देवी दुर्गा को शक्ति का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि देवी ही इस चराचर जगत में शक्ति का संचार करती हैं। उनकी आराधना के लिये ही साल में दो बार बड़े स्तर पर लगातार नौ दिनों तक उनके अनेक रूपों की पूजा की जाती है। इसके इतर दो और भी ऩवरात्र हैं जिन्हें गुप्त नवरात्रि कहते हैं। जो एक माघ शुक्ल पक्ष में और आषाढ़ शुक्ल पक्ष में पड़ता है। चूंकि इस दौरान मां की आराधना गुप्त रूप से की जाती है इसलिये इन्हें गुप्त नवरात्र भी कहा जाता है। आइए जानते हैं गुप्त नवरात्र की पौराणिक कथा और पूजा-विधि के बारे में…

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गुप्त नवरात्रि की पौराणिक कथा

  • इस नवरात्र के महत्व को बताने वाली एक कथा भी पौराणिक ग्रंथों में मिलती है।
  • कथा के अनुसार एक समय की बात है कि ऋषि श्रंगी एक बार अपने भक्तों को प्रवचन दे रहे थे।
  • कि भीड़ में से एक स्त्री हाथ जोड़कर ऋषि से बोली कि गुरुवर मेरे पति दुर्व्यसनों से घिरे हैं।
  • जिसके कारण मैं किसी भी प्रकार के धार्मिक कार्य व्रत उपवास अनुष्ठान आदि नहीं कर पाती।
  • मैं मां दुर्गा की शरण लेना चाहती हैं लेकिन मेरे पति के पापाचारों से मां की कृपा नहीं हो पा रही मेरा मार्गदर्शन करें।
  • तब ऋषि बोले वासंतिक और शारदीय नवरात्र में तो हर कोई पूजा करता है सभी इससे परिचित हैं।
  • लेकिन इनके अलावा वर्ष में दो बार गुप्त नवरात्र भी आते हैं।
  • इनमें 9 देवियों की बजाय 10 महाविद्याओं की उपासना की जाती है।
  • यदि तुम विधिवत ऐसा कर सको तो मां दुर्गा की कृपा से तुम्हारा जीवन खुशियों से परिपूर्ण होगा।
  • ऋषि के प्रवचनों को सुनकर स्त्री ने गुप्त नवरात्र में ऋषि के बताये अनुसार मां दुर्गा की कठोर साधना की।
  • स्त्री की श्रद्धा व भक्ति से मां प्रसन्न हुई और कुमार्ग पर चलने वाला उसका पति सुमार्ग की ओर अग्रसर हुआ उसका घर खुशियों से संपन्न हुआ।
  • कुल मिलाकर गुप्त नवरात्र में भी माता की आराधना करनी चाहिये।

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गुप्त नवरात्रि की पूजा विधि :

  • मान्यतानुसार गुप्त नवरात्र के दौरान भी पूजा अन्य नवरात्र की तरह ही करनी चाहिये।
  • नौ दिनों तक व्रत का संकल्प लेते हुए प्रतिपदा को घटस्थापना कर प्रतिदिन सुबह शाम मां दुर्गा की पूजा की जाती है।
  • अष्टमी या नवमी के दिन कन्याओं के पूजन के साथ व्रत का उद्यापन किया जाता है।
  • वहीं तंत्र साधना वाले साधक इन दिनों में माता के नवरूपों की बजाय दस महाविद्याओं की साधना करते हैं।
  • ये दस महाविद्याएं मां काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, माता छिन्नमस्ता,
  • त्रिपुर भैरवी, मां ध्रूमावती, माता बगलामुखी, मातंगी और कमला देवी हैं।
  • सभी साधकों से अपील है कि तंत्र साधना किसी प्रशिक्षित व सधे हुए साधक के मार्गदर्शन अथवा अपने गुरु के निर्देशन में ही करें।
  • यदि साधना सही विधि से न की जाये तो इसके प्रतिकूल प्रभाव भी साधक पर पड़ सकते हैं।

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