले ऑपरेशन होने दो…फिर देखते है| करीब २ बजे ऑपरेशन शुरू हुआ और असली खेल अब शुरू हुआ| हमे एक लम्बी सी लिस्ट थमा दी गयी जिसमे रुई से लेकर सुई तक, दस्ताने से लेकर क्लोरोफॉर्म तक…सब हमे लाने के लिए कह दिया गया| जैसा सब फिल्मों में होता है कि नर्स सब इंतज़ाम कर रही है…ऐसा कुछ नहीं था| मैं दौड़ते हुए गया और करीब 200 मीटर दूर मेडिकल स्टोर से सब सामान लेकर आया| ऑपरेशन स्टार्ट हो गया|

 

ब्लड चेक करने वाला आया और उसने मुंह खोल कर 400 रूपये मांग लिए, सफाई वाली आई उसने सौ रूपये ले लिए, नर्स आई…उसने पांच सौ ले लिए…ऐसा लग रहा था जैसे मैं अपने बच्चे के पैदा होने पर बख्शीश दे रहा हूँ…इन लोगो का ज़मीर इतना मर चुका था कि दर्द के समय भी मुंह खोल कर पैसे मांग रहे थे|

 

अचानक नर्स आई और बोली की दो यूनिट ब्लड चाहिए तुरंत…हम दौड़ कर करीब पांच सौ मीटर दूर ब्लड बैंक में गये| २४ घंटे खुले रहने का दावा करने वाले ब्लड बैंक पर ताला पड़ा था और हमारे जैसे सैकड़ो लोग नम आँखों से…हाथ में पर्ची लिए…ब्लड बैंक वाले का इंतज़ार कर रहे थे| एक आदमी आया तो पता चला कि यही ब्लड बैंक वाला है…उससे विनती की गयी तो हाथ झटकारते हुए बोला कि मुझे नहीं पता…मेरी शिफ्ट नहीं है ये| हम परेशान…न कोई नंबर…न कोई पता| हम हताश खड़े वहां इंतज़ार कर रहे थे| अपनी पेशानी पर जोर डाल रहे थे कि अरे यार कोई तो ब्लड कैंप वाला मिल जाए जो हमारे कॉलेज में आकर ब्लड लेते है…फ़िलहाल के लिए काम हो जाए| पर आश्चर्य की बात कि आज तक किसी ने ध्यान ही नहीं दिया कि आप डोनेट करना चाहते है तो आपको मिल जायेंगे वो पर आपको अगर ब्लड चाहिए तो उनका कोई नंबर ही नही था…और न होता है…तो आखिर किसको दान करते है ये ब्लड? किसकी जान बचाते है?

 

इसी उधेड़बुन में ब्लड बैंक वाला पान खाते हुए आराम से चलता हुआ आया…मानो पिकनिक मनाने आया था और किसी ने ज़बरदस्ती उसे नौकरी पर लगा दिया| सबने कहा कि भाई जल्दी ताला खोलो पर उसने बात को अनसुना कर आराम से ताला खोला| किसी तरह ब्लड लिया गया और हम उस ब्लड के बदले मनीष के ब्लड ग्रुप का ब्लड लेकर भागते हुए पहुंचे…आधा घंटा बीत चूका था ब्लड लेने में…दिल धक् धक् कर रहा था कि कहीं कोई अनहोनी न हुई हो…पर भगवन का लाख-लाख शुक्र था कि अभी भी सब सही था| ब्लड चढ़ा और अब मनीष की रगों में सुशील और अनिल का खून दौड़ने लगा था| हर बार नर्स बाहर आती और हमे एक दवा लाने के लिए पर्ची थमा देती…हम आधा दर्जन से ज्यादा थे इसलिए कोई न कोई दवा लेने के लिए २०० मीटर दूर दौड़ कर जाते और दौड़ कर आते| सैकड़ों चक्कर लगाते – लगाते जाने कब सुबह हो गयी पता ही नही चला| ऑपरेशन सफल रहा और हमे चैन की सांस आई| सुबह अंकित, पुष्पेन्द्र, आशीष सरोज और बाकी के दोस्त अस्पताल आ चुके थे तो हम मनीष को वार्ड में शिफ्ट करा के अपने रूम पर आ गये| रात भर की दौड़ में हम इतने थक चुके थे कि सोए तो शाम हो गयी|

 

शाम को हम हैलेट पहुंचे तो पता चला कि ऑपरेशन फिर से होगा क्यूंकि ब्लड अन्दर ही अन्दर रीस रहा था| अब हमारे पास घोर आर्थिक संकट था| सुबह कॉलेज पहुँच कर…हर एक क्लास में…चाहे वो जूनियर हो या सीनियर एमबीए की क्लास सबसे चंदा माँगा| जिससे जो बन सका उसने दिया| दस रूपये, पांच रूपये, पांच सौ से लेकर हज़ार तक| एमबीए फर्स्ट इयर के बच्चों ने चंदा अपने एचओडी को दे दिया और उन्होंने केके त्रिपाठी सर को चंदे के दो हज़ार रकम देते हुए कहा कि ये लीजिये…हमे पता है कि मुर्गा खाने और दारू पीने के लिए चंदा जुटाया जा रहा है| ये बात मुझे पता चला लेकिन मजबूरी थी…गुस्सा पी गया और चंदे के दो हज़ार रूपये के लिए जब हम पहुंचे तो हमसे हिसाब माँगा गया…मैंने भी एक-एक रूपये का हिसाब रख रखा था| उसे केके त्रिपाठी सर को दिखाया| उन्होंने हिसाब का पूरा फाइल मुझे थमा दिया पर चंदे का एक रुपया नही दिया….वही जो दो हज़ार उन्हें सौंप दिया गया था| आज तक उन्होंने वो चंदे का पैसा नहीं दिया| शायद उस दो हज़ार से कोई महल बनवा लिए हो|

 

हम कॉलेज से सीधे हैलेट अस्पताल पहुंचे| ऑपरेशन शुरू हुआ| अब ब्लड की ज़रुरत शुरू हुई…सभी दोस्तों ने अपना ब्लड दिया| पर दस-पंद्रह यूनिट से क्या होने वाला था…बीस से भी ज्यादा टाँके का ऑपरेशन…जिसमे पूरा पेट के साथ-साथ सीने को चीर दिया गया हो…उस ऑपरेशन में पंद्रह यूनिट ब्लड कुछ नहीं था|

 

और खून की ज़रुरत हुई…तब तक शैलेन्द्र ने उपाय दिया कि कॉलेज में जो उर्सला अस्पताल का कैंप लगा था उसमे अस्सी से ज्यादा लोगों ने ब्लड दिया था और सारे ब्लड डोनेशन सर्टिफिकेट के के त्रिपाठी सर के पास थे| हम उनसे संपर्क करके उनके घर तक गये और उनसे ब्लड डोनेशन सर्टिफिकेट माँगा| उन्होंने ना-नुकुर करते हुए सिर्फ बीस सर्टिफिकेट दिए| हम भागते-भागते उर्सला पहुंचे| अभी शाम के सात या आठ ही बजे थे| उर्सला के ब्लड बैंक में हम गये तो वो बंद करने की तैयारी कर रहे थे…मानो २४ घंटे खुला रहने वाला ब्लड बैंक नहीं राशन की दूकान हो…| हमने उनसे पूरी बात बताई कि हमारे कॉलेज के ब्लड डोनेशन कैंप में हमारे साथ के बच्चों ने ब्लड दिया था…आज हमारे एक दोस्त का एक्सीडेंट हो गया है…ऑपरेशन चल रहा है…ब्लड की बहुत ज़रुरत है| उस ब्लड बैंक वाले ने कहा कि ब्लड प्रियंका मैम ने लिया था तो उन्ही से बात करो| केके त्रिपाठी सर से उनका नंबर लेकर उनसे पूरी बात बताई गयी| उन्होंने ब्लड बैंक वाले से बात कराने के लिए कहा|

 

फिर फ़ोन रखते ही…ब्लड बैंक वाले ने कहा कि आपने तो दान किया है…ये सर्टिफिकेट आपको दान करने पर मिला है…इसके बदले ब्लड नहीं मिलता| हम गंवार तो थे नही…सीधे बोला कि ब्लड कैंप में तो यही बोल कर सर्टिफिकेट दिया गया कि जब ज़रुरत होगी तो सर्टिफिकेट दिखा कर ब्लड मिल जाएगा|

 

उसने झल्लाते हुए बोला कि जाओ यार…जिसने कहा है और जिसने ब्लड दिया है…उसी से बात करो! फिर काफी बहस के बाद उसने कहा कि जाओ ब्लड सैंपल लेकर आओ मरीज का…हमने रिपोर्ट दिखाई कि यह रहा हैलेट में जांच किया हुआ रिपोर्ट| वो बोला कि नहीं…पहले जाओ…ब्लड सैंपल लाओ…यह उर्सला है…हैलेट नही|

 

हम ब्लड सैंपल लेकर दस मिनट में ही आ गये| वो बंद करके भागने की तैयारी में था…पर हमने उसे पकड़ लिया| ब्लड सैंपल को हाथ में लेते ही बोला…एक हफ्ते बाद आकर ब्लड ले जाना…|

 

हमने पूछा क्यों?

 

उसने बड़ी ही बेहयाई से कहा कि क्यूंकि सैंपल जांच की रिपोर्ट एक हफ्ते में आएगी|

 

अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर ये ब्लड जाता कहाँ है? तो आज जान लीजिये…बहुत खोज करने के बाद पता चला कि उर्सला कैंप का ब्लड प्राइवेट अस्पतालों को सात सौ रूपये प्रति यूनिट पर बेच दिया जाता है| इस खेल में ब्लड डोनेशन की नर्स, डॉक्टर से लेकर मुख्य चिकित्सा अधिकारी तक शामिल है| और यह हाल सिर्फ उर्सला के ब्लड कैंप का ही नही बल्कि भारत में संचलित ऐसे हजारों ब्लड बैंक का है| आपके खून को बेच कर ये अपना घर चलाते है| आपकी भावनाओ पर चोट करके ये आपके खून से पैसे पैदा कर रहे है|

 

तो बताइए करेंगे – रक्तदान महादान?

 

अगर किसी को ज़रुरत है खून की, तो उसे आप स्वयं जाकर दे…और कहीं और देना है तो खून देने से पहले उस कैंप के बारे में पूरी जानकारी ले कि आपका खून किसे और कैसे दान किया जायेगा|

(नोट: उक्त विचार मंच में नाम इसलिए उजागर किया गया है ताकि विश्वसनीयता को परखने के लिए कोई भी उक्त व्यक्तियों से संपर्क करके सच्चाई पूछ सकता है|)

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